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Naqsh E Fariyadi Hard Cover
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Faiz Ahmed 'Faiz', Tr. Abdul Bismillah, Ed. Abdul Bismillah, Dharmendra Sushant
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Category: Hindi
Page Extent:
‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का पहला कविता-संग्रह है जो पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। मुहब्बत और इनक़लाब का जो अटूट अपनापा आगे चलकर फ़ैज़ की समूची शायरी की पहचान बना, उसकी बुनियाद इस संग्रह में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसमें बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक की उनकी तहरीरें शामिल हैं, जब फ़ैज़ युवा थे और उनका दिलो-दिमाग़ एक तरफ़ ‘ग़मे-जानाँ’ से तो दूसरी तरफ़ ‘ग़मे-दौराँ’ से एक साथ वाबस्ता हो रहा था। स्वाभाविक ही इस संग्रह के शुरुआती हिस्से में ग़मे-जानाँ का रंग गहरा नज़र आता है, जो आख़िरी हिस्से में पहुँचते-पहुँचते ग़मे-दौराँ के रंग में मिल जाता है।
और तब फ़ैज़ लिखते हैं, ‘मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरी महबूब न माँग’। गोकि इस सोच की शिनाख़्त शुरुआती हिस्से की तहरीरों में भी नामुमकिन नहीं है। मगर अहम बात यह है कि फ़ैज़ एलान करते हैं कि ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ एक ही तजुर्बे के दो पहलू हैं। यही वह एहसास है, जिससे उनकी शायरी तमाम सरहदों को लाँघती हुई पूरी दुनिया की आम-अवाम की आवाज़ बन गई है। ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ इस एहसास का घोषणापत्र है।
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Description
‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का पहला कविता-संग्रह है जो पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। मुहब्बत और इनक़लाब का जो अटूट अपनापा आगे चलकर फ़ैज़ की समूची शायरी की पहचान बना, उसकी बुनियाद इस संग्रह में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसमें बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक की उनकी तहरीरें शामिल हैं, जब फ़ैज़ युवा थे और उनका दिलो-दिमाग़ एक तरफ़ ‘ग़मे-जानाँ’ से तो दूसरी तरफ़ ‘ग़मे-दौराँ’ से एक साथ वाबस्ता हो रहा था। स्वाभाविक ही इस संग्रह के शुरुआती हिस्से में ग़मे-जानाँ का रंग गहरा नज़र आता है, जो आख़िरी हिस्से में पहुँचते-पहुँचते ग़मे-दौराँ के रंग में मिल जाता है।
और तब फ़ैज़ लिखते हैं, ‘मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरी महबूब न माँग’। गोकि इस सोच की शिनाख़्त शुरुआती हिस्से की तहरीरों में भी नामुमकिन नहीं है। मगर अहम बात यह है कि फ़ैज़ एलान करते हैं कि ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ एक ही तजुर्बे के दो पहलू हैं। यही वह एहसास है, जिससे उनकी शायरी तमाम सरहदों को लाँघती हुई पूरी दुनिया की आम-अवाम की आवाज़ बन गई है। ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ इस एहसास का घोषणापत्र है।
About Author
फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’
जन्म : 1911, गाँव काला कादर, सियालकोट।
शिक्षा : आरम्भिक धार्मिक शिक्षा मौलवी मुहम्मद इब्राहिम मीर सियालकोटी से प्राप्त की। मैट्रिक स्कॉच मिशन स्कूल और स्नातकोत्तर मुरे कॉलेज, सियालकोट से। वामपंथी विचारधारा के जुझारू पैरोकार फ़ैज़ ने 1936 में ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की एक शाखा पंजाब में आरम्भ की। 1935 में एम.इ.ओ.कॉलेज, अमृतसर और बाद में हेली कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, लाहौर में अध्यापन। 1938-1942 के दौरान उर्दू मासिक 'अदबे लतीफ़' का सम्पादन। कुछ समय तक फ़ैज़ ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भी रहे जहाँ 1944 में उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया था। 1947 में सेना से इस्तीफ़ा देने के बाद 'पाकिस्तान टाइम्स' के पहले प्रधान सम्पादक बने। 1959 से 1962 तक पाकिस्तान आर्ट्स काउंसलिंग के सचिव रहे। 1964 में लन्दन से वापस आने के बाद फ़ैज़ कराची में अब्दुल्लाह हारुन कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त हुए। 1951 में फ़ैज़ को रावलपिंडी षड्यंत्र केस में चार साल की जेल भी हुई, जहाँ उन्होंने जीवन की कड़वी सच्चाइयों से सीधा साक्षात्कार किया।
प्रमुख रचनाएँ : ‘नक़्शे-फ़रियादी’ (1941), ‘दस्ते-सबा’ (1953), ‘ज़िन्दाँनामा’ (1956), ‘मीज़ान’ (1956), ‘दस्त तहे-संग’ (1965), ‘सरे-वादी-ए-सीना’ (1971), ‘शामे-शह्रे-याराँ’ (1979), ‘मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर’ (1981), ‘सारे सुख़न हमारे’ (फ़ैज़-संग्रह) लंदन से और ‘नुस्ख़हा-ए-वफ़ा’ (फ़ैज़-संग्रह) पाकिस्तान से, 'पाकिस्तानी कल्चर' (उर्दू और अंग्रेज़ी में; 1984)।
फ़ैज़ की रचनाओं का अंग्रेज़ी, रूसी, बलोची, हिन्दी सहित दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
पुरस्कार : ‘लेनिन पीस प्राइज़’, ‘द पीस प्राइज़’ (पाकिस्तानी मानवाधिकार सोसायटी), ‘निगार अवार्ड’, ‘द एविसेना अवार्ड’, ‘निशाने-इम्तियाज़’ (मरणोपरान्त)। 1984 में मृत्यु से पहले ‘नोबेल प्राइज़’ के लिए नामांकन हुआ था।
निधन : 20 नवम्बर, 1984 को लाहौर में।
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