पुराने ज़माने की बात है। कुडन, बुडन, सरमन और कौराई चार भाई थे। जैसा कि आम तौर पर उस ज़माने में होता था ये चारों भाई भी खेती करते थे। किसी तरह एक दिन इनकी मुलाकात राजा से हो गई थी। राजा ने इनसे कह दिया था ‘अच्छे अच्छे काम करते जाना’। गरीब किसान के लिए राजा का कहा बिलकुल पत्थर की लकीर जैसा होता है। सम्मान ही इतना होता है कि ऐसा ना हो तो कैसा हो, जैसी बातें सोची नहीं जा सकती। चारों भाई भी खेती करते और हर छोटे मोटे काम में कुछ ना कुछ अच्छा करने की कोशिश करते।
सुबह जब चारो भाई खेतों पर जाते तो दोपहर में कूड़न की बेटी खाने की पोटली लेकर आती। एक रोज़ जब लड़की खाना देकर लौट रही थी तो रास्ते में उसके पांव से एक नुकीला पत्थर टकरा गया। लड़की को गुस्सा आया और उसने कमर में ही टंगी दरांती खींच के पत्थर पर दे मारी। अब दरांती से पत्थर का तो क्या बिगड़ना था ? मगर जो लड़की ने अपनी दरांती की तरफ देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गई ! लोहे की काली दरांती सुनहले रंग की हो गई थी ! पत्थर से छूते ही लोहा दमक उठा था !
लड़की समझ गई ये कोई चमत्कारी पत्थर है उसने सहेज के पत्थर को मिट्टी से निकाला और दुपट्टे में लपेट कर घर ले गई। शाम में जब चारो भाई लौटे और परिवार पूरा इकठ्ठा था तो लड़की ने सबको दरांती और पत्थर दिखाया। सब आश्चर्यचकित हुए ! थोड़ी ही जांच में सबको समझ आ गया कि उनके हाथ पारस पत्थर लग गया है। पूरे परिवार को पता था कि गांव में पारस पत्थर की खबर ज्यादा दिन तो छुपी नहीं रहेगी। राजा को पारस ना देना चोरी भी होती। तो चारों भाइयों ने तय किया की वो अगली सुबह ही राजा को देने जायेंगे।
जब वो राजा के पास गए तो राजा ने ना पारस लिया ना सोना। फिर से कह दिया जाओ और इस से अच्छे अच्छे काम करते जाना। पाटन इलाके की ये प्रसिद्ध कहानी सच्ची है कि नहीं ये तो मालूम नहीं। लेकिन ये किवदंती इतिहास को अंगूठा दिखाती आज भी जिन्दा है। पाटन में उन भाइयों ने पारस से निकले सोने से तालाब बनवाने शुरू कर दिए। वहां कई तालाब हैं। पारस आज लोहे को सोना नहीं बनाता लेकिन इन तालाबों का पानी, मिट्टी से सोना जरूर उपजाता है।
बुढागर में बुढा सागर है, मांझगांव में सरमन सागर, कुआंग्राम में कौराई सागर है और कुंडम गांव में कुंडम सागर। चारों भाइयों के नाम पर बने इन बड़े बड़े तालाबों-झीलों के किनारे कई गाँव आज भी हैं।
अनुपम मिश्र की किताब “आज भी खरे हैं तालाब” इसी कहानी से शुरू होती है। परंपरागत तरीकों से पानी के संरक्षण को सीखने के लिए फ़िलहाल भारत में इस से रोचक कोई किताब नहीं है। अगर आप अपने इलाके में घटते जल स्तर के बारे में जानते हैं तो इस किताब से सीखिए कि पानी का संरक्षण कैसे होता है। अपने इलाके के गाँव के लोगों को ये किताब पढ़ाइये। पानी की कमी सिर्फ एक लातूर की समस्या नहीं है। अगले दो तीन दशकों में ये भारत के कई इलाकों की दिक्कत होगी। अभी से शुरू कीजिये अगले कुछ सालों बाद ताकि दिक्कत ना आये।
About The Blogger:
आनन्द मार्केटिंग एवं मीडिया से स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद डाटा एनालिटिक्स में काम करते हैं। मार्केट एवं सोशल रिसर्च के अपने काम के अलावा अपने शौक की वजह से भी वो भारत भर में भ्रमण कर रहे होते हैं और कहते हैं कि वो यात्री हैं, पर्यटक नहीं हैं। संयुक्त परिवार में पले-बढ़े आनंद अपने परिवार के साथ पटना में रहते हैं। शिक्षा को जीवन पर्यंत चलने वाली यात्रा मानने वाले आनंद उपशास्त्री हैं और संस्कृत से स्नातक के छात्र हैं।
Reblogged this on बात भारत की.