SalePaperback
Pratinidhi Kavitayen : Nagarjun (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Nagarjun
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Nagarjun
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹150 ₹149
Save: 1%
In stock
Ships within:
3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9788126706044
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
हिन्दी के आधुनिक कबीर नागार्जुन की कविता के बारे में डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है : ‘‘जहाँ मौत नहीं है, बुढ़ापा नहीं है, जनता के असन्तोष और राज्यसभाई जीवन का सन्तुलन नहीं है वह कविता है नागार्जुन की। ढाई पसली के घुमन्तू जीव, दमे के मरीज़, गृहस्थी का भार—फिर भी क्या ताक़त है नागार्जुन की कविताओं में! और कवियों में जहाँ छायावादी कल्पनाशीलता प्रबल हुई है, नागार्जुन की छायावादी काव्य-शैली कभी की ख़त्म हो चुकी है। अन्य कवियों में रहस्यवाद और यथार्थवाद को लेकर द्वन्द्व हुआ है, नागार्जुन का व्यंग्य और पैना हुआ है, क्रान्तिकारी आस्था और दृढ़ हुई है, उनके यथार्थ-चित्रण में अधिक विविधता और प्रौढ़ता आई है।…उनकी कविताएँ लोक-संस्कृति के इतना नज़दीक हैं कि उसी का एक विकसित रूप मालूम होती हैं। किन्तु वे लोकगीतों से भिन्न हैं, सबसे पहले अपनी भाषा—खड़ी बोली के कारण, उसके बाद अपनी प्रखर राजनीतिक चेतना के कारण, और अन्त में बोलचाल की भाषा की गति और लय को आधार मानकर नए-नए प्रयोगों के कारण। हिन्दीभाषी…किसान और मज़दूर जिस तरह की भाषा…समझते और बोलते हैं, उसका निखरा हुआ काव्यमय रूप नागार्जुन के यहाँ है।’’
Be the first to review “Pratinidhi Kavitayen : Nagarjun (PB)” Cancel reply
Description
हिन्दी के आधुनिक कबीर नागार्जुन की कविता के बारे में डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है : ‘‘जहाँ मौत नहीं है, बुढ़ापा नहीं है, जनता के असन्तोष और राज्यसभाई जीवन का सन्तुलन नहीं है वह कविता है नागार्जुन की। ढाई पसली के घुमन्तू जीव, दमे के मरीज़, गृहस्थी का भार—फिर भी क्या ताक़त है नागार्जुन की कविताओं में! और कवियों में जहाँ छायावादी कल्पनाशीलता प्रबल हुई है, नागार्जुन की छायावादी काव्य-शैली कभी की ख़त्म हो चुकी है। अन्य कवियों में रहस्यवाद और यथार्थवाद को लेकर द्वन्द्व हुआ है, नागार्जुन का व्यंग्य और पैना हुआ है, क्रान्तिकारी आस्था और दृढ़ हुई है, उनके यथार्थ-चित्रण में अधिक विविधता और प्रौढ़ता आई है।…उनकी कविताएँ लोक-संस्कृति के इतना नज़दीक हैं कि उसी का एक विकसित रूप मालूम होती हैं। किन्तु वे लोकगीतों से भिन्न हैं, सबसे पहले अपनी भाषा—खड़ी बोली के कारण, उसके बाद अपनी प्रखर राजनीतिक चेतना के कारण, और अन्त में बोलचाल की भाषा की गति और लय को आधार मानकर नए-नए प्रयोगों के कारण। हिन्दीभाषी…किसान और मज़दूर जिस तरह की भाषा…समझते और बोलते हैं, उसका निखरा हुआ काव्यमय रूप नागार्जुन के यहाँ है।’’
About Author
नागार्जुन
जन्म : 30 जून, 1911 (ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन); ग्राम—तरौनी, ज़िला—दरभंगा (बिहार)।
शिक्षा : परम्परागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा।
सुविख्यात प्रगतिशील कवि-कथाकार। हिन्दी, मैथिली, संस्कृत और बांग्ला में काव्य-रचना। पूरा नाम वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’। मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ नाम से ही लेखन। शिक्षा-समाप्ति के बाद घुमक्कड़ी का निर्णय। गृहस्थ होकर भी रमते-राम। स्वभाव से आवेगशील, जीवन्त और फक्कड़। राजनीति और जनता के मुक्तिसंघर्षों में सक्रिय और रचनात्मक हिस्सेदारी। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा मध्य प्रदेश और बिहार के ‘शिखर सम्मान’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित।
प्रमुख कृतियाँ : ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुखमोचन’, ‘बलचनमा’, ‘वरुण के बेटे’, ‘नई पौध आदि’ (उपन्यास); ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखोंवाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘चंदना’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘हज़ार-हज़ार बाँहोंवाली’, ‘पका है यह कटहल’, ‘अपने खेत में’, ‘मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा’ (कविता-संग्रह); ‘भस्मांकुर’, ‘भूमिजा’ (खंडकाव्य); ‘चित्रा’, ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ (हिन्दी में भी अनूदित मैथिली कविता-संग्रह); ‘पारो’ (मैथिली उपन्यास); ‘धर्मलोक शतकम्’ (संस्कृत काव्य) तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियाँ।
निधन : 5 नवम्बर, 1998
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Pratinidhi Kavitayen : Nagarjun (PB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Reviews
There are no reviews yet.