Prem Piyala Jin Piya

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
पुष्पा भारती
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
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पुष्पा भारती
Language:
Hindi
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प्रेम पियाला जिन पिया –
चेखव की मर्मभेदी कहानियाँ, डिकेन्स के मानवतावादी उपन्यास, वेल्स की रोमांचक वैज्ञानिक कथाएँ और रिल्के की अद्भुत कविताएँ—विश्व-साहित्य के इन अमर हस्ताक्षरों की प्रेरणा का उद्गम कहाँ है इनके कृतित्व के पीछे, निजी जीवन की कौन-सी पीड़ाएँ थीं, कौन-से गोपन प्रणय या उजागर अनुराग-बन्धन थे? यह सब आप बहुत ही रोचक और कलात्मक रूप में जानेंगे ‘प्रेम पियाला जिन पिया’ में।

प्रामाणिक तथ्यों और अन्तरंग आत्मीय विश्लेषण के कारण पुष्पा भारती के ये कथा-निबन्ध ऐसे बन पड़े हैं जिन्हें एक बार पढ़कर आप कभी भूल नहीं पायेंगे और फिर-फिर पढ़ना चाहेंगे, जीवन की अनेक उद्वेलित, प्रगाढ़, तन्मय और उदासीन मनःस्थितियों में।
इन कथा निबन्धों को पढ़कर बच्चन ने लिखा था कि ‘भावभीनी, चित्रात्मक, साथ ही परिनिष्ठित शैली में गद्य लिखने की पुष्पा भारती की क्षमता अद्वितीय है।’ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का कहना था—”मैं मन्त्रमुग्ध-सा पुष्पा भारती की लेखनी की ज्योतिर्मयता पर अभिभूत हो उठा हूँ।” विष्णु प्रभाकर की राय में—’सहज सरल भाषा में जो चित्र उकेरे हैं ये मन और मस्तिष्क दोनों पर सहज ही अंकित हो जाते हैं। सारी की सारी कथाएँ लीक से हटकर हैं’। केशवचन्द्र वर्मा को खेद है और वे इसे हिन्दी का दुर्भाग्य मानते हैं कि ‘उपन्यास, कहानी, कविता के अलावा किसी अन्य विधा के बारे में यहाँ के पुरोधा लोगों के बहीख़ाते में कोई हिसाब-किताब रहता ही नहीं। यह अपने ढंग की अकेली किताब है। जबकि पुष्पा भारती के ये कथा-निबन्ध अपने ढंग के अकेले हैं। प्रभाकर श्रोत्रिय कहते हैं कि ‘एक-एक कथा इतनी मार्मिक, रोचक और व्यक्तित्व को उद्घाटित करनेवाली है कि क्या कहूँ…. इस समय हिन्दी में इस विधा में लिखनेवाला पुष्पा भारती की जोड़ का लेखक कोई नहीं दिखता—यह कोई प्रशंसा नहीं हक़ीक़त है।’ कुमार प्रशान्त को इन निबन्धों में ‘मौलिक कृति’ का आनन्द मिला है।

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Description

प्रेम पियाला जिन पिया –
चेखव की मर्मभेदी कहानियाँ, डिकेन्स के मानवतावादी उपन्यास, वेल्स की रोमांचक वैज्ञानिक कथाएँ और रिल्के की अद्भुत कविताएँ—विश्व-साहित्य के इन अमर हस्ताक्षरों की प्रेरणा का उद्गम कहाँ है इनके कृतित्व के पीछे, निजी जीवन की कौन-सी पीड़ाएँ थीं, कौन-से गोपन प्रणय या उजागर अनुराग-बन्धन थे? यह सब आप बहुत ही रोचक और कलात्मक रूप में जानेंगे ‘प्रेम पियाला जिन पिया’ में।

प्रामाणिक तथ्यों और अन्तरंग आत्मीय विश्लेषण के कारण पुष्पा भारती के ये कथा-निबन्ध ऐसे बन पड़े हैं जिन्हें एक बार पढ़कर आप कभी भूल नहीं पायेंगे और फिर-फिर पढ़ना चाहेंगे, जीवन की अनेक उद्वेलित, प्रगाढ़, तन्मय और उदासीन मनःस्थितियों में।
इन कथा निबन्धों को पढ़कर बच्चन ने लिखा था कि ‘भावभीनी, चित्रात्मक, साथ ही परिनिष्ठित शैली में गद्य लिखने की पुष्पा भारती की क्षमता अद्वितीय है।’ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का कहना था—”मैं मन्त्रमुग्ध-सा पुष्पा भारती की लेखनी की ज्योतिर्मयता पर अभिभूत हो उठा हूँ।” विष्णु प्रभाकर की राय में—’सहज सरल भाषा में जो चित्र उकेरे हैं ये मन और मस्तिष्क दोनों पर सहज ही अंकित हो जाते हैं। सारी की सारी कथाएँ लीक से हटकर हैं’। केशवचन्द्र वर्मा को खेद है और वे इसे हिन्दी का दुर्भाग्य मानते हैं कि ‘उपन्यास, कहानी, कविता के अलावा किसी अन्य विधा के बारे में यहाँ के पुरोधा लोगों के बहीख़ाते में कोई हिसाब-किताब रहता ही नहीं। यह अपने ढंग की अकेली किताब है। जबकि पुष्पा भारती के ये कथा-निबन्ध अपने ढंग के अकेले हैं। प्रभाकर श्रोत्रिय कहते हैं कि ‘एक-एक कथा इतनी मार्मिक, रोचक और व्यक्तित्व को उद्घाटित करनेवाली है कि क्या कहूँ…. इस समय हिन्दी में इस विधा में लिखनेवाला पुष्पा भारती की जोड़ का लेखक कोई नहीं दिखता—यह कोई प्रशंसा नहीं हक़ीक़त है।’ कुमार प्रशान्त को इन निबन्धों में ‘मौलिक कृति’ का आनन्द मिला है।

About Author

पुष्पा भारती जन्म : 11 जून 1935, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में । शिक्षा : हिन्दी-संस्कृत- अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान और अध्यापक पिता पं. रघुनन्दन प्रसाद शर्मा की प्रेरणा से बचपन से ही खूब खूब पढ़ने और लिखने में रुचि । विशेष योग्यता सूची में दूसरा स्थान पाकर प्रयाग विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए., 1955 में। शोध कार्य बीच में ही छोड़कर 1956-57 से कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बन्धित शिक्षायतन कॉलेज में अध्यापन प्रारम्भ किया जो अनेक वर्षों तक बम्बई में भी जारी रहा। 1961 में डॉ. धर्मवीर भारती से विवाह के उपरान्त बम्बई आने पर 'रोमांचक सत्यकथाएँ' लेखमाला लिखी। उसकी अभूतपूर्व लोकप्रियता से प्रेरित होकर जो लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ वह क्रम अपनी एक अलग ही विशिष्ट शैली और भाषा के साथ अनवरत जारी है। प्रकाशित पुस्तकें : रोमांचक सत्यकथाएँ-दो भाग, शुभागता, रोचक राजनीति, ढाई आखर प्रेम के, सरस संवाद, सफ़र सुहाने । सम्पादित पुस्तकें : आधुनिक साहित्य बोध, हिन्दी के तीन उपन्यास, एक दुनिया बच्चों की, कुछ लम्बी कविताएँ, आद्यन्त, अक्षर अक्षर यज्ञ, धर्मवीर भारती से साक्षात्कार, मेरी वाणी गैरिक वसना, साँस की कलम से, धर्मवीर भारती की साहित्य साधना ।

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