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Mere Apne

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Gulzar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

194

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1-4 Days

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Weight 250 g
Book Type

ISBN:
SKU 9788183611374 Categories , Tag
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Page Extent:
114

मेरे अपने’ गुलजार की एक बेहद संवेदनशील फिल्म है । इसकी कहानी के केन्द्र में आनन्दी बुआ नाम की एक वृद्धा स्त्री है जो दूर गाँव में अकेली अपने आखिरी दिन काट रही है । एक दूर का रिश्तेदार अपने घर में आया की कमी पूरी करने के लिए उसे शहर ले जाता है जहाँ जाकर वह पहले तो नए वक्तों के हालात को देखकर चकित होती है, लेकिन फिर शहर के भटके हुए नौजवानों के ऊपर अपनी ममता का आँचल फैला देती अपने तथाकथित रिश्तेदार का घर छोड्‌कर वह उन्हीं लडुकों के साथ रहने लगती है । वे ही उसके अपने हो जाते हैं । इस तरह गुलजार ने अपनी इस फिल्म में समाज में प्रचलित अपने-पराए की अवधारणा को भी नए सिरे से देखने की कोशिश की है और सभ्य सुरक्षित समाज के हाशिये पर जीनेवाले लोगों के मानवीय संवेदना को भी रेखांकित किया है । अंत में वृद्धा दो गुटों की लड़ाई के दौरान अपने प्राण त्याग देती है और इस तरह हम पुन: इस सवाल के रू-ब-रू आ खड़े होते हैं कि आखिर अपना है क्या| गुलजार की फिल्मों में अकसर स्वातंत्रयोत्तर भारत की राजनीतिक स्थितियों पर भी कटाक्ष होता है, वह ‘मेरे अपने’ में भी है ।

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Description

मेरे अपने’ गुलजार की एक बेहद संवेदनशील फिल्म है । इसकी कहानी के केन्द्र में आनन्दी बुआ नाम की एक वृद्धा स्त्री है जो दूर गाँव में अकेली अपने आखिरी दिन काट रही है । एक दूर का रिश्तेदार अपने घर में आया की कमी पूरी करने के लिए उसे शहर ले जाता है जहाँ जाकर वह पहले तो नए वक्तों के हालात को देखकर चकित होती है, लेकिन फिर शहर के भटके हुए नौजवानों के ऊपर अपनी ममता का आँचल फैला देती अपने तथाकथित रिश्तेदार का घर छोड्‌कर वह उन्हीं लडुकों के साथ रहने लगती है । वे ही उसके अपने हो जाते हैं । इस तरह गुलजार ने अपनी इस फिल्म में समाज में प्रचलित अपने-पराए की अवधारणा को भी नए सिरे से देखने की कोशिश की है और सभ्य सुरक्षित समाज के हाशिये पर जीनेवाले लोगों के मानवीय संवेदना को भी रेखांकित किया है । अंत में वृद्धा दो गुटों की लड़ाई के दौरान अपने प्राण त्याग देती है और इस तरह हम पुन: इस सवाल के रू-ब-रू आ खड़े होते हैं कि आखिर अपना है क्या| गुलजार की फिल्मों में अकसर स्वातंत्रयोत्तर भारत की राजनीतिक स्थितियों पर भी कटाक्ष होता है, वह ‘मेरे अपने’ में भी है ।

About Author

गुलज़ार

गुलज़ार एक मशहूर शायर हैं जो फ़िल्में बनाते हैं। गुलज़ार एक अप्रतिम फ़िल्मकार हैं जो कविताएँ लिखते हैं।
बिमल राय के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू हुए। फ़िल्मों की दुनिया में उनकी कविताई इस तरह चली कि हर कोई गुनगुना उठा। एक 'गुलज़ार-टाइप' बन गया। अनूठे संवाद, अविस्मरणीय पटकथाएँ, आसपास की ज़िन्दगी के लम्हे उठाती मुग्धकारी फ़िल्में। ‘परिचय’, ‘आँधी’, ‘मौसम’, ‘किनारा’, ‘ख़ुशबू’, ‘नमकीन’, ‘अंगूर’, ‘इजाज़त’—हर एक अपने में अलग।
1934 में दीना (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुलज़ार ने रिश्ते और राजनीति—दोनों की बराबर परख की। उन्होंने ‘माचिस’ और ‘हू-तू-तू’ बनाई, ‘सत्या’ के लिए लिखा—'गोली मार भेजे में, भेजा शोर करता है...।‘
कई किताबें लिखीं। ‘चौरस रात’ और ‘रावी पार’ में कहानियाँ हैं तो ‘गीली मिट्टी’ एक उपन्यास। 'कुछ नज़्में’, ‘साइलेंसेस’, ‘पुखराज’, ‘चाँद पुखराज का’, ‘ऑटम मून’, ‘त्रिवेणी’ वग़ैरह में कविताएँ हैं। बच्चों के मामले में बेहद गम्भीर। बहुलोकप्रिय गीतों के अलावा ढेरों प्यारी-प्यारी किताबें लिखीं जिनमें कई खंडों वाली ‘बोसकी का पंचतंत्र’ भी है। ‘मेरा कुछ सामान’ फ़िल्मी गीतों का पहला संग्रह था, ‘छैयाँ-छैयाँ’ दूसरा। और किताबें हैं : ‘मीरा’, ‘ख़ुशबू’, ‘आँधी’ और अन्य कई फ़िल्मों की पटकथाएँ। 'सनसेट प्वॉइंट', 'विसाल', 'वादा', 'बूढ़े पहाड़ों पर' या 'मरासिम' जैसे अल्बम हैं तो 'फिज़ा' और 'फ़िलहाल' भी। यह विकास-यात्रा का नया चरण है।
बाक़ी कामों के साथ-साथ 'मिर्ज़ा ग़ालिब' जैसा प्रामाणिक टी.वी. सीरियल बनाया। ‘ऑस्‍कर अवार्ड’, ‘साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार’ सहित कई अलंकरण पाए। सफ़र इसी तरह जारी है। फ़िल्में भी हैं और 'पाजी नज़्मों' का मजमुआ भी आकार ले रहा है।

 

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