मीरा | Meera

Publisher:
Pengiun
| Author:
Sudarshan Chopra
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Pengiun
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Sudarshan Chopra
Language:
Hindi
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Paperback

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SKU 9780143468202 Categories , Tag
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लोक कहे मीरा भई बावरी, भ्रम दूनी दू नेखाग्यो । कोई कहैं रंग लाग्यो। (लोग कहतेहैं कि मीरा पागल हो गई है।है यही भ्रम दुनिदु या को खा गया है।है कोई कहता है,है यह तो प्रेम लग गया है अर्थात मीरा का भक्ति-भाव कृष्ण मेंआत्मसात हो गया है।है) सचमुच मीरा कृष्ण के प्रेम मेंदीवानी हो गई थी। मीरा नेस्वयं को कृष्ण की दासी के रूप मेंसाकार कर लिया। प्रभु-चरणों के निकट वह भाव-विभोर होकर नाचती थी। माया-मोह, नाते-रिश्तों सेदूरदू वह कृष्णमय हो गई थी। उसके तो सिर्फ गिरधर गोपाल थे, दूसदू रा कोई नहीं था। अपार सौंदर्य की धनी, सुख-वैभव में रही, पर उसनेसर्वस्व त्याग दिया। न जानेकितनेकष्ट और अत्याचार सहे,हे फिर भी गोविंद के गुण गाती रही। भक्ति-काल की अद्भुत कवियित्री थी मीरा और सरस-मधुर कंठी की धनी भी, जिसके पद आज भी जन-जन मेंप्रिय हैं।हैं मीरा की पदावली को लोग बड़े भक्ति-भाव से गातेहैं।हैंसाथ ही पढ़िए मीरा की मार्मिक जीवनी भी।

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Description

लोक कहे मीरा भई बावरी, भ्रम दूनी दू नेखाग्यो । कोई कहैं रंग लाग्यो। (लोग कहतेहैं कि मीरा पागल हो गई है।है यही भ्रम दुनिदु या को खा गया है।है कोई कहता है,है यह तो प्रेम लग गया है अर्थात मीरा का भक्ति-भाव कृष्ण मेंआत्मसात हो गया है।है) सचमुच मीरा कृष्ण के प्रेम मेंदीवानी हो गई थी। मीरा नेस्वयं को कृष्ण की दासी के रूप मेंसाकार कर लिया। प्रभु-चरणों के निकट वह भाव-विभोर होकर नाचती थी। माया-मोह, नाते-रिश्तों सेदूरदू वह कृष्णमय हो गई थी। उसके तो सिर्फ गिरधर गोपाल थे, दूसदू रा कोई नहीं था। अपार सौंदर्य की धनी, सुख-वैभव में रही, पर उसनेसर्वस्व त्याग दिया। न जानेकितनेकष्ट और अत्याचार सहे,हे फिर भी गोविंद के गुण गाती रही। भक्ति-काल की अद्भुत कवियित्री थी मीरा और सरस-मधुर कंठी की धनी भी, जिसके पद आज भी जन-जन मेंप्रिय हैं।हैं मीरा की पदावली को लोग बड़े भक्ति-भाव से गातेहैं।हैंसाथ ही पढ़िए मीरा की मार्मिक जीवनी भी।

About Author

मीरा बाई सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। मीरा बाई नेकृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है।है संत रैदास या रविदास उनके गुरु थे। मीराबाई को उनके देवदे र विक्रमा दित्य नेमारनेके लिए ज़हर का प्या ला भेजा था, जिसका उन पर कोई असर नहीं हुआ था। वे विरक्त हो गईं और साधु-धुसंतों की संगति मेंहरि कीर्तन करतेहुए अपना समय व्यतीत करनेलगीं । वेजहाँजाती थी, वहाँलोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हें देवी दे के जैसा प्यार और सम्मान देतेदे थे। मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुणगु पद्धति सर्वमान्य बनी। मीरा बाई के भक्ति गीत को पदावली कहा जाता है।है

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