इस बार गांव गया तो पिताजी ने कह दिया था, इन उपन्यास आदि में कुछ नहीं रखा कोर्स की पुस्तकें पढ़ो, काम आएंगी। पुस्तकें जेबखर्च से ही ली जाती थी पर पिताजी ने पहले कभी टोका नहीं था। इस बार शब्द तो समक्ष थे किंतु भावना अलग थी, भविष्य की चिंता स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
मैने धीरे से कहा अब नौकरी लगने तक कोई पुस्तक नहीं खरीदूंगा। लगा था यह कहने से बात समाप्त हो जायेगी किंतु पिताजी ने कहा “जो पुस्तकें खरीद रखी है उन्हें बेच दें?”, यह मेरे लिए वज्रपात था। जो भी पुस्तकें थी घर छोड़ दी गई ।
एक वर्ष पश्चात एक सरकारी विभाग में पद मिल भी गया और दस्तावेज सत्यापन के लिए जाना हुआ बनी पार्क, जयपुर । सामान्यतः नौकरी मिलने की प्रसन्नता बड़ी होती है किंतु मुझे तो फिर से पुस्तकें खरीदनी थी। सत्यापन पूर्ण हुआ, घर वापसी की ट्रेन रात्रि में थी और अभी सांझ होने में भी समय बाकी था। सबसे पहले सामने श्री राम मंदिर पर प्रभु आशीर्वाद लिया। बाहर निकलते ही वर्षा होने लगी , सामने खड़ी गीताप्रेस की पुस्तकों की गाड़ी में शरण ली। सामने रुचि की सभी पुस्तकें थी। वर्षा आधे घंटे तक रही तब तक 15 – 20 पुस्तकों को टटोला जा चुका था। अंत में दृष्टि “संक्षिप्त महाभारत” पर जाकर रुकी, यह दो भागों में २००० पृष्ठों का सेट था। मूल्य था ६०० रुपए, घर से लाए १००० रुपए में से ८०० अभी भी बचे हुए थे। २०० रुपए में घर पहुंचा जा सकता था। किसी प्रकार बैग में स्थान बना कर रख लिया गया।
घर पहुंचने पर छोटे भाई ने परंपरानुसार पूरे बैग को खाली कर दिया। मां कह रही थी, घर में महाभारत नहीं रखनी चाहिए। पिताजी कुर्सी पर बैठे मुस्कुरा रहे थे।
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This guest post is written by नवीन शर्मा ( @devnagrihindi )
नवीन शर्मा विद्युत विभाग में लेखाकार हैं, पुस्तक व हिंदी भाषा प्रेमी होने के साथ कंप्यूटर स्वचलन एवं माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल में भी रुचि रखते हैं। आप उनके ट्विटर खाते @devnagrihindi का भी अनुसरण कर सकते हैं।
So keeping Mahabharat at home isn’t inauspicious, after all
Because Dad ended up smiling and so did I 🙂
Nice little write-up! Do write more,
Best wishes.
So keeping Mahabharat at home isn’t inauspicious, after all
Because Dad ended up smiling and so did I 🙂
Nice little write-up! Do write more,
Best wishes.
गीतप्रेस की गाड़ी आज भी वहीं राम मंदिर के पास खडी रहती है। कुछ पुस्तकें हमनें भी क्रय की है वहाँ से ।
गीतप्रेस की गाड़ी आज भी वहीं राम मंदिर के पास खडी रहती है। कुछ पुस्तकें हमनें भी क्रय की है वहाँ से ।