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क्रांतिदूत (शृंखला): डॉक्टर मनीष श्रीवास्तव

“मर गए लेकिन ज़िमी पर नाम पैदा कर गए
जान जाने के लिए है और मौत आने के लिए”

‘रूही:एक पहेली’ और ‘मुन्ना’ के लेखक डॉ. मनीष श्रीवास्तव इस बार एक अनूठी और अभूतपूर्व पुस्तक शृंखला लेकर आए हैं। जहाँ देश ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है,वहाँ उनकी यह कृति देशवासियों के लिए अमृत बूँद से कम नहीं। गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करते हुए दस पुस्तकों की शृंखला के अंतर्गत तीन पुस्तकें सुधि पाठक के बीच अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी हैं।
आइए बात करें शृंखला की पहली कृति ‘क्रांतिदूत भाग-१, झाँसी फ़ाइल्स’।
सबसे अधिक आकर्षित करता है इसका कवर। भगत सिंह, चंद्रशेखर ‘आज़ाद’ के साथ मास्टर जी को देख एक साधारण पाठक के मन में ढेरों प्रश्न उठेंगे जिनका सही और सटीक उत्तर ‘झाँसी फ़ाइल्स’ के भीतर है। झाँसी की धरती वीर-वीरांगनों की भूमि, रानी लक्ष्मीबाई की कर्मस्थली स्वतंत्रता संग्राम में अलग ही स्थान रखती है। ‘आज़ाद’ की झाँसी यात्रा मास्टर रुद्रनारायण जी के साथ के बिना कहांँ ही पूर्ण हो सकती है। इस यात्रा में हम ऐसे अनेक नाम पढ़ते, सुनते और जान जाते हैं जो इतिहास के भारी भरकम पन्नों में कहीं छुप से गए हैं।
सदाशिव मलकापुरकर, भगवान दास माहौर, विश्वनाथ गंगाधर वैशम्पायन आदि अनगिनत नाम बिस्मिल, अशफ़ाक जैसे नामों के साथ सितारों से जुड़े हुए हैं। ओरछा के विहंगम दृश्य कथा को आगे बढ़ाने का कार्य सफलतापूर्वक करते हैं।

शृंखला का दूसरा भाग ‘क्रांतिदूत भाग-२ काशी’ देवों की नगरी काशी की पृष्ठभूमि पर है। आज़ाद के बाल्यावस्था से प्रारंभ हुई कथा अनेक घटनाओं को समाहित करती हुई माँ गंगा के समान गतिशील हो आगे बढ़ जाती है। सचिंद्र सान्याल, प्रफुल्ल चाकी, घोष बाबू आदि के परिचय के साथ ही मोहन गिरि, भवानी पाठक, द्विज नारायण, देवी चौधरानी जैसे कई नाम पाठक के हृदय में उनके विषय में और अधिक जानने की प्रबल उत्कंठा जगा देते हैं। गेंदालाल जी की कथा आपके मन को झंझावात में छोड़ जाएगी। ‘अनुशीलन समिति’ ‘मैनपुरी’ ‘जुगांतर’ आदि शीर्षक से होकर जब पाठक ‘खुदीराम बोस’ तक पहुँचता है तो नेत्र सजल, हृदय गर्वित हो उठता है। कथा इसी लौ में आगे बढ़ती है।

‘क्रांतिदूत भाग-३ मित्रमेला’ शृंखला की तीसरी कड़ी। पहली दो पुस्तकों के बाद ‘हार्डकवर’ और सुंदर चित्र के साथ आती है। “उन भूले बिसरे शिक्षकों को समर्पित जिन्होंने वीर सावरकर जैसे क्रांति दूत भारतवर्ष को दिए।” पंक्तियों से प्रारंभ करते हुए लेखक ने शिक्षा एवं शिक्षक वर्ग के कर्तव्य को इंगित करते हुए उनका मान बढ़ाया है। कथा का विस्तार होता है और हम वीर सावरकर को अपने सम्मुख पाते हैं। सावरकर की इस यात्रा में सुने- अनसुने किस्से तो हैं ही, कई नामचीन और गुमनाम क्रांतिकारियों के नाम भी पढ़ पाते हैं। चापेकर बंधुओं का त्याग हो या रानाडे जी अथवा बाल गंगाधर तिलक , मदन लाल धींगरा, लाला हरदयाल, वासुदेव बलवंत फड़के आदि नाम,केवल अक्षर समूह न होकर इतिहास की इमारत के वो मज़बूत पत्थर हैं जिन्होंने नींव की ईंट बनना चुना ताकि देश भव्यता और स्वतंत्रता के उन्नत भाल के संग खड़ा हो सके। लेखक ने उस समय के कालखंड, पोशाक, संस्थान, रहन सहन का सजीव चित्रण किया है मानों ये सब कुछ हमारे आसपास ही घटित हो रहा हो और हम मूक दर्शक भाव विह्वल हो रहे हैं। भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास को सहजता और सम्मान से हमारे बीच पुस्तक रूप में सजाया गया है।
भाषा की बात करें तो सरल, सुबोध भाषा कथानक को बाँधे रखती है। आम बोलचाल की भाषा हर आयु वर्ग के पाठक को ध्यान में रखते हुए प्रयोग की गई है। क्लिष्टता का कहीं समावेश नहीं है। कहीं-कहीं जो एक बात अटकती है वो है ‘साहब’ का प्रयोग। लेखक यदि इसके बजाय पूरा नाम लिखते हुए ‘जी’ का प्रयोग करते तो कदाचित कर्णप्रियता के साथ बीच से पन्ने पलटने वाले पाठकों को भी सुविधा हो जाती कि वे क्रांतिदूतों का पूर्ण परिचय पा रहे हैं।
पुस्तकों के कवर दर्शनीय हैं और हाथ से स्पर्श करते ही नामानुरूप श्रद्धा और सम्मान का भाव लाते हैं।
आगे आने वाली शृंखला की प्रत्येक कड़ी की पाठकवर्ग को प्रतीक्षा रहेगी क्योंकि पूर्व की तीनों पुस्तकें उसकी जिज्ञासा को उद्वेलित करने हेतु पर्याप्त है।
ये पुस्तक शृंखला आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर से कम नहीं है। अंत में यही कहूँगी-
मरते ‘बिस्मिल’ ‘रोशन’ ‘लहरी’ ‘अशफाक’ अत्याचार से
होंगे पैदा सैंकड़ों इनके रुधिर की धार से ॥

  • रामप्रसाद ‘बिस्मिल’
    आने वाली शृंखला इस रूधिर की धार से उत्पन्न हुए बहुत से ‘नर रत्नों’ की कथा होगी जो क्रांतिदूत बन भारत के भाग्य विधाता बने। माँ भारती के इन सपूतों को एक कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि है ‘क्रांतिदूत’।

वंदे मातरम् ?

पुस्तक का नाम- क्रांतिदूत (शृंखला)
लेखक का नाम- डॉक्टर मनीष श्रीवास्तव
प्रकाशक- सर्व भाषा ट्रस्ट,नई दिल्ली
प्रकाशन स्थल- भारत
प्रकाशन वर्ष- 2022

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गरिमा तिवारी

लेखिका शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। कविता, कहानी की दुनिया में विचरती हैं। अलग-अलग मंच से इनके कई लेख साझा हुए हैं। हरियाणा सरकार की पत्रिका ‘हरिगंधा’ में भी इनका लेख प्रकाशित हो चुका है। सोशल मीडिया पर यह एक जाना पहचाना नाम हैं।

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