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Sarvapalli Radhakrishnan (Set Of 2 Books): Bharatiya Darshan-I | Bharatiya Darshan-II
Publisher:
Rajpal & Sons
| Author:
Sarvapalli Radhakrishnan
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
₹1,300 ₹1,040
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ISBN:
SKU
PISarvapalli2
Categories Hindi, Non Fiction, SwaDesi
Categories: Hindi, Non Fiction, SwaDesi
Page Extent:
1296
Bharatiya Darshan-I :- महान् भारतीय दार्शनिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन की तर्क और विज्ञान के आधार पर व्याख्या की और उसे पूरी दुनिया तक पहुंचाया। उनका विश्वविख्यात ग्रंथ इंडियन फिलॉसफी वर्षों तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाता रहा। प्रस्तुत ग्रंथ इंडियन फिलॉसफी का प्रामाणिक हिंदी अनुवाद है। वैदिक काल से लेकर आज तक भारतीय दर्शन ने जो पड़ाव पार किए हैं, इस ग्रंथ में उन सभी का क्रमिक विवेचन किया गया है। इसकी विशेषता यह है कि भारतीय दर्शन के विभिन्न सिद्धांतों की तुलना इसमें दुनिया के विभिन्न मतों और दर्शनों से की गई है। विषय के अत्यंत गूढ़ और गहन होने के बावजूद प्रस्तुत ग्रंथ की भाषा सहज और सरल है।
Bharatiya Darshan-II :- डॉ. राधाकृष्णन् के महत्वपूर्ण दर्शन—ग्रंथ ‘इंडियन फिलॉसफी’ के दूसरे खंड का अनुवाद है। इस विद्वतापूर्ण ग्रंथ में लेखक ने बौद्धकाल के अंतिम चरण अर्थात् हिन्दू-धर्म—पुनर्जागरण-काल से आज तक के भारतीय दर्शन के विकास की विशद विवेचना और अध्ययन प्रस्तुत किया है। विशेषतः षड्दर्शन के छहों अंगों पर मध्ययुग के पहले और बाद के हिन्दू धर्म के व्याख्याताओं की स्थापनाएं यहां प्रतिपादित हुई हैं। इन मनीषियों की स्थापनाओं की दार्शनिक विशिष्टताओं को विश्व के अन्यान्य दार्शनिकों के मतों की तुलना में रखते हुए लेखक ने भारतीय धर्म और दर्शन की वैज्ञानिकता और जीवन के साथ उनकी संगति को बहुत ही उदात्त और निष्पक्ष रूप से दर्शाया है। पुस्तक के अंतिम अंश में संपूर्ण दर्शन वाङ्मय पर लेखक के समन्वयात्मक विचार प्रस्तुत हुए हैं। डॉ. राधाकृष्णन् की विद्वता और उनकी लेखन-शैली की मौलिकता की विश्व के विद्वानों ने प्रशंसा की है। प्रस्तुत ग्रंथ उनकी उन सारी विशेषताओं से युक्त एक विशिष्ट कृति है।
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Description
Bharatiya Darshan-I :- महान् भारतीय दार्शनिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन की तर्क और विज्ञान के आधार पर व्याख्या की और उसे पूरी दुनिया तक पहुंचाया। उनका विश्वविख्यात ग्रंथ इंडियन फिलॉसफी वर्षों तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाता रहा। प्रस्तुत ग्रंथ इंडियन फिलॉसफी का प्रामाणिक हिंदी अनुवाद है। वैदिक काल से लेकर आज तक भारतीय दर्शन ने जो पड़ाव पार किए हैं, इस ग्रंथ में उन सभी का क्रमिक विवेचन किया गया है। इसकी विशेषता यह है कि भारतीय दर्शन के विभिन्न सिद्धांतों की तुलना इसमें दुनिया के विभिन्न मतों और दर्शनों से की गई है। विषय के अत्यंत गूढ़ और गहन होने के बावजूद प्रस्तुत ग्रंथ की भाषा सहज और सरल है।
Bharatiya Darshan-II :- डॉ. राधाकृष्णन् के महत्वपूर्ण दर्शन—ग्रंथ ‘इंडियन फिलॉसफी’ के दूसरे खंड का अनुवाद है। इस विद्वतापूर्ण ग्रंथ में लेखक ने बौद्धकाल के अंतिम चरण अर्थात् हिन्दू-धर्म—पुनर्जागरण-काल से आज तक के भारतीय दर्शन के विकास की विशद विवेचना और अध्ययन प्रस्तुत किया है। विशेषतः षड्दर्शन के छहों अंगों पर मध्ययुग के पहले और बाद के हिन्दू धर्म के व्याख्याताओं की स्थापनाएं यहां प्रतिपादित हुई हैं। इन मनीषियों की स्थापनाओं की दार्शनिक विशिष्टताओं को विश्व के अन्यान्य दार्शनिकों के मतों की तुलना में रखते हुए लेखक ने भारतीय धर्म और दर्शन की वैज्ञानिकता और जीवन के साथ उनकी संगति को बहुत ही उदात्त और निष्पक्ष रूप से दर्शाया है। पुस्तक के अंतिम अंश में संपूर्ण दर्शन वाङ्मय पर लेखक के समन्वयात्मक विचार प्रस्तुत हुए हैं। डॉ. राधाकृष्णन् की विद्वता और उनकी लेखन-शैली की मौलिकता की विश्व के विद्वानों ने प्रशंसा की है। प्रस्तुत ग्रंथ उनकी उन सारी विशेषताओं से युक्त एक विशिष्ट कृति है।
About Author
As an academic, philosopher, and statesman, Sarvepalli Radhakrishnan (1888-1975) was one of the most recognized and influential Indian thinkers in academic circles in the 20th century. Throughout his life and extensive writing career, Radhakrishnan sought to define, defend, and promulgate his religion, a religion he variously identified as Hinduism, Vedanta, and the religion of the Spirit. He sought to demonstrate that his Hinduism was both philosophically coherent and ethically viable. Radhakrishnan’s concern for experience and his extensive knowledge of the Western philosophical and literary traditions has earned him the reputation of being a bridge-builder between India and the West. He often appears to feel at home in the Indian as well as the Western philosophical contexts, and draws from both Western and Indian sources throughout his writing. Because of this, Radhakrishnan has been held up in academic circles as a representative of Hinduism to the West. His lengthy writing career and his many published works have been influential in shaping the West’s understanding of Hinduism, India, and the East.
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