![](https://padhegaindia.in/wp-content/themes/woodmart/images/lazy.png)
Save: 1%
![](https://padhegaindia.in/wp-content/themes/woodmart/images/lazy.png)
Save: 20%
Jab Dharti Nagme Gayegi (PB)
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹499 ₹250
Save: 50%
In stock
Ships within:
In stock
Page Extent:
साहिर लुधियानवी के फ़िल्मी गीतों का अपना एक अलग मेयार है। उनके गीतों से हम हर मौक़े के लिए गीत चुन सकते हैं—चाहे प्रेम का इज़हार हो या जुदाई का ग़म, ईश्वर के समक्ष पीड़ा का बयान हो या फिर हास्य-व्यंग्य की धार। उनसे हम अपने दिल की कैफ़ियत को बख़ूबी बखान कर सकते हैं।
बचपन में पिता के घर से बेघर होने की त्रासदी, माँ के साथ पिता के अमानवीय बर्ताव आदि ने किशोर साहिर के अन्दर जो अवसाद का मवाद भरा था; उसने उनके पूरे जीवन को प्रभावित किया और आगे चलकर शब्दों में आकार लिया। उनके आधे-अधूरे प्रेम की पीड़ा ने भी उनके शब्दों को प्राण तथा क़लम को ख़ूबी बख़्शी, जिससे वे समाज की विसंगतियों और जीवन-जनित हर पहलू को ख़ूबसूरती व बेबाकी से उभार सके। यह साहिर की क़लम की ताक़त ही है कि फ़िल्मी नग़्मों का उनका यह संकलन संगीत के सहारे के बिना भी अपने पाठ में अपनी अदबी गुणवत्ता का क़ायल बना लेने का माद्दा रखता है।
साहिर लुधियानवी के फ़िल्मी गीतों का अपना एक अलग मेयार है। उनके गीतों से हम हर मौक़े के लिए गीत चुन सकते हैं—चाहे प्रेम का इज़हार हो या जुदाई का ग़म, ईश्वर के समक्ष पीड़ा का बयान हो या फिर हास्य-व्यंग्य की धार। उनसे हम अपने दिल की कैफ़ियत को बख़ूबी बखान कर सकते हैं।
बचपन में पिता के घर से बेघर होने की त्रासदी, माँ के साथ पिता के अमानवीय बर्ताव आदि ने किशोर साहिर के अन्दर जो अवसाद का मवाद भरा था; उसने उनके पूरे जीवन को प्रभावित किया और आगे चलकर शब्दों में आकार लिया। उनके आधे-अधूरे प्रेम की पीड़ा ने भी उनके शब्दों को प्राण तथा क़लम को ख़ूबी बख़्शी, जिससे वे समाज की विसंगतियों और जीवन-जनित हर पहलू को ख़ूबसूरती व बेबाकी से उभार सके। यह साहिर की क़लम की ताक़त ही है कि फ़िल्मी नग़्मों का उनका यह संकलन संगीत के सहारे के बिना भी अपने पाठ में अपनी अदबी गुणवत्ता का क़ायल बना लेने का माद्दा रखता है।
About Author
साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च, 1921 को लुधियाना में हुआ।
प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘तल्ख़ियाँ’, ‘परछाइयाँ’, ‘गाता जाए बंजारा’, ‘आओ कि कोई ख़्वाब बुनें’। ये सभी पुस्तकें राजकमल से प्रकाशित ‘साहिर समग्र’ में शामिल हैं। कुछ असंकलित रचनाएँ भी उसमें शामिल हुई हैं। लेकिन पुस्तक ‘गाता जाए बंजारा’ से इस मायने में अलग है, क्योंकि उसमें साहिर के सभी गीत शामिल नहीं थे। इसमें उनके हिन्दी-पंजाबी सभी गीत एकत्र कर दिए गए हैं।
साहिर ने ‘अदब-ए-लतीफ़’, ‘शाहकार’, ‘सवेरा’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। ‘सामराज’ और ‘कार्ल मार्क्स’ नामक दो किताबों का अंग्रेज़ी से उर्दू में अनुवाद भी किया।
उन्हें ‘पद्मश्री’, ‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’, ‘महाराष्ट्र स्टेट अवार्ड’, सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में दो बार ‘फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड’ आदि से सम्मानित किया गया था। 25 अक्टूबर, 1980 को उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
Reviews
There are no reviews yet.
Reviews
There are no reviews yet.