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Siya Piya Katha (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
USHAKIRAN KHAN
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
USHAKIRAN KHAN
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9789392757648 Category
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सीता-कथा राम के पश्चाताप-विगलित विलाप पर पूर्णता पाती है। वही राम जिन्हें पाकर सीता ने अपने होने को सार्थक समझा, वही राम जिनके पीछे-पीछे वे चौदह वर्षों के लिए वन जाने को साथ हो लीं, और जिनके महान, लोकोपकारी उद्देश्य के लिए उन्होंने रावण की लंका में बन्दी-जीवन व्यतीत किया। वही राम सब कुछ प्राप्त कर लेने के बाद लोक-भय के चलते उन्हें पुनः वनगमन करा देते हैं। वही राम फिर उस स्वाभिमानिनी सीता के लिए विलाप करते हैं जो उनके राजवंश को दो वीर-पुत्र देकर हमेशा के लिए चली जाती है।
सीता की कथा मर्यादा कही जाने वाली नैतिक-सामाजिक संरचनाओं के पुरुष-केन्द्रित संस्‍थानीकरण की सीमाओं की कथा भी है। कितना सहज है पुरुषों की तमाम पौरुष-प्रतिष्ठापक गतिविधियों की सबसे तीखी नोक का स्त्री के मर्मस्थल में कार बिंध जाना। सिय पिय कथा  की सीता कहती हैं :
गड़ता है काँटा/अनेकानेक हीन-भाव का/अधैर्य का/ संशय का/और अन्ततः अस्तित्व का राजा राम/आज मैं करती हूँ मुक्त/बिला रही हूँ माटी में
यह उस स्त्री का अन्तिम कथन है जो अपने प्रेम और समर्पण भाव की गहनता के कारण पुरुष के तथाकथित मर्यादा-तंत्र को प्रश्नांकित नहीं करती, बस उसके बीच से सिर तानकर निकल जाती है। यही पुरुष के बल-वैभव पर उसकी टिप्पणी है, यही उसका प्रतिरोध है। लेकिन राम का विलाप उसकी उपलब्धि नहीं, क्योंकि प्रतिशोध उसका ध्येय नहीं। सिय पिय कथा  की सीता पश्चाताप-दग्ध राम को पुनः यह कहने आती हैं :
जब राजधर्म पसरेगा/बनकर अन्‍धकार/सीता का प्रेम प्रकट होगा/सीता ही होगी समाहार
यह खंडकाव्य इसी सीता की महिमा का गान करते हुए हमारे बाहुबली वर्तमान में स्त्री-तत्व की आवश्यकता की ओर इंगित करता है।
 

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Description

सीता-कथा राम के पश्चाताप-विगलित विलाप पर पूर्णता पाती है। वही राम जिन्हें पाकर सीता ने अपने होने को सार्थक समझा, वही राम जिनके पीछे-पीछे वे चौदह वर्षों के लिए वन जाने को साथ हो लीं, और जिनके महान, लोकोपकारी उद्देश्य के लिए उन्होंने रावण की लंका में बन्दी-जीवन व्यतीत किया। वही राम सब कुछ प्राप्त कर लेने के बाद लोक-भय के चलते उन्हें पुनः वनगमन करा देते हैं। वही राम फिर उस स्वाभिमानिनी सीता के लिए विलाप करते हैं जो उनके राजवंश को दो वीर-पुत्र देकर हमेशा के लिए चली जाती है।
सीता की कथा मर्यादा कही जाने वाली नैतिक-सामाजिक संरचनाओं के पुरुष-केन्द्रित संस्‍थानीकरण की सीमाओं की कथा भी है। कितना सहज है पुरुषों की तमाम पौरुष-प्रतिष्ठापक गतिविधियों की सबसे तीखी नोक का स्त्री के मर्मस्थल में कार बिंध जाना। सिय पिय कथा  की सीता कहती हैं :
गड़ता है काँटा/अनेकानेक हीन-भाव का/अधैर्य का/ संशय का/और अन्ततः अस्तित्व का राजा राम/आज मैं करती हूँ मुक्त/बिला रही हूँ माटी में
यह उस स्त्री का अन्तिम कथन है जो अपने प्रेम और समर्पण भाव की गहनता के कारण पुरुष के तथाकथित मर्यादा-तंत्र को प्रश्नांकित नहीं करती, बस उसके बीच से सिर तानकर निकल जाती है। यही पुरुष के बल-वैभव पर उसकी टिप्पणी है, यही उसका प्रतिरोध है। लेकिन राम का विलाप उसकी उपलब्धि नहीं, क्योंकि प्रतिशोध उसका ध्येय नहीं। सिय पिय कथा  की सीता पश्चाताप-दग्ध राम को पुनः यह कहने आती हैं :
जब राजधर्म पसरेगा/बनकर अन्‍धकार/सीता का प्रेम प्रकट होगा/सीता ही होगी समाहार
यह खंडकाव्य इसी सीता की महिमा का गान करते हुए हमारे बाहुबली वर्तमान में स्त्री-तत्व की आवश्यकता की ओर इंगित करता है।
 

About Author

उषाकिरण खान

उषाकिरण खान हिन्दी और मैथिली की वरिष्ठ साहित्यकार हैं। उनका जन्म 24 अक्टूबर, 1945 को बिहार के लहेरियासराय (दरभंगा) में हुआ। पटना विश्वविद्यालय से इतिहास एवं पुरातत्त्व में स्नातकोत्तर तथा मगध विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. करने के बाद लम्बे समय तक अध्यापन किया।

लेखन की शुरुआत 1977 से। ‘विवश विक्रमादित्य’, ‘दूबधान’, ‘गीली पाँक’, ‘कासवन’, ‘जलधार’, ‘जनम अवधि’, ‘घर से घर तक’, ‘खेलत गेंद गिरे यमुना में’, ‘मौसम का दर्द’ (कहानी संग्रह); ‘अगनहिंडोला’, ‘सिरजनहार’, ‘गई झूलनी टूट’, ‘फागुन के बाद’, ‘पानी की लकीर’, ‘सीमान्त कथा’, ‘रतनारे नयन’, ‘गहरी नदिया नाव पुरानी’ (उपन्यास); ‘कहाँ गए मेरे उगना’, ‘हीरा डोम’ (नाटक);  ‘प्रभावती : एक निष्कम्प दीप’, ‘मैं एक बलुआ प्रस्तर खंड’ (कथेतर गद्य); ‘सिय पिय कथा’ (खंडकाव्य) उनकी प्रमुख हिन्दी कृतियाँ हैं। मैथिली में प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें हैं : ‘काँचहि बाँस’, ‘गोनू झा क्लब’, ‘सदति यात्रा’ (कहानी संग्रह); ‘अनुत्तरित प्रश्न’, ‘दूर्वाक्षत’, ‘हसीना मंजिल’, ‘भामती : एक अविस्मरणीय प्रेमकथा’, ‘पोखरि रजोखरि’, ‘मनमोहना रे’ (उपन्यास); ‘चानो दाई’, ‘भुसकौल बला’, ‘फागुन’, ‘एक्सरि ठाढ़ि’ (नाटक)।

दोनों भाषाओं में बच्चों के लिए भी उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। विभिन्न रचनाओं के उड़िया, बांग्ला, उर्दू एवं अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं।

‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ (2010), ‘भारत भारती’ (2019) और ‘प्रबोध साहित्य सम्मान’ (2020) सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार-सम्मान उन्हें प्रदान किए जा चुके हैं। वर्ष 2015 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से विभूषित किया गया।

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