आत्मस्वीकृति | Aatmswikriti

Publisher:
Pengiun
| Author:
Narendra Kohli
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Pengiun
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Narendra Kohli
Language:
Hindi
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Paperback

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SKU 9780143468196 Categories , Tags ,
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352

इस पुस्तक के बारे में स्वयं लेखक लिखते हैं कि सोचा तो यही था कि आत्मकथा लिखने में क्या है। जो घटित हुआ, वही तो लिखना है; किंतु लिखते हुए ज्ञात हुआ कि आत्मकथा में समस्या लेखन की नहीं, चयन की है। क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना है। अपना सत्य लिखना है, किंतु दूसरों के कपट का उद्घाटन नहीं करना है; क्योंकि उसमें स्वयं को महान् बनाने की चेष्टा देखी जा सकती है वे घटनाएँ जो अपने लोगों को आहत करती हैं और वे घटनाएँ, जो लेखक की आत्म-भर्त्सना के रूप में उसे गौरवान्वित करती हैं। लेखक उन गुणों से भी स्वयं को अलंकृत कर सकता है, जो उसमें हैं ही नहीं और वह अपने दोषों को इस प्रकार भी प्रस्तुत कर सकता है कि वे गुण लगें। नंगा सत्य बोलना बहुत कठिन होता है; उसकी लपेट में लेखक स्वयं तो आता ही है, वे लोग भी आ जाते हैं, जिनके विषय में सत्य बोलने का अधिकार लेखक को नहीं है। इसलिए मैंने सपाट सत्य भी लिखा है और जहाँ आवश्यकता पड़ी है, वहाँ सृजनात्मकता का झीना पर्दा भी डाल दिया है। प्रयत्न यही है कि मेरा सत्य तो पाठकों के सामने आए, किंतु उसकी लपेट में अन्य लोग न आएँ।

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Description

इस पुस्तक के बारे में स्वयं लेखक लिखते हैं कि सोचा तो यही था कि आत्मकथा लिखने में क्या है। जो घटित हुआ, वही तो लिखना है; किंतु लिखते हुए ज्ञात हुआ कि आत्मकथा में समस्या लेखन की नहीं, चयन की है। क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना है। अपना सत्य लिखना है, किंतु दूसरों के कपट का उद्घाटन नहीं करना है; क्योंकि उसमें स्वयं को महान् बनाने की चेष्टा देखी जा सकती है वे घटनाएँ जो अपने लोगों को आहत करती हैं और वे घटनाएँ, जो लेखक की आत्म-भर्त्सना के रूप में उसे गौरवान्वित करती हैं। लेखक उन गुणों से भी स्वयं को अलंकृत कर सकता है, जो उसमें हैं ही नहीं और वह अपने दोषों को इस प्रकार भी प्रस्तुत कर सकता है कि वे गुण लगें। नंगा सत्य बोलना बहुत कठिन होता है; उसकी लपेट में लेखक स्वयं तो आता ही है, वे लोग भी आ जाते हैं, जिनके विषय में सत्य बोलने का अधिकार लेखक को नहीं है। इसलिए मैंने सपाट सत्य भी लिखा है और जहाँ आवश्यकता पड़ी है, वहाँ सृजनात्मकता का झीना पर्दा भी डाल दिया है। प्रयत्न यही है कि मेरा सत्य तो पाठकों के सामने आए, किंतु उसकी लपेट में अन्य लोग न आएँ।

About Author

समकालीन साहित्य के प्रख्यात लेखक नरेन्द्र कोहली का जन्म 1940 में स्यालकोट में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की उपाधियाँ प्राप्त कीं। दिल्ली के पीजीडीएवी (सांध्य) कॉलेज से नौकरी शुरू करके 1965 में मोतीलाल नेहरू कॉलेज में पहुँच गए और 1995 में यहीं से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण कर अपने आपको हमेशा के लिए लेखन को समर्पित कर दिया। लगभग 100 पुस्तकों के लेखक नरेन्द्र कोहली ने राम-कथा, कृष्ण-कथा, पांडव कथा और स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित उपन्यास शृंखलाओं की रचना की और देखते-ही-देखते साहित्य के आकाश पर छा गए।

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