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मीरा | Meera
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लोक कहे मीरा भई बावरी, भ्रम दूनी दू नेखाग्यो । कोई कहैं रंग लाग्यो। (लोग कहतेहैं कि मीरा पागल हो गई है।है यही भ्रम दुनिदु या को खा गया है।है कोई कहता है,है यह तो प्रेम लग गया है अर्थात मीरा का भक्ति-भाव कृष्ण मेंआत्मसात हो गया है।है) सचमुच मीरा कृष्ण के प्रेम मेंदीवानी हो गई थी। मीरा नेस्वयं को कृष्ण की दासी के रूप मेंसाकार कर लिया। प्रभु-चरणों के निकट वह भाव-विभोर होकर नाचती थी। माया-मोह, नाते-रिश्तों सेदूरदू वह कृष्णमय हो गई थी। उसके तो सिर्फ गिरधर गोपाल थे, दूसदू रा कोई नहीं था। अपार सौंदर्य की धनी, सुख-वैभव में रही, पर उसनेसर्वस्व त्याग दिया। न जानेकितनेकष्ट और अत्याचार सहे,हे फिर भी गोविंद के गुण गाती रही। भक्ति-काल की अद्भुत कवियित्री थी मीरा और सरस-मधुर कंठी की धनी भी, जिसके पद आज भी जन-जन मेंप्रिय हैं।हैं मीरा की पदावली को लोग बड़े भक्ति-भाव से गातेहैं।हैंसाथ ही पढ़िए मीरा की मार्मिक जीवनी भी।
लोक कहे मीरा भई बावरी, भ्रम दूनी दू नेखाग्यो । कोई कहैं रंग लाग्यो। (लोग कहतेहैं कि मीरा पागल हो गई है।है यही भ्रम दुनिदु या को खा गया है।है कोई कहता है,है यह तो प्रेम लग गया है अर्थात मीरा का भक्ति-भाव कृष्ण मेंआत्मसात हो गया है।है) सचमुच मीरा कृष्ण के प्रेम मेंदीवानी हो गई थी। मीरा नेस्वयं को कृष्ण की दासी के रूप मेंसाकार कर लिया। प्रभु-चरणों के निकट वह भाव-विभोर होकर नाचती थी। माया-मोह, नाते-रिश्तों सेदूरदू वह कृष्णमय हो गई थी। उसके तो सिर्फ गिरधर गोपाल थे, दूसदू रा कोई नहीं था। अपार सौंदर्य की धनी, सुख-वैभव में रही, पर उसनेसर्वस्व त्याग दिया। न जानेकितनेकष्ट और अत्याचार सहे,हे फिर भी गोविंद के गुण गाती रही। भक्ति-काल की अद्भुत कवियित्री थी मीरा और सरस-मधुर कंठी की धनी भी, जिसके पद आज भी जन-जन मेंप्रिय हैं।हैं मीरा की पदावली को लोग बड़े भक्ति-भाव से गातेहैं।हैंसाथ ही पढ़िए मीरा की मार्मिक जीवनी भी।
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