Via Nayi Sadi (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Shriprakash Shukla
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Shriprakash Shukla
Language:
Hindi
Format:
Hardback

396

Save: 20%

Out of stock

Ships within:
1-4 Days

Out of stock

Weight 0.28 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789391950019 Category
Category:
Page Extent:

‘वाया नई सदी’ दस्तावेज़ है समय की असहजताओं और अस्वाभाविकताओं का जिन्हें हमने जीवन की स्वाभाविक मुद्राओं की तरह स्वीकार कर लिया है। ये कविताएँ इस स्वीकृति के विरुद्ध उठी मुट्ठियों की तरह हैं। यह समय जहाँ बोलने, चीखने और विरोध करने पर लगातार कठोर होती पाबन्दियाँ हमारी चुप्पियों पर हँसने लगी हैं, और हम प्यार को, जनतन्त्र को, मानवीयता को धीरे-धीरे छीजते देख रहे हैं, और ख़ामोश हैं।
‘हमारे समय के करुण इतिहास पर/हिंसा की तरह दर्ज अभिलाषाओं में/महामौन की तरह खड़ी है एक गाय/जो अभी-अभी खूँटे पर आई है/लहूलुहान’—‘गाय’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ भारत की नयी सदी की उस महाविडम्बना की ओर संकेत करती है जहाँ करुणा में रसे-बसे सांस्कृतिक प्रतीकों को हिंसक बिम्बों में बदलने की कोशिश बाक़ायदा सत्ता के इशारों पर हो रही है और समाज, जैसे कि उसे इसी का इंतज़ार था, इस प्रक्रिया को पूरा करने में जुटा हुआ है : ‘उनमें ग़ज़ब की सामूहिक सहमति है’, और ‘एक सीधी सरल गाय/हिंसक पशु में बदल जाती है।’
श्रीप्रकाश शुक्ल भारतीयता के इस क्षरण के प्रति अपनी असहमति, अपना प्रतिरोध दर्ज कराना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम बोलें, ‘चुप्पी के काइएँपन से दूसरे की हत्या करने से बेहतर है/बोल-बोलकर ख़ुद के भीतर जमी काइयों का वध करना।’ वे कहते हैं कि ‘बोलता आदमी जब चुप हो जाए/तो समझिए कि इस व्यवस्था में एक तानाशाह का जन्म हो चुका है/जो हमारे मुँह से प्रवेश करता है और जीभ को चीरता हुआ/अंतड़ियों में उतर जाता है।’ इसीलिए वे एक मुखर आदमी के पक्ष में अपना बयान देते हैं, ‘मनुष्यों के मुद्दे राजनीति से बड़े होते हैं/और अर्थनीति से ज़्यादा उलझे हुए/…कि लोकतंत्र के मुद्दे भुजा से नहीं/भाषा से तय होते हैं।’
श्रीप्रकाश शुक्ल के इस नए संग्रह में कई कविताएँ ऐसी हैं जो इस विचित्र सदी को सीधे-सीधे सम्बोधित हैं और कई ऐसी जो समय के शोर में बिला रही मनुष्यता की सरस, सहज, सकारात्मक भंगिमाओं को आवाज़ देती हैं। उनके ‘नहीं होने’ को रेखांकित करती हैं ताकि हम उन्हें लौटा लाएँ। कोरोना काल के भीषण विद्रूप भी इन कविताओं में अंकित हुए हैं, और प्रकृति के साहचर्य से पल्लवित संवेदनाएँ भी। लेकिन ‘वाया’ की ओट से समय की लय को भंग करनेवाली ताक़तों को लेकर चेतावनी कहीं धूमिल नहीं पड़ती : ‘बादल होंगे लेकिन नमी नहीं होगी/…रक्षक होंगे लेकिन रक्षार्थ कुछ नहीं होगा…/और तब वे अपने वर्तमान से मुक्त होकर/एक शानदार विरासत का जश्न मनाएँगे/…मानव-मुक्त विकास का जश्न!’

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Via Nayi Sadi (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

