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Karwat
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₹325 ₹163
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संतोष सिंह की कविताओं का वायुमण्डल विस्तृत और सघन है। बचपन की स्मृतियों से लेकर घर-परिवार के अनुभव और बृहत्तर सामाजिक-राजनैतिक प्रसंगों तक प्रशस्त ये कविताएँ पाठक के हृदय के समस्त तारों को झंकृत कर देती हैं। बचपन के खेल और सरस्वती पूजा के आख्यान सामूहिक स्मृतियाँ हैं और तत्काल पाठक को कवि से जोड़ देती हैं। कवि ने तब के शब्दों, मुहावरों को मिश्रित कर अद्भुत काव्य रसायन तैयार किया है जो अपनी विशिष्ट लय से मुग्ध कर देता है। कौटुम्बिक सम्बन्धों पर संतोष जी ने कुछ मार्मिक कविताएँ लिखी हैं। बहन, बेटी, पत्नी उनकी कविता के स्थायी नागरिक हैं। स्त्रियों के प्रति लिखित उनकी कविताएँ अद्वितीय हैं। ‘कटे पेड़ की तरह रोज़ गिरती हूँ – यह एक बिम्ब समस्त स्त्री जाति की व्यथा का समाहार करता है। कवि ने लोलुप, लम्पट समाज की तीखी भर्त्सना करते हुए हमारे चतुर्दिक नैतिक पतन की भर्त्सना की है। संतोष जी की कविताओं का एक आयाम दार्शनिकता भी है। कवि के चिन्तन की अनमोल छवियाँ यहाँ अंकित हैं। जीवन, ब्रह्माण्ड, ईश्वर, त्रासदी सब पर चिन्तन-मनन मिलता है। – अरुण कमल
संतोष सिंह की कविताओं का वायुमण्डल विस्तृत और सघन है। बचपन की स्मृतियों से लेकर घर-परिवार के अनुभव और बृहत्तर सामाजिक-राजनैतिक प्रसंगों तक प्रशस्त ये कविताएँ पाठक के हृदय के समस्त तारों को झंकृत कर देती हैं। बचपन के खेल और सरस्वती पूजा के आख्यान सामूहिक स्मृतियाँ हैं और तत्काल पाठक को कवि से जोड़ देती हैं। कवि ने तब के शब्दों, मुहावरों को मिश्रित कर अद्भुत काव्य रसायन तैयार किया है जो अपनी विशिष्ट लय से मुग्ध कर देता है। कौटुम्बिक सम्बन्धों पर संतोष जी ने कुछ मार्मिक कविताएँ लिखी हैं। बहन, बेटी, पत्नी उनकी कविता के स्थायी नागरिक हैं। स्त्रियों के प्रति लिखित उनकी कविताएँ अद्वितीय हैं। ‘कटे पेड़ की तरह रोज़ गिरती हूँ – यह एक बिम्ब समस्त स्त्री जाति की व्यथा का समाहार करता है। कवि ने लोलुप, लम्पट समाज की तीखी भर्त्सना करते हुए हमारे चतुर्दिक नैतिक पतन की भर्त्सना की है। संतोष जी की कविताओं का एक आयाम दार्शनिकता भी है। कवि के चिन्तन की अनमोल छवियाँ यहाँ अंकित हैं। जीवन, ब्रह्माण्ड, ईश्वर, त्रासदी सब पर चिन्तन-मनन मिलता है। – अरुण कमल
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