Jaya Ganga : Prem Ki Khoj Mein Ek Yatra (PB)
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फ्रांस में जब यह औपन्यासिक यात्रा-वृत्तांत प्रकाशित हुआ तो इसकी बहुत सराहना हुई। यह कृति लेखक की आन्तरिक और बाहरी दुनिया के विलय का अभूतपूर्व चित्र प्रस्तुत करती है।
बाद में लेखक ने स्वयं ही इस पुस्तक को एक फ़िल्म में रूपान्तरित किया जो कि 40 देशों में दिखाई गई तथा फ्रांस और इंग्लैंड के सिनेमाघरों में 49 सप्ताह तक चली।
पेरिस में रहनेवाले एक युवा लेखक निशान्त की हिमालय में गंगा के उत्स से शुरू की गई इस गंगा-यात्रा में जया की स्मृतिकथा साथ-साथ चलती है। यात्रा के दौरान गंगा के किनारे उसकी भेंट ज़ेहरा से होती है जो एक तवायफ़ है।
मन के भीतर जया और ज़ेहरा की छवियाँ लिये लेखक अपने मार्ग में साधुओं, नाविकों, इंजीनियरों, स्थानीय पत्रकारों, तवायफ़ों और दलालों से रू-ब-रू होता चलता है। काव्यात्मक गद्य और श्रेष्ठ पत्रकारिता के सहज संयोग का प्रतिफल यह पाठ उपन्यास भी है, आत्मकथात्मक यात्रावृत्त भी और रिपोर्ताज भी।
फ्रांस में जब यह औपन्यासिक यात्रा-वृत्तांत प्रकाशित हुआ तो इसकी बहुत सराहना हुई। यह कृति लेखक की आन्तरिक और बाहरी दुनिया के विलय का अभूतपूर्व चित्र प्रस्तुत करती है।
बाद में लेखक ने स्वयं ही इस पुस्तक को एक फ़िल्म में रूपान्तरित किया जो कि 40 देशों में दिखाई गई तथा फ्रांस और इंग्लैंड के सिनेमाघरों में 49 सप्ताह तक चली।
पेरिस में रहनेवाले एक युवा लेखक निशान्त की हिमालय में गंगा के उत्स से शुरू की गई इस गंगा-यात्रा में जया की स्मृतिकथा साथ-साथ चलती है। यात्रा के दौरान गंगा के किनारे उसकी भेंट ज़ेहरा से होती है जो एक तवायफ़ है।
मन के भीतर जया और ज़ेहरा की छवियाँ लिये लेखक अपने मार्ग में साधुओं, नाविकों, इंजीनियरों, स्थानीय पत्रकारों, तवायफ़ों और दलालों से रू-ब-रू होता चलता है। काव्यात्मक गद्य और श्रेष्ठ पत्रकारिता के सहज संयोग का प्रतिफल यह पाठ उपन्यास भी है, आत्मकथात्मक यात्रावृत्त भी और रिपोर्ताज भी।
About Author
विजय सिंह
भारतीय लेखक और फिल्मकार विजय सिंह पेरिस में रहते हैं।
सेंट स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली और इतिहास अध्ययन केन्द्र, जे.एन.यू. से इतिहास अध्ययन के बाद आप अपने शोधकार्य के लिए इकोले दे हॉट्स एटीट्यूड एन साइंसेज सोशिएल्स, पेरिस चले गए। विद्यार्थी जीवन से ही आपने ल मोंदे, ल मोंदे डिप्लोमेटिक लिबरेशन और गार्डियन आदि पत्रों में लेखन आरम्भ कर दिया था जो आज तक जारी है।
रंग निर्देशक के रूप में आपने 1976 में ‘वेटिंग फॉर बैकेट बाइ गोदो’ नाटक का निर्देशन किया। इसके कुछ वर्षों बाद आपने ‘मैन एंड एलिफैंट’ फिल्म का निर्माण (1989) किया, जिसे सौ से ज्यादा टीवी चैनलों पर दिखाया जा चुका है। पटकथा लेखक और फिल्म निर्माता के रूप में आपको ‘जया गंगा’ तथा ‘वन डॉलर करी’ फिल्मों के निर्देशन का श्रेय जाता है। ‘जया गंगा’ फिल्म पेरिस के सिनेमाघरों में लगातार 49 सप्ताह चली।
आपकी प्रकाशित पुस्तकों में ‘जया गंगा’ (1990), ‘ल नुइट पोइग नार्दे’ (1987), ‘व्हर्लपूल ऑफ़ शैडोज़’ (1992), ‘द रिवर गॉडेस’ (1994) आदि शामिल हैं। आपकी पुस्तकों के अनुवाद फ्रांसीसी तथा अन्य भाषाओं में भी हो चुके हैं।
साहित्यिक लेखन के लिए आपको प्रिक्स विला मेडिसिस हॉर्स लेस मुर्स तथा फिल्म पटकथा लेखन के लिए बोर्स लिओनार्दो डि विंसी पुरस्कार मिल चुके हैं।
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