Sevasadan

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
प्रेमचन्द
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
प्रेमचन्द
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Hindi
Format:
Hardback

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224

सेवासदन –
प्रेमचन्द का उपन्यास ‘सेवासदन’ एक कालजयी रचना है जिसमें दहेज-प्रथा, अनमेल-विवाह, नारियों के प्रति दृष्टिकोण आदि विषयों को उपन्यास का कथावस्तु बनाया गया है। सुमन के माध्यम से लेखक ने स्त्रीत्व की गरिमा को एक ऊँचाई पर दिखाने का प्रयास किया है। उपन्यास इस बात को मज़बूत आधार देता है कि नारियाँ अब अपने बौद्धिक विवेक और चेतना का इस्तेमाल करती हैं। वे किसी भी तरफ़ की विचारधारा में क़ैद होकर जीने वाली नहीं है, उसे तो ठोस सत्य और अनन्त आकाश चाहिए।
इस उपन्यास का मूल प्रश्न यही है कि क्या सुमन इस समाज में अपने पूर्वकर्मों को छोड़कर एक नया जीवन शुरू कर सकती है या नहीं? क्या उसे एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का इस समाज में कोई अधिकार है या नहीं? क्या उसकी निष्ठा हमेशा सन्देहास्पद ही समझी जायेगी? क्या उसके पास कोई वैकल्पिक जीवन नहीं है? क्या वो किसी पुरुष के साथ अपना जीवन फिर से शुरू नहीं कर सकती? क्या समाज उसे त्याग की मूर्ति और वैराग्य का जीवन जीने का ही एकमात्र मार्ग दे पायेगा? ये सभी प्रश्न उलझे हुए हैं और इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रेमचन्द के पास भी शायद नहीं था इसीलिए उन्होंने उपन्यास के अन्त में सुमन के त्याग को और अधिक ऊँचाई दे दी।

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Description

सेवासदन –
प्रेमचन्द का उपन्यास ‘सेवासदन’ एक कालजयी रचना है जिसमें दहेज-प्रथा, अनमेल-विवाह, नारियों के प्रति दृष्टिकोण आदि विषयों को उपन्यास का कथावस्तु बनाया गया है। सुमन के माध्यम से लेखक ने स्त्रीत्व की गरिमा को एक ऊँचाई पर दिखाने का प्रयास किया है। उपन्यास इस बात को मज़बूत आधार देता है कि नारियाँ अब अपने बौद्धिक विवेक और चेतना का इस्तेमाल करती हैं। वे किसी भी तरफ़ की विचारधारा में क़ैद होकर जीने वाली नहीं है, उसे तो ठोस सत्य और अनन्त आकाश चाहिए।
इस उपन्यास का मूल प्रश्न यही है कि क्या सुमन इस समाज में अपने पूर्वकर्मों को छोड़कर एक नया जीवन शुरू कर सकती है या नहीं? क्या उसे एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का इस समाज में कोई अधिकार है या नहीं? क्या उसकी निष्ठा हमेशा सन्देहास्पद ही समझी जायेगी? क्या उसके पास कोई वैकल्पिक जीवन नहीं है? क्या वो किसी पुरुष के साथ अपना जीवन फिर से शुरू नहीं कर सकती? क्या समाज