Daslakshan Dharm

Publisher:
Motilal Banarsidass Publishers
| Author:
Manisha Jain
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Motilal Banarsidass Publishers
Author:
Manisha Jain
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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99

इस पुस्तक का मूल उद्देश्य जैन दर्शन में हर साल आने वाले पर्व दसलक्षण पर्व का विवेचन है कि दसलक्षण धर्म क्या होते है? और जैन दर्शन कनुर इस पर्व की पालना क्यों करते हैं? असल में कोई भी धर्म मानवता से ऊपर नहीं हो सकता। मानवता ही मनुष्य का प्रमुख चर्म है। सभी चों के शास्त्रों में लिखा है कि व्यक्ति की आत्मा ही परमात्मा है। जैन दर्शन किसी भी मत, संप्रदाय या किसी भी शारीरिक तिया के अपितु आत्मस्वरूप की पहचान का दर्शन है। इस पुस्तक में चर्म के दसलक्षणी (सुमन्त्र उत्तम मार्दव, आर्जय, सत्य, शौच, संयम, रूप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य साधारण बोलचाल की भाषा में किया गया है, जिससे सभी व्यक्ति दसलक्षण धर्म महत्ता को समझ सके और अपनी आत्मा में लीन होकर आत्मस्वरूप को पहचानकर अपने का नैतिक बना सकें। मनुष्य की आत्मा गुणों का भंडार है लेकिन मनुष्य आत्मा के स्वभाव को न पहचान कर सांसारिक आपाधापी में मन रहता है। इस पुस्तक में आग्मा के दस गुणों वचन किया गया है जिससे मनुष्य आत्मा के स्वाभाव को पहचान कर स्वकल्याण कर सको

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Description

इस पुस्तक का मूल उद्देश्य जैन दर्शन में हर साल आने वाले पर्व दसलक्षण पर्व का विवेचन है कि दसलक्षण धर्म क्या होते है? और जैन दर्शन कनुर इस पर्व की पालना क्यों करते हैं? असल में कोई भी धर्म मानवता से ऊपर नहीं हो सकता। मानवता ही मनुष्य का प्रमुख चर्म है। सभी चों के शास्त्रों में लिखा है कि व्यक्ति की आत्मा ही परमात्मा है। जैन दर्शन किसी भी मत, संप्रदाय या किसी भी शारीरिक तिया के अपितु आत्मस्वरूप की पहचान का दर्शन है। इस पुस्तक में चर्म के दसलक्षणी (सुमन्त्र उत्तम मार्दव, आर्जय, सत्य, शौच, संयम, रूप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य साधारण बोलचाल की भाषा में किया गया है, जिससे सभी व्यक्ति दसलक्षण धर्म महत्ता को समझ सके और अपनी आत्मा में लीन होकर आत्मस्वरूप को पहचानकर अपने का नैतिक बना सकें। मनुष्य की आत्मा गुणों का भंडार है लेकिन मनुष्य आत्मा के स्वभाव को न पहचान कर सांसारिक आपाधापी में मन रहता है। इस पुस्तक में आग्मा के दस गुणों वचन किया गया है जिससे मनुष्य आत्मा के स्वाभाव को पहचान कर स्वकल्याण कर सको

About Author

डॉ. मनीषा जैन का जन्म 24 सितम्बर 2003 को मेरठ में हुआ। डॉ. जैन ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली से पी-एचडी. एवं इग्नू से एम.ए (हिन्दी), दिल्ली विश्रविद्यालय में स्नातक की डिपी प्राप्त की। डॉ. जैन की प्रमुख रचनाओं में रोजचती है पहाड़, क की उम्मीद लिए (कविता संग्रह) रखना अमानुष रागनी संग्रह) तथा 'भारत में पितृसत्ता का स्वरूप' (शोध ग्रंथ) हैं। डॉ. जैन ने भारतीय स सृजन संस्थान (पटना) द्वारा कथा सागर साहित्य सम्मान (2013), रोचना विश्व कीर्ति 'कृति ओर' पत्रिका द्वारा कविता सम्मान (2016), साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था 'संचेतना' (इलाहाबाद) द्वारा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना सम्मान (2018) प्राप्त किए।

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