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Meena Mere Aage (HC)
Publisher:
VANI PRAKASHAN
| Author:
Satya Vyas
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
VANI PRAKASHAN
Author:
Satya Vyas
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹499 ₹374
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789355183002
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
220
“समाज आज जिस बदलाव की ताकीद कर रहा है, जिन बेड़ियों को तोड़ कर आगे बढ़ रहा है मीना ने वो सलासिल, वो बेड़ियाँ आधी सदी से भी ज़्यादा पहले तोड़ दी थीं। इस लिहाज़ से वह एक मायने में पथ प्रदर्शक रही थीं। मीना के बारे में जितने हक़ीक़त बयान हैं उतने ही अफ़साने भी तैरते हैं। उनको लेकर हर इन्सान की अपनी ही कहानी है और हर कहानी का अपना ही अलग ज़ाविया है। कुछ का मक़सद महज़ सनसनी फैलाना था और कुछ ज़ाहिराना सच वयानी थी। क़ानून का विद्यार्थी, कहीं-न-कहीं कानून की भाषा बोलता ही है। मीना कुमारी यह दुनिया तव छोड़ गयीं जब मेरे इस दुनिया में आने का कोई इमकान भी आसपास न था। लिहाज़ा उन पर लिखने, उनको जानने और उन तक पहुँचने के लिए मुझे द्वितीयक साक्ष्यों से ही गुज़रना पड़ा। जीवन के कुछ दुखों में से एक दुख यह भी रह ही जायेगा कि काश उनके वक्त में पैदा होने की ख़ुशनसीवी अता होती…. । काश! इसलिए…. यहाँ दर्ज बातों की सच्चाई का दावा करूँ, यह ठीक नहीं होगा और तारीख़ इन बातों को एक सिरे से नकार दे, झुठला दे ऐसा भी नहीं। मैं ऐसा कुछ भी नहीं लिख सकता जिसकी बाबत कोई लिखित स्रोत नहीं हो। और महज़ सनसनी के लिए ऊलजलूल घटनाओं का समावेश कर लूँ इसके लिए मेरा मन गवाही नहीं देगा ।…. ….फ़िल्म वालों की बदनसीबी यह कि तारीख़ उन पर कभी भी मेहरबान नहीं रही। इस कारण उन पर कोई तारीख़ी किताब नहीं लिखी गयी। ना ही उन्हें तारीख़ में दर्ज होने लायक माना गया। फ़िल्मी अफ़राद की तारीख़ जो है वह अख़बार-ओ-रिसालात ही हैं जिनमें उनकी ज़िन्दगी के अहम पहलू नुमायाँ होते हैं । सो क्या ज़रूरी कि हम उन बातों, उन अख़बारों, उन मैगज़ीनों को सिरे से नकार दें। मसालाई रिसालों की बात दीगर है। और फिर, मीना कुमारी का पूरा सच सिर्फ़ और सिर्फ़ मीना कुमारी ही जानती थी। चाहे फ़िल्मकार, चाहे नातेदार, चाहे कोई किताब या कोई अदीब, कोई भी यह दावा करे कि वह उनकी कहानी मुकम्मल तौर पर जानता है तो यह झूठ होगा। लिहाज़ा यहाँ लिखी बातें भी फ़साना मान कर पढ़ा जाना ही सही होगा क्योंकि इस किताब में लिखी बातें उतनी ही सच्ची हैं जितनी मीना की बाबत फैले किस्से और उतना ही फ़साना है जितना मीना की बाबत फैले क़िस्से । -सत्य व्यास ”
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Description
“समाज आज जिस बदलाव की ताकीद कर रहा है, जिन बेड़ियों को तोड़ कर आगे बढ़ रहा है मीना ने वो सलासिल, वो बेड़ियाँ आधी सदी से भी ज़्यादा पहले तोड़ दी थीं। इस लिहाज़ से वह एक मायने में पथ प्रदर्शक रही थीं। मीना के बारे में जितने हक़ीक़त बयान हैं उतने ही अफ़साने भी तैरते हैं। उनको लेकर हर इन्सान की अपनी ही कहानी है और हर कहानी का अपना ही अलग ज़ाविया है। कुछ का मक़सद महज़ सनसनी फैलाना था और कुछ ज़ाहिराना सच वयानी थी। क़ानून का विद्यार्थी, कहीं-न-कहीं कानून की भाषा बोलता ही है। मीना कुमारी यह दुनिया तव छोड़ गयीं जब मेरे इस दुनिया में आने का कोई इमकान भी आसपास न था। लिहाज़ा उन पर लिखने, उनको जानने और उन तक पहुँचने के लिए मुझे द्वितीयक साक्ष्यों से ही गुज़रना पड़ा। जीवन के कुछ दुखों में से एक दुख यह भी रह ही जायेगा कि काश उनके वक्त में पैदा होने की ख़ुशनसीवी अता होती…. । काश! इसलिए…. यहाँ दर्ज बातों की सच्चाई का दावा करूँ, यह ठीक नहीं होगा और तारीख़ इन बातों को एक सिरे से नकार दे, झुठला दे ऐसा भी नहीं। मैं ऐसा कुछ भी नहीं लिख सकता जिसकी बाबत कोई लिखित स्रोत नहीं हो। और महज़ सनसनी के लिए ऊलजलूल घटनाओं का समावेश कर लूँ इसके लिए मेरा मन गवाही नहीं देगा ।…. ….फ़िल्म वालों की बदनसीबी यह कि तारीख़ उन पर कभी भी मेहरबान नहीं रही। इस कारण उन पर कोई तारीख़ी किताब नहीं लिखी गयी। ना ही उन्हें तारीख़ में दर्ज होने लायक माना गया। फ़िल्मी अफ़राद की तारीख़ जो है वह अख़बार-ओ-रिसालात ही हैं जिनमें उनकी ज़िन्दगी के अहम पहलू नुमायाँ होते हैं । सो क्या ज़रूरी कि हम उन बातों, उन अख़बारों, उन मैगज़ीनों को सिरे से नकार दें। मसालाई रिसालों की बात दीगर है। और फिर, मीना कुमारी का पूरा सच सिर्फ़ और सिर्फ़ मीना कुमारी ही जानती थी। चाहे फ़िल्मकार, चाहे नातेदार, चाहे कोई किताब या कोई अदीब, कोई भी यह दावा करे कि वह उनकी कहानी मुकम्मल तौर पर जानता है तो यह झूठ होगा। लिहाज़ा यहाँ लिखी बातें भी फ़साना मान कर पढ़ा जाना ही सही होगा क्योंकि इस किताब में लिखी बातें उतनी ही सच्ची हैं जितनी मीना की बाबत फैले किस्से और उतना ही फ़साना है जितना मीना की बाबत फैले क़िस्से । -सत्य व्यास ”
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