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Pratinidhi Kavitayen : Harivanshrai Bachhan (PB)
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Veerangana Jhalkari Bai (PB)
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Veerangana Jhalkari Bai (HB)
Publisher:
RADHA
| Author:
Mohandas Naimisharay
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
₹395 ₹316
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ISBN:
SKU
9788171198610
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीरांगना झलकारी बाई का महत्त्वपूर्ण प्रसंग हमें 1857 के उन स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है, जो इतिहास में भूले-बिसरे हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेलियों में से एक थी और झलकारी बाई ने समर्पित रूप में न सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया बल्कि झाँसी की रक्षा में अंग्रेजों का सामना भी किया।
झलकारी बाई दलित-पिछड़े समाज से थीं और निस्वार्थ भाव से देश-सेवा में रहीं। ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना हमें जरूरी है। इस नाते भी कि जो जातियाँ उस समय हाशिये पर थीं, उन्होंने समय-समय पर देश पर आई विपत्ति में अपनी जान की परवाह न कर बढ़- चढ़कर साथ दिया। वीरांगना झलकारी बाई स्वतंत्रता सेनानियों की उसी शंृखला की महत्त्वपूर्ण कड़ी रही हैं।
इस उपन्यास को लिखने के लिए लेखक ने सम्बन्धित ऐतिहासिक और सामाजिक परिस्थितियों पर शोध कार्य के साथ स्वयं झाँसी जाकर झलकारी बाई के परिवार के लोगों, रिश्तेदारों आदि से भी मुलाकात की है।
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Description
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीरांगना झलकारी बाई का महत्त्वपूर्ण प्रसंग हमें 1857 के उन स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है, जो इतिहास में भूले-बिसरे हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेलियों में से एक थी और झलकारी बाई ने समर्पित रूप में न सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया बल्कि झाँसी की रक्षा में अंग्रेजों का सामना भी किया।
झलकारी बाई दलित-पिछड़े समाज से थीं और निस्वार्थ भाव से देश-सेवा में रहीं। ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना हमें जरूरी है। इस नाते भी कि जो जातियाँ उस समय हाशिये पर थीं, उन्होंने समय-समय पर देश पर आई विपत्ति में अपनी जान की परवाह न कर बढ़- चढ़कर साथ दिया। वीरांगना झलकारी बाई स्वतंत्रता सेनानियों की उसी शंृखला की महत्त्वपूर्ण कड़ी रही हैं।
इस उपन्यास को लिखने के लिए लेखक ने सम्बन्धित ऐतिहासिक और सामाजिक परिस्थितियों पर शोध कार्य के साथ स्वयं झाँसी जाकर झलकारी बाई के परिवार के लोगों, रिश्तेदारों आदि से भी मुलाकात की है।
About Author
मोहनदास नैमिशराय
जन्म: 5 सितम्बर, 1949, मेरठ (उ.प्र.)।
सुप्रसिद्ध दलित रचनाकार एवं मनीषी।
पाँच वर्ष तक डॉ. आम्बेडकर प्रतिष्ठान, भारत सरकार, नई दिल्ली में सम्पादक एवं मुख्य सम्पादक। महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा एवं अन्य विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर। पत्रकारिता, रेडियो, दूरदर्शन, फिल्म, नाटक आदि में लेखन व प्रस्तुति का प्रचुर अनुभव। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में अध्येता के रूप में ‘मराठी और हिन्दी दलित नाटक’ पर शोध।
प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ: क्या मुझे खरीदोगे, मुक्तिपर्व, झलकारी बाई, जख्म हमारे, महानायक बाबा साहेब डॉ. आम्बेडकर (उपन्यास); आवाजें, हमारा जवाब (कहानी संग्रह); सफ़दर एक बयान, आग और आन्दोलन (कविता संग्रह); अपने अपने पिंजरे: 2 भागों में (आत्मकथा); अदालतनामा, हैलो कॉमरेड (नाटक); भारतरत्न डॉ. भीमराव आम्बेडकर, आत्मदाह संस्कृति: उद्भव और विकास, उजाले की ओर बढ़ते कदम, स्वतंत्रता संग्राम के दलित क्रान्तिकारी, बहुजन समाज (शोध व विमर्श); हिन्दुत्व का दर्शन, डॉ. आम्बेडकर और कश्मीर समस्या, भारत के अग्रणी समाज सुधारक (अनुवाद); दलित उत्पीड़न विशेषांक, हिन्दी दलित साहित्य (सम्पादन)
अनेक भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में कई रचनाएँ शामिल। फिल्म, टी.वी. के लिए लेखन, रंगमंचीय अनुभव।
सम्मान: डॉ. आम्बेडकर स्मृति पुरस्कार; डॉ. आम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार; ‘कास्ट एंड रेस’ पुस्तक पर डॉ. आम्बेडकर इंटरनेशनल मिशन पुरस्कार कनाडा; गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार; डॉ. आम्बेड़कर सामाजिक विज्ञान संस्थान, महु (म.प्र.) के अलावा अन्य पुरस्कार।
सम्प्रति: हिन्दी मासिक ‘बयान’ पत्रिका का सम्पादन।
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