Sewa Paramo Dharmah : Sant Ishwar Sadhako Ki Gaurav Gatha

Publisher:
‎Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Vrinda Khanna
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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‎Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Vrinda Khanna
Language:
Hindi
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Paperback

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समाज के प्रति अगाध समर्पण के क्रम में संत ईश्वर फाउंडेशन की स्थापना 22 नवंबर, 2013 को स्मृतिशेष श्री खैरातीलालजी के द्वारा हुई। खैरातीलालजी ने इस फाउंडेशन का नामकरण उस मूल आधार पर किया, जहाँ से उनमें समाज व राष्ट्र की सेवा के भावों का बीजारोपण हुआ था। खैरातीलालजी के पिताजी का नाम श्री संतराम खन्‍ना व माताजी का नाम श्रीमती ईश्वरी देवी था, जिनके नाम पर ही फाउंडेशन का नामकरण संत ईश्वर फाउंडेशन के रूप में सार्थक हुआ है।

‘संत ईश्वर फाउंडेशन’ सामाजिक एकता, सामाजिक समरसता, सार्वभौम शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण के साथ ही गाँवों और दुर्गम क्षेत्रों में निवासरत शिक्षा से वंचित साधनहीन गरीब लोगों के विकास के लिए एक संकल्पित न्यास है।

उपर्युक्त संकल्पों को सहज रूप से पूर्ण करने के लिए संत ईश्वर फाउंडेशन, राष्ट्रीय सेवा भारती से संबद्ध होकर ‘संत ईश्वर सम्मान’ कार्यक्रम तथा “विद्या भारती’ के साथ संबद्ध होकर जम्मू एवं कश्मीर में शिक्षण संस्थानों के कार्यों द्वारा अपने सेवा अभियानों को और अधिक गति प्रदान करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील है।

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समाज के प्रति अगाध समर्पण के क्रम में संत ईश्वर फाउंडेशन की स्थापना 22 नवंबर, 2013 को स्मृतिशेष श्री खैरातीलालजी के द्वारा हुई। खैरातीलालजी ने इस फाउंडेशन का नामकरण उस मूल आधार पर किया, जहाँ से उनमें समाज व राष्ट्र की सेवा के भावों का बीजारोपण हुआ था। खैरातीलालजी के पिताजी का नाम श्री संतराम खन्‍ना व माताजी का नाम श्रीमती ईश्वरी देवी था, जिनके नाम पर ही फाउंडेशन का नामकरण संत ईश्वर फाउंडेशन के रूप में सार्थक हुआ है।

‘संत ईश्वर फाउंडेशन’ सामाजिक एकता, सामाजिक समरसता, सार्वभौम शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण के साथ ही गाँवों और दुर्गम क्षेत्रों में निवासरत शिक्षा से वंचित साधनहीन गरीब लोगों के विकास के लिए एक संकल्पित न्यास है।

उपर्युक्त संकल्पों को सहज रूप से पूर्ण करने के लिए संत ईश्वर फाउंडेशन, राष्ट्रीय सेवा भारती से संबद्ध होकर ‘संत ईश्वर सम्मान’ कार्यक्रम तथा “विद्या भारती’ के साथ संबद्ध होकर जम्मू एवं कश्मीर में शिक्षण संस्थानों के कार्यों द्वारा अपने सेवा अभियानों को और अधिक गति प्रदान करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील है।

About Author

एक व्यक्ति होता है, जिसको 'वीतरागी' कहते हैं, अर्थात्‌ वह अपने और पराए के भाव से मुक्त होकर केवल प्राणिमात्र के सुख के लिए जीता है। पूज्य खैरातीलालजी ऐसे ही पुण्यात्मा थे, जिन्होंने सहदयता, सद्भाव और आत्मीयता के साथ सबको उचित सम्मान एवं स्नेह देकर प्रेमासक्त किया। विभाजन का दंश अपने आपमें एक बहुत बड़ी त्रासदी थी। अपनी जन्मभूमि और पैतृक संपदा को छोड़कर प्रव्रजन करना दुर्भाग्य से कम नहीं है। इन असहाय त्रासदियों के बीच दिल्‍ली आकर अपने अस्तित्व को बचाने के साथ ही स्वावलंबन और स्वाभिमान के साथ स्वयं को पुनः स्थापित करने का उनका पराक्रम अद्वितीय रहा। 31 अक्तूबर, 1933 को विभाजन से पूर्व लाहौर में जनमे खैरातीलालजी ने, माता ईश्वरी देवी, दो बहनों और एक छोटे भाई समेत विभाजन की विभीषिका को अपनी आँखों से देखा और उसके दर्द को अनुभव किया। जीवन में संघर्ष व्यक्ति को तपाकर कुंदन बना देता है। खैरातीलालजी ने संघर्षों में तपकर ही अदम्य साहस और धैर्य को प्राप्त किया है। वे पिलानी में पढ़ाई के दौरान कंबल की धुलाई का काम करके जीविकोपार्जन करते थे, लेकिन इससे विचलित न होते हुए उपेक्षित बस्तियों में जाकर छोटे बच्चों को शिक्षा देते थे। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि 'महाजनो येन गत: स एवं पथाः ', अर्थात्‌ महान्‌ लोग जिस मार्ग का अनुसरण करते हैं, वही मार्ग अच्छा और अनुकरणीय हो जाता है। धैर्य, साहस और विवेक से निरंतर सत्कर्म में रत रहकर ऐसा मार्ग जिन्होंने अपनाया, ऐसे हमारे संरक्षक और वटवृक्ष पूज्य खैरातीलालजी सदैव हम सबके लिए अनुकरणीय और वंदनीय रहेंगे।

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