Vibhram Aur Yathartha (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Christopher Caudwell
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Christopher Caudwell
Language:
Hindi
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Hardback

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‘विभ्रम और यथार्थ’ मार्क्सवादी दृष्टिकोण से लिखी गई काव्यशास्त्र की सम्भवतः पहली और हमारे युग की विशिष्टतम पुस्तक है। इसमें कविता की तो चर्चा है ही, कविता के स्रोतों की भी चर्चा की गई है। कविता भाषा में लिखी जाती है, इसलिए इस पुस्तक में भाषा के स्रोतों का भी विवेचन किया गया है। भाषा मनुष्य को समाज से प्राप्त होती है। एक ऐसा उपकरण है जिसके माध्यम से लोग न केवल अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, एक-दूसरे को प्रेरित और प्रोत्साहित भी करते हैं, इसलिए भाषा समाज में रहनेवाले मनुष्यों की प्रेरणा का भी उपकरण है। यानी कविता के स्रोतों का अध्ययन समाज के अध्ययन का अंग है, उसे समाज से अलग नहीं किया जा सकता। साहित्य समाज की उपज है, यह कोई नई स्थापना नहीं है। किन्तु मार्क्सवादी समीक्षा-प्रणाली में इसका निहितार्थ यह होता है ‍कि साहित्य या कला की आलोचना के लिए आलोचक को साहित्य से बाहर जाना पड़ता है। उसके लिए साहित्य केन्द्रीय महत्त्व का होता है, किन्तु भौतिक विज्ञान, नृतत्त्वशास्त्र इतिहास और दर्शनशास्त्र आदि विषय में भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। अतः इस पुस्तक में साहित्य के सैद्धान्तिक अध्ययन के लिए विशुद्ध सौन्दर्यशास्त्रीय दृष्टिकोण के निषेध और साहित्य अथवा कविता के मूल्यों को साहित्येतर मूल्यों के सन्दर्भ में देखने का आग्रह किया गया है।
कॉडवेल इस बात की लगातार वकालत करते दिखते हैं कि कला को कला के भीतर से नहीं, अपितु उसके बाहर से (यानी समाज के भीतर से) देखना चाहिए। उनके मतानुसार, कला या साहित्य की आलोचना शुद्ध सर्जना अथवा शुद्ध रसास्वादन से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें एक समाजशास्त्रीय तत्त्व निहित होता है। वस्तुतः साहित्य के हर जिज्ञासु पाठक के लिए यह अत्यंत आवश्यक और उपयोगी पुस्तक है।

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Description

‘विभ्रम और यथार्थ’ मार्क्सवादी दृष्टिकोण से लिखी गई काव्यशास्त्र की सम्भवतः पहली और हमारे युग की विशिष्टतम पुस्तक है। इसमें कविता की तो चर्चा है ही, कविता के स्रोतों की भी चर्चा की गई है। कविता भाषा में लिखी जाती है, इसलिए इस पुस्तक में भाषा के स्रोतों का भी विवेचन किया गया है। भाषा मनुष्य को समाज से प्राप्त होती है। एक ऐसा उपकरण है जिसके माध्यम से लोग न केवल अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, एक-दूसरे को प्रेरित और प्रोत्साहित भी करते हैं, इसलिए भाषा समाज में रहनेवाले मनुष्यों की प्रेरणा का भी उपकरण है। यानी कविता के स्रोतों का अध्ययन समाज के अध्ययन का अंग है, उसे समाज से अलग नहीं किया जा सकता। साहित्य समाज की उपज है, यह कोई नई स्थापना नहीं है। किन्तु मार्क्सवादी समीक्षा-प्रणाली में इसका निहितार्थ यह होता है ‍कि साहित्य या कला की आलोचना के लिए आलोचक को साहित्य से बाहर जाना पड़ता है। उसके लिए साहित्य केन्द्रीय महत्त्व का होता है, किन्तु भौतिक विज्ञान, नृतत्त्वशास्त्र इतिहास और दर्शनशास्त्र आदि विषय में भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। अतः इस पुस्तक में साहित्य के सैद्धान्तिक अध्ययन के लिए विशुद्ध सौन्दर्यशास्त्रीय दृष्टिकोण के निषेध और साहित्य अथवा कविता के मूल्यों को साहित्येतर मूल्यों के सन्दर्भ में देखने का आग्रह किया गया है।
कॉडवेल इस बात की लगातार वकालत करते दिखते हैं कि कला को कला के भीतर से नहीं, अपितु उसके बाहर से (यानी समाज के भीतर से) देखना चाहिए। उनके मतानुसार, कला या साहित्य की आलोचना शुद्ध सर्जना अथवा शुद्ध रसास्वादन से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें एक समाजशास्त्रीय तत्त्व निहित होता है। वस्तुतः साहित्य के हर जिज्ञासु पाठक के लिए यह अत्यंत आवश्यक और उपयोगी पुस्तक है।

About Author

क्रिस्टोफर कॉडवेल

जन्म : 20 अक्तूबर, 1907 को प्युटनी में। साहित्येतर, पूरा नाम क्रिस्टोफर सेंट जान स्प्रिग। ईलिंग के बेनेडिक्टाइन स्कूल में पढ़ाई। साढ़े सोलह वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ा।

तीन वर्ष तक ‘यार्कशायर आब्जर्वर’ में संवाददाता रहे। वापस लन्दन लौटकर वैमानिकी के एक प्रकाशन-संस्थान में सम्पादक के रूप में कार्य, बाद में वहीं डायरेक्टर हुए।

असाधारण प्रतिभा के धनी, प्रख्यात मार्क्सवादी चिन्तक और लेखक। राजनीतिक कार्यकर्ता और सैनिक के रूप में भी उल्लेखनीय कार्य। कम्युनिस्ट पार्टी की पोप्लर शाखा में सक्रिय भूमिका निभाते हुए उसके अग्रणी नेता की हैसियत से स्पेन के गृहयुद्ध में हिस्सेदारी। इंटरनेशनल ब्रिगेड में भर्ती हुए और 12 फरवरी, 1937 को जरमा के मोर्चे पर मृत्यु।

एक बहुआयामी लेखकीय व्यक्तित्व के नाते 25 वर्ष की आयु से पहले ही वैमानिकी पर पाँच पाठ्य पुस्तकें, सात उपन्यास तथा कुछ कविताएँ और कहानियाँ प्रकाशित। मई, 1935 में क्रिस्टोफर कॉडवेल नाम से ‘दिस माई हैंड’ नामक उपन्यास का प्रकाशन। उपन्यासों और पाठ्य-पुस्तकों के अलावा साहित्य और संस्कृति विषयक प्रायः सभी कृतियों का प्रकाशन मरणोपरान्त। मुख्य कृतियाँ हैं : ‘विभ्रम और यथार्थ’ (इल्यूज़न एंड रियलिटी); ‘मरणासन्न संस्कृति का अध्ययन’ (स्टडीज़ इन ए डाइंग कल्चर), ‘क्राइसिस इन फीजिक्स’ तथा ‘मरणासन्न संस्कृति का कुछ और अध्ययन’ (फर्दर स्टडीज इन ए डाइंग कल्चर)।

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