Vyasparva

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
दुर्गा भगवत
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
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दुर्गा भगवत
Language:
Hindi
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Hardback

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128

व्यास पर्व –
‘महाभारत’ का अध्ययन, मनन और उसकी व्याख्या किसी के लिए भी एक चुनौती है। उसके सामाजिक आशय के सम्यक् स्वरूप को पहचानना अथवा विशद रूप में समझाना तो और भी कठिन है। मराठी भाषा की प्रमुख चिन्तक साहित्यकार दुर्गा भागवत ने ‘महाभारत’ के सत्य को उसके प्रमुख पात्रों के माध्यम से अत्यन्त सहज और लालित्यपूर्ण ढंग से व्याख्यायित किया है जिससे यह पुस्तक पठनीय ही नहीं सामान्य पाठकों के लिए भी बोधगम्य बन गयी है।
‘व्यासपर्व’ गहन चिन्तन और ललित अभिव्यक्ति के सहज सामंजस्य से निर्मित एक मनोरम रचना है जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि करुणा जब प्राणों में बस जाती है तभी धर्म का दर्शन होता है। उन्होंने इस जीवन सत्य की ओर भी इंगित किया है कि मनुष्य मूलतः मनुष्य है; उसका लक्ष्य भी मनुष्य ही है।
श्रीकृष्ण, भीष्म, द्रोण, गान्धारी, अश्वत्थामा, अर्जुन, दुर्योधन, कर्ण, विदुर, द्रौपदी, एकलव्य आदि की अद्भुत झाँकी दुर्गा भागवत की लेखनी से मुखरित हुई है, जिनमें व्यक्तित्व और इतिहास ही नहीं हमारा समय भी मुखरित होता है।
निःसन्देह ‘व्यासपर्व’ भारतीय संस्कृति की एक बहुआयामी व्याख्या है। यह कृति गद्य भी है और काव्य भी, जो ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ के समन्वित स्वरूप को उद्भासित करती है।
मूल मराठी की इस कृति का सरस अनुवाद प्रस्तुत किया है श्री वसन्त देव ने। अपनी नयी साज-सजा के साथ, पाठकों को समर्पित है इसका यह पुनर्नवा संस्करण!

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Description

व्यास पर्व –
‘महाभारत’ का अध्ययन, मनन और उसकी व्याख्या किसी के लिए भी एक चुनौती है। उसके सामाजिक आशय के सम्यक् स्वरूप को पहचानना अथवा विशद रूप में समझाना तो और भी कठिन है। मराठी भाषा की प्रमुख चिन्तक साहित्यकार दुर्गा भागवत ने ‘महाभारत’ के सत्य को उसके प्रमुख पात्रों के माध्यम से अत्यन्त सहज और लालित्यपूर्ण ढंग से व्याख्यायित किया है जिससे यह पुस्तक पठनीय ही नहीं सामान्य पाठकों के लिए भी बोधगम्य बन गयी है।
‘व्यासपर्व’ गहन चिन्तन और ललित अभिव्यक्ति के सहज सामंजस्य से निर्मित एक मनोरम रचना है जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि करुणा जब प्राणों में बस जाती है तभी धर्म का दर्शन होता है। उन्होंने इस जीवन सत्य की ओर भी इंगित किया है कि मनुष्य मूलतः मनुष्य है; उसका लक्ष्य भी मनुष्य ही है।
श्रीकृष्ण, भीष्म, द्रोण, गान्धारी, अश्वत्थामा, अर्जुन, दुर्योधन, कर्ण, विदुर, द्रौपदी, एकलव्य आदि की अद्भुत झाँकी दुर्गा भागवत की लेखनी से मुखरित हुई है, जिनमें व्यक्तित्व और इतिहास ही नहीं हमारा समय भी मुखरित होता है।
निःसन्देह ‘व्यासपर्व’ भारतीय संस्कृति की एक बहुआयामी व्याख्या है। यह कृति गद्य भी है और काव्य भी, जो ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ के समन्वित स्वरूप को उद्भासित करती है।
मूल मराठी की इस कृति का सरस अनुवाद प्रस्तुत किया है श्री वसन्त देव ने। अपनी नयी साज-सजा के साथ, पाठकों को समर्पित है इसका यह पुनर्नवा संस्करण!

About Author

दुर्गा भावगत - जन्म: 10 फ़रवरी, 1910 में, इन्दौर (म.प्र.) में। शिक्षा एवं कार्यक्षेत्र: एम.ए. (संस्कृत), मुम्बई से 1932 में। 1937 से 1940 तक मुम्बई के 'स्कूल ऑफ़ इनकानॉमिक्स एंड सोसालॉजी' में शोधकार्य। तदुपरान्त लोक-साहित्य के अध्ययन एवं लेखन में अनवरत संलग्न। 1957 में मराठी शोध-पत्रिका 'साहित्य सहकार' की सम्पादिका। 1958-59 में पूना में 'गोखले इन्स्टीट्यूट ऑफ़ इकानॉमिक्स एंड पॉलिटिक्स' के समाजशास्त्र विभाग की अध्यक्ष। 1976 में अ. भा. मराठी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष निर्वाचित। कृतियाँ: अब तक पैंतीस से अधिक कृतियों का प्रकाशन, इनमें से आठ अंग्रेज़ी में हैं। 'ऋतुचक्र', 'भावमुद्रा', 'व्यासपर्व', 'पायस', 'पूर्वा', 'तुलसीलग्न', 'धर्म आणि लोक साहित्य', 'रूपरंग', 'सत्यं शिवं सुन्दरम्', 'अश्वल' आदि विशेष चर्चित। 'पायस' साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत। 7 मई, 2002 को देहवसान।

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