Vikalang Shraddha Ka Daur (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Harishankar Parsai
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

396

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हरिशंकर परसाई ने अपनी एक पुस्तक के लेखकीय वक्तव्य में कहा था–‘व्यंग्य’ अब ‘शूद्र’ से ‘क्षत्रिय’ मान लिया गया है। विचारणीय है कि वह शूद्र से क्षत्रिय हुआ है, ब्राह्मण नहीं, क्योंकि ब्राह्मण ‘कीर्तन’ करता है।
निस्सन्देह व्यंग्य कीर्तन करना नहीं जानता, पर कीर्तन को और कीर्तन करनेवालों को खूब पहचानता है। कैसे-कैसे अवसर, कैसे-कैसे वाद्य और कैसी-कैसी तानें–जरा-सा ध्यान देंगे तो अचीन्हा नहीं रहेगा विकलांग श्रद्धा का (यह) दौर।
विकलांग श्रद्धा का दौर  के व्यंग्य अपनी कथात्मक सहजता और पैनेपन में अविस्मरणीय हैं, ऐसे कि एक बार पढक़र इनका मौखिक पाठ किया जा सके। आए दिन आसपास घट रही सामान्य-सी घटनाओं से असामान्य समय-सन्दर्भों और व्यापक मानव-मूल्यों की उद्भावना न सिर्फ रचनाकार को मूल्यवान बनाती है बल्कि व्यंग्य-विधा को भी नई ऊँचाइयाँ सौंपती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत कृति का महत्त्व और भी ज्यादा है।

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Description

हरिशंकर परसाई ने अपनी एक पुस्तक के लेखकीय वक्तव्य में कहा था–‘व्यंग्य’ अब ‘शूद्र’ से ‘क्षत्रिय’ मान लिया गया है। विचारणीय है कि वह शूद्र से क्षत्रिय हुआ है, ब्राह्मण नहीं, क्योंकि ब्राह्मण ‘कीर्तन’ करता है।
निस्सन्देह व्यंग्य कीर्तन करना नहीं जानता, पर कीर्तन को और कीर्तन करनेवालों को खूब पहचानता है। कैसे-कैसे अवसर, कैसे-कैसे वाद्य और कैसी-कैसी तानें–जरा-सा ध्यान देंगे तो अचीन्हा नहीं रहेगा विकलांग श्रद्धा का (यह) दौर।
विकलांग श्रद्धा का दौर  के व्यंग्य अपनी कथात्मक सहजता और पैनेपन में अविस्मरणीय हैं, ऐसे कि एक बार पढक़र इनका मौखिक पाठ किया जा सके। आए दिन आसपास घट रही सामान्य-सी घटनाओं से असामान्य समय-सन्दर्भों और व्यापक मानव-मूल्यों की उद्भावना न सिर्फ रचनाकार को मूल्यवान बनाती है बल्कि व्यंग्य-विधा को भी नई ऊँचाइयाँ सौंपती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत कृति का महत्त्व और भी ज्यादा है।

About Author

हरिशंकर परसाई

22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में जन्मे हरिशंकर पारसाई का आरंभिक जीवन कठिन संघर्ष का रहा । पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया और फिर 'डिप्लोमा इन टीचिंग' का कोर्स भी ।

आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं -- हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का ज़माना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इक उम्र से वाकिफ  हैं, जाने -पहचाने लोग, कहत कबीर, ठिठुरता हुआ गणतंत्र (व्यंग्य निबंध-संग्रह); पूछो परसाई से (साक्षात्कार)।

‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में आपकी सभी रचनाएँ संकलित हैं ।

आपकी रचनाओं के अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओँ और अंग्रेजी में हुए हैं ।

आपको केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार, मध्य प्रदेश के शिखर सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।

निधन : 10 अगस्त, 1995

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