Yogphal

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अरुण कमल
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
अरुण कमल
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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सुपरिचित कवि अरुण कमल का यह संग्रह जीवन के अनेक अनुभवों, प्रसंगों और चरित्रों का योगफल है। इसकी मूल प्रतिज्ञा ही यही है कि प्रत्येक जीवन समस्त जीव-जगत का, वरन् भुवन के प्रत्येक तृण-गुल्म का, समाहार है। इसलिए कोई भी इयत्ता या पहचान शेष सबको अपने में जोड़कर ही पूर्णता प्राप्त करती हैं। अतिरंजना का जोखिम उठाते हुए कहा जा सकता है कि इसीलिए एक कवि, श्रेष्ठ कवि, सम्पूर्ण मनुष्यता का योगफल है। यहाँ अरुण कमल की कविता के प्रायः सभी पूर्वपरिचित अवयव या स्वर उपस्थित हैं। लेकिन जो बाकी सबसे किंचित् भिन्न और नवीन है वह है कविता का बहुमुखी होना। वह एक साथ कई दिशाओं में खुलती है। एक ही रश्मि अनेक पहल और कटावों से आती-जाती है। पहली कविता ‘योगफल’ से लेकर अन्तिम कविता ‘प्रलय’ तक इसे देखा जा सकता है जहाँ दोनों तरह के खदान हैं- धरती के ऊपर खुले में तथा भीतर गहरे पृथ्वी की नाभि तक। हर अनुभव को उसके उद्गम और फुनगियों तक टोहने का उद्यम । इसीलिए यहाँ कुछ भी त्याज्य या अपथ्य नहीं है-न तो रोज-ब-रोज के राजनीतिक प्रकरण, जो कई बार हमारे जीने या मरने की वजह तै करते हैं, न ही रात के तीसरे पहर का स्वायत्त एकान्त । द्वन्द्वों एवं विरुद्धों का समावेश करती यह एक सम्पूर्ण कविता है- ‘नीचे धाह ऊपर शीत’ ।

इस कविता संग्रह में एक और नया आयाम देखा जा सकता है। अरुण कमल की अब तक की सबसे लम्बी दो कविताओं के साथ-साथ कुछ कविता श्रृंखलाएँ भी हैं जिससे लगता है कि कवि के लिए अब एक अनुभव या भाव पहले से अधिक परतदार एवं संश्लिष्ट हुआ है और वह एक ही निर्मिति में पूर्ण नहीं होता, बल्कि एक मूर्ति बनने के बाद भी कुछ मिट्टी बच रहती है, बची रह जाती है । यहाँ ‘प्रलय’ शीर्षक कविता को भी देखा जा सकता है जो कई बार स्वचालित सी लगती है और बिना किसी कथानक या मिथक के दैनन्दिन प्रसंगों से आकार ग्रहण करती हुई लगभग अनियोजित बसावट की तरह बढ़ती है और लगता है अभी और खाली जगहें चारों तरफ रह गयी हैं। यानी हर योगफल अन्ततः अपूर्ण है ।

इन कविताओं की एक और विशेषता अनेक अन्तःध्वनियों की उपस्थिति है। अनेक पूर्व स्मृतियाँ और अनुगूँजें हैं।

अरुण कमल की कविताएँ अपनी गज्झिन बुनावट, प्रत्येक शब्द की अपरिहार्यता और शिल्प-प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं। गहन ऐन्द्रिकता, अनुभव-विस्तार और अविचल प्रतिरोधी स्वर के लिए ख्यात अरुण कमल का यह संग्रह हमारे समय के सभी बेघरों, अनाथों और सताये हुए लोगों का आवास है-एक मार्फत पता ।

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सुपरिचित कवि अरुण कमल का यह संग्रह जीवन के अनेक अनुभवों, प्रसंगों और चरित्रों का योगफल है। इसकी मूल प्रतिज्ञा ही यही है कि प्रत्येक जीवन समस्त जीव-जगत का, वरन् भुवन के प्रत्येक तृण-गुल्म का, समाहार है। इसलिए कोई भी इयत्ता या पहचान शेष सबको अपने में जोड़कर ही पूर्णता प्राप्त करती हैं। अतिरंजना का जोखिम उठाते हुए कहा जा सकता है कि इसीलिए एक कवि, श्रेष्ठ कवि, सम्पूर्ण मनुष्यता का योगफल है। यहाँ अरुण कमल की कविता के प्रायः सभी पूर्वपरिचित अवयव या स्वर उपस्थित हैं। लेकिन जो बाकी सबसे किंचित् भिन्न और नवीन है वह है कविता का बहुमुखी होना। वह एक साथ कई दिशाओं में खुलती है। एक ही रश्मि अनेक पहल और कटावों से आती-जाती है। पहली कविता ‘योगफल’ से लेकर अन्तिम कविता ‘प्रलय’ तक इसे देखा जा सकता है जहाँ दोनों तरह के खदान हैं- धरती के ऊपर खुले में तथा भीतर गहरे पृथ्वी की नाभि तक। हर अनुभव को उसके उद्गम और फुनगियों तक टोहने का उद्यम । इसीलिए यहाँ कुछ भी त्याज्य या अपथ्य नहीं है-न तो रोज-ब-रोज के राजनीतिक प्रकरण, जो कई बार हमारे जीने या मरने की वजह तै करते हैं, न ही रात के तीसरे पहर का स्वायत्त एकान्त । द्वन्द्वों एवं विरुद्धों का समावेश करती यह एक सम्पूर्ण कविता है- ‘नीचे धाह ऊपर शीत’ ।