‘वाया नई सदी’ दस्तावेज़ है समय की असहजताओं और अस्वाभाविकताओं का जिन्हें हमने जीवन की स्वाभाविक मुद्राओं की तरह स्वीकार कर लिया है। ये कविताएँ इस स्वीकृति के विरुद्ध उठी मुट्ठियों की तरह हैं। यह समय जहाँ बोलने, चीखने और विरोध करने पर लगातार कठोर होती पाबन्दियाँ हमारी चुप्पियों पर हँसने लगी हैं, और हम प्यार को, जनतन्त्र को, मानवीयता को धीरे-धीरे छीजते देख रहे हैं, और ख़ामोश हैं।
‘हमारे समय के करुण इतिहास पर/हिंसा की तरह दर्ज अभिलाषाओं में/महामौन की तरह खड़ी है एक गाय/जो अभी-अभी खूँटे पर आई है/लहूलुहान’—‘गाय’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ भारत की नयी सदी की उस महाविडम्बना की ओर संकेत करती है जहाँ करुणा में रसे-बसे सांस्कृतिक प्रतीकों को हिंसक बिम्बों में बदलने की कोशिश बाक़ायदा सत्ता के इशारों पर हो रही है और समाज, जैसे कि उसे इसी का इंतज़ार था, इस प्रक्रिया को पूरा करने में जुटा हुआ है : ‘उनमें ग़ज़ब की सामूहिक सहमति है’, और ‘एक सीधी सरल गाय/हिंसक पशु में बदल जाती है।’
श्रीप्रकाश शुक्ल भारतीयता के इस क्षरण के प्रति अपनी असहमति, अपना प्रतिरोध दर्ज कराना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम बोलें, ‘चुप्पी के काइएँपन से दूसरे की हत्या करने से बेहतर है/बोल-बोलकर ख़ुद के भीतर जमी काइयों का वध करना।’ वे कहते हैं कि ‘बोलता आदमी जब चुप हो जाए/तो समझिए कि इस व्यवस्था में एक तानाशाह का जन्म हो चुका है/जो हमारे मुँह से प्रवेश करता है और जीभ को चीरता हुआ/अंतड़ियों में उतर जाता है।’ इसीलिए वे एक मुखर आदमी के पक्ष में अपना बयान देते हैं, ‘मनुष्यों के मुद्दे राजनीति से बड़े होते हैं/और अर्थनीति से ज़्यादा उलझे हुए/…कि लोकतंत्र के मुद्दे भुजा से नहीं/भाषा से तय होते हैं।’
श्रीप्रकाश शुक्ल के इस नए संग्रह में कई कविताएँ ऐसी हैं जो इस विचित्र सदी को सीधे-सीधे सम्बोधित हैं और कई ऐसी जो समय के शोर में बिला रही मनुष्यता की सरस, सहज, सकारात्मक भंगिमाओं को आवाज़ देती हैं। उनके ‘नहीं होने’ को रेखांकित करती हैं ताकि हम उन्हें लौटा लाएँ। कोरोना काल के भीषण विद्रूप भी इन कविताओं में अंकित हुए हैं, और प्रकृति के साहचर्य से पल्लवित संवेदनाएँ भी। लेकिन ‘वाया’ की ओट से समय की लय को भंग करनेवाली ताक़तों को लेकर चेतावनी कहीं धूमिल नहीं पड़ती : ‘बादल होंगे लेकिन नमी नहीं होगी/…रक्षक होंगे लेकिन रक्षार्थ कुछ नहीं होगा…/और तब वे अपने वर्तमान से मुक्त होकर/एक शानदार विरासत का जश्न मनाएँगे/…मानव-मुक्त विकास का जश्न!’

About Author

श्रीप्रकाश शुक्ल

श्रीप्रकाश शुक्ल का जन्म 18 मई, 1965 को सोनभद्र, उत्तर प्रदेश के बरवाँ गाँव में हुआ।

उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) की डिग्री ली। पी-एच.डी. भी वहीं से किया।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—अपनी तरह के लोग, जहाँ सब शहर नहीं होता, बोली बात, रेत में आकृतियाँ, ओरहन और अन्य कविताएँ, कवि ने कहा, क्षीरसागर में नींद (कविता-संग्रह); साठोत्तरी हिन्दी कविता में लोक सौन्दर्य, नामवर की धरती, हजारीप्रसाद द्विवेदी : एक जागतिक आचार्य, महामारी और कविता (आलोचना)। उनकी कविताओं के अनुवाद अंग्रेजी, पंजाबी और मराठी में हुए हैं। साहित्यिक ‘परिचय’ पत्रिका का सम्पादन।

उन्हें वर्तमान साहित्य का ‘मलखानसिंह सिसोदिया पुरस्कार’, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘नरेश मेहता कविता पुरस्कार’, ‘विजयदेव नारायण साही कविता पुरस्कार’ और ‘शमशेर सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है।

सम्प्रति : वर्तमान में बी.एच.यू. के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं तथा भोजपुरी अध्ययन केन्द्र, बी.एच.यू. के समन्वयक (Co-ordinator) हैं।

सम्पर्क : सुमेधस, 909, काशीपुरम कॉलोनी, सीरगोवर्धन, वाराणसी- 221011

ईमेल : shriprakashshuklabhu@gmail.com

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Via Nayi Sadi (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED