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Baadshahi Angoothi (HB)
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Baadshahi Angoothi (PB)
Publisher:
RADHA
| Author:
Satyajit Ray, Tr. Hanskumar Tiwari
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
RADHA
Author:
Satyajit Ray, Tr. Hanskumar Tiwari
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹150 ₹149
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In stock
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ISBN:
SKU
9788183612470
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
औरंगज़ेब तब बादशाह नहीं बना था, शहज़ादा ही था; जब उसे समरकन्द की एक लड़ाई पर भेजा गया। लड़ते हुए जब उसकी जान पर बन आई तो उसके सिपहसालार ने उसकी रक्षा की। इससे खुश होकर औरंगज़ेब ने उसे अपनी एक अँगूठी बख्श दी। सैकड़ों बरस बाद वही अँगूठी आगरा में उस सिपहसालार के खानदानवालों से प्यारेलाल नामक एक रईस ने ख़रीदी; और फिर वह उसे एक डॉक्टर को भेंट कर गया…
स्वाभाविक है कि ऐसी बेशकीमती अँगूठी को हड़पने के लिए चोर-डाकू भी उसके पीछे लगे। लेकिन उससे पहले ही वह कुछ इस प्रकार गायब हुई, मानो जादू हो गया हो!
और इसके बाद शुरू होती है उसे, बल्कि कहना चाहिए, उसे चुरानेवाले व्यक्ति को खोजने की रहस्यपूर्ण यात्रा।
एक प्रकार से देखा जाए तो यह जासूसी उपन्यास है, लेकिन सत्यजित राय सरीखे लेखक और फिल्मकार की रचना-दृष्टि इतने से ही सन्तोष नहीं कर सकती। यही कारण है कि बादशाही अँगूठी के गायब होने और उसे गायब करनेवाले को खोजते हुए वे लखनऊ, हरिद्वार और ऋषिकेश की ऐतिहासिक यात्रा भी कराते हैं।
कहना न होगा कि किशोर पाठकों को ध्यान में रखकर लिखा गया यह उपन्यास दिलचस्प भी है और ज्ञानवर्धक भी।
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Description
औरंगज़ेब तब बादशाह नहीं बना था, शहज़ादा ही था; जब उसे समरकन्द की एक लड़ाई पर भेजा गया। लड़ते हुए जब उसकी जान पर बन आई तो उसके सिपहसालार ने उसकी रक्षा की। इससे खुश होकर औरंगज़ेब ने उसे अपनी एक अँगूठी बख्श दी। सैकड़ों बरस बाद वही अँगूठी आगरा में उस सिपहसालार के खानदानवालों से प्यारेलाल नामक एक रईस ने ख़रीदी; और फिर वह उसे एक डॉक्टर को भेंट कर गया…
स्वाभाविक है कि ऐसी बेशकीमती अँगूठी को हड़पने के लिए चोर-डाकू भी उसके पीछे लगे। लेकिन उससे पहले ही वह कुछ इस प्रकार गायब हुई, मानो जादू हो गया हो!
और इसके बाद शुरू होती है उसे, बल्कि कहना चाहिए, उसे चुरानेवाले व्यक्ति को खोजने की रहस्यपूर्ण यात्रा।
एक प्रकार से देखा जाए तो यह जासूसी उपन्यास है, लेकिन सत्यजित राय सरीखे लेखक और फिल्मकार की रचना-दृष्टि इतने से ही सन्तोष नहीं कर सकती। यही कारण है कि बादशाही अँगूठी के गायब होने और उसे गायब करनेवाले को खोजते हुए वे लखनऊ, हरिद्वार और ऋषिकेश की ऐतिहासिक यात्रा भी कराते हैं।
कहना न होगा कि किशोर पाठकों को ध्यान में रखकर लिखा गया यह उपन्यास दिलचस्प भी है और ज्ञानवर्धक भी।
About Author
सत्यजित राय
2 मई, 1921 को गड़पार रोड, दक्षिणी कलकत्ता (बंगाल) में जन्म। पिता सुकुमार राय एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।
प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई। पाँच साल की आयु में माँ सुप्रभा राय के साथ भवानीपुर में नाना के घर जाकर रहने लगे। सन् 1936 में बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल से मैट्रिक पास किया।
बांग्ला फ़िल्मों के अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त निदेशक होने के साथ-साथ उच्च कोटि के संगीतकार, चित्रकार, छायाकार, पत्रकार और लेखक। बच्चों के लिए विशेष तौर पर काम किया है।
'पथेर पांचाली' उनकी विश्वप्रसिद्ध बांग्ला फ़िल्म है। हिन्दी सिनेमा को भी उन्होंने ‘सद्गति’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ जैसी फ़िल्में दीं। अपनी कला-मर्मज्ञता के कारण वे कई उच्चस्तरीय राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय समितियों के पदाधिकारी रहे। ऑस्कर समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।
निधन : 23 अप्रैल, 1992
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