इस कविता संग्रह में एक और नया आयाम देखा जा सकता है। अरुण कमल की अब तक की सबसे लम्बी दो कविताओं के साथ-साथ कुछ कविता श्रृंखलाएँ भी हैं जिससे लगता है कि कवि के लिए अब एक अनुभव या भाव पहले से अधिक परतदार एवं संश्लिष्ट हुआ है और वह एक ही निर्मिति में पूर्ण नहीं होता, बल्कि एक मूर्ति बनने के बाद भी कुछ मिट्टी बच रहती है, बची रह जाती है । यहाँ ‘प्रलय’ शीर्षक कविता को भी देखा जा सकता है जो कई बार स्वचालित सी लगती है और बिना किसी कथानक या मिथक के दैनन्दिन प्रसंगों से आकार ग्रहण करती हुई लगभग अनियोजित बसावट की तरह बढ़ती है और लगता है अभी और खाली जगहें चारों तरफ रह गयी हैं। यानी हर योगफल अन्ततः अपूर्ण है ।

इन कविताओं की एक और विशेषता अनेक अन्तःध्वनियों की उपस्थिति है। अनेक पूर्व स्मृतियाँ और अनुगूँजें हैं।

अरुण कमल की कविताएँ अपनी गज्झिन बुनावट, प्रत्येक शब्द की अपरिहार्यता और शिल्प-प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं। गहन ऐन्द्रिकता, अनुभव-विस्तार और अविचल प्रतिरोधी स्वर के लिए ख्यात अरुण कमल का यह संग्रह हमारे समय के सभी बेघरों, अनाथों और सताये हुए लोगों का आवास है-एक मार्फत पता ।

About Author

अरुण कमल 15 फरवरी, 1954, नासरीगंज, रोहतास (बिहार) में जन्म। छह कविता पुस्तकें अपनी केवल धार, सबूत, नये इलाके में, पुतली में संसार, मैं वो शंख महाशंख और योगफल। तीन कविता चयन भी प्रकाशित। दो आलोचना पुस्तकें कविता और समय तथा गोलमेज एवं साक्षात्कारों का एक संग्रह कथोपकथन। समकालीन भारतीय कविता के अंग्रेजी अनुवाद की पुस्तक वॉयसेज तथा वियतनामी कवि तो हू की कविताओं-टिप्पणियों के अनुवाद की एक पुस्तिका । मायकोव्स्की की आत्मकथा का अनुवाद भी प्रकाशित। अनेक देशी-विदेशी कवियों-विचारकों के हिन्दी में अनुवाद किये। नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर, मुक्तिबोध, केदारनाथ सिंह की कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद भी छपे। बच्चों के लिए लिखे गये लेखों की एक किताब शीघ्र प्रकाश्य- ये सभी चकमक, प्लूटो तथा सायकिल में छपे। नवभारत टाइम्स (पटना), प्रभात खबर (राँची), मराठी सकाल (पुणे) में सामयिक विषयों पर स्तम्भ-लेखन। 'लिटरेट वर्ल्ड' में साहित्यिक विषयों पर स्तम्भ लेखन। आलोचना पत्रिका का तीस अंकों तक सम्पादन (नामवर सिंह के प्रधान सम्पादकत्व में)।खुदाबख्श लाइब्रेरी जर्नल के सम्पादक मण्डल में। अनेक भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में कविताएँ अनूदित । कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, शमशेर सम्मान, नये इलाके में पुस्तक के लिए 1998 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार, नागार्जुन पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद् का समग्र कृतित्व सम्मान एवं तक्षशिला बाल साहित्य सृजनपीठ वृत्ति । पटना विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक रहे। सम्पर्क : 9931443866, 9955998076 ई-मेल: arankamal1954@gmail.com

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