Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Varanasi Hard Cover

Publisher:
Rajkamal
| Author:
KUMAR NIRMALENDU
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
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KUMAR NIRMALENDU
Language:
Hindi
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वाराणसी जनपद शुरू से ही आंदोलनों की पहली पंक्ति में रहता आया है। विद्या और नवचेतना का केंद्र होने के कारण यह नगर शुरू से ही देश के बुद्धिजीवियों का नेतृत्व करता रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन में भी उसने यह चुनौती स्वीकार की और इस नगर ने कई महत्त्वपूर्ण नेता और कार्यकर्ता स्वतंत्रता आंदोलन को दिए। गांधी जी का अहिंसक आंदोलन हो या क्रांतिकारियों का हिंसक आंदोलन सभी जगह काशी के कार्यकर्ताओं का वर्चस्व था।
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पहला मोहभंग काशी में ही उजागर हुआ जब काशिराज महाराज चेतसिंह ने ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स की जोर-जबरदस्ती के सामने नतमस्तक होने से इनकार कर दिया। इसी कड़ी में अठारह वर्ष बाद काशी राज के दीवान बाबू जगतसिंह ने अवध के निष्कासित नवाब वजीर अली का समर्थन किया और उन्हें कालापानी की सजा भोगनी पड़ी।
हिंदी आंदोलन, स्वदेशी की चेतना और देश का धन विदेश चले जाने की बेचैनी, भारतेंदु हरिश्चंद्र के चिंतन की मूल पीठिका है। इस लड़ाई में वे आधुनिक साधनों से लड़ने के लिए कटिबद्ध हुए। उनका मन और भाषाबोध मध्ययुगीन था, लेकिन चिंतन आधुनिक था। वे उस समय की भारतीय नवचेतना के प्रतीक थे जो एक नई शताब्दी में प्रवेश कर रही थी।
वर्तमान पुस्तक काशी और वाराणसी को एक नए दृष्टिबोध के साथ समझने का एक प्रयास है।

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Description

वाराणसी जनपद शुरू से ही आंदोलनों की पहली पंक्ति में रहता आया है। विद्या और नवचेतना का केंद्र होने के कारण यह नगर शुरू से ही देश के बुद्धिजीवियों का नेतृत्व करता रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन में भी उसने यह चुनौती स्वीकार की और इस नगर ने कई महत्त्वपूर्ण नेता और कार्यकर्ता स्वतंत्रता आंदोलन को दिए। गांधी जी का अहिंसक आंदोलन हो या क्रांतिकारियों का हिंसक आंदोलन सभी जगह काशी के कार्यकर्ताओं का वर्चस्व था।
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पहला मोहभंग काशी में ही उजागर हुआ जब काशिराज महाराज चेतसिंह ने ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स की जोर-जबरदस्ती के सामने नतमस्तक होने से इनकार कर दिया। इसी कड़ी में अठारह वर्ष बाद काशी राज के दीवान बाबू जगतसिंह ने अवध के निष्कासित नवाब वजीर अली का समर्थन किया और उन्हें कालापानी की सजा भोगनी पड़ी।
हिंदी आंदोलन, स्वदेशी की चेतना और देश का धन विदेश चले जाने की बेचैनी, भारतेंदु हरिश्चंद्र के चिंतन की मूल पीठिका है। इस लड़ाई में वे आधुनिक साधनों से लड़ने के लिए कटिबद्ध हुए। उनका मन और भाषाबोध मध्ययुगीन था, लेकिन चिंतन आधुनिक था। वे उस समय की भारतीय नवचेतना के प्रतीक थे जो एक नई शताब्दी में प्रवेश कर रही थी।
वर्तमान पुस्तक काशी और वाराणसी को एक नए दृष्टिबोध के साथ समझने का एक प्रयास है।

About Author

कुमार निर्मलेन्दु

बिहार के शेखपुरा जिलान्तर्गत सादिकपुर नामक गाँव में 21 अक्टूबर, 1967 को जन्म। दो दशकों से राजकीय सेवा में। वर्तमान में उत्तर प्रदेश खाद्य एवं रसद विभाग में राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत। साहित्य एवं संस्कृति सम्बन्धी विषयों पर पत्र-पत्रिकाओं में अनियमित लेखन।

इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘मगधनामा’, ‘प्रयागराज और कुम्भ’, ‘कौशाम्बी’, ‘दिनकर : एक पुनर्विचार’ एवं ‘सामान्य हिन्दी, रूपरेखा, व्याकरण एवं प्रयोग’ ।

प्रो. कृष्ण कुमार सिंह के साथ मिलकर ‘प्रेमचन्द : जीवन-दृष्टि और संवेदना’ नामक पुस्तक का सम्पादन; और डॉ. गणेश पाण्डेय के साथ मिलकर अनियतकालीन साहित्यिक लघु-पत्रिका ‘यात्रा’ का सम्पादन। वर्ष 2019-20 के ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार’ से सम्मानित।

वर्तमान पता : जिला आपूर्ति अधिकारी, गाजीपुर-233001 (उत्तर प्रदेश)

ई-मेल : kumarnirmalendu@gmail.com

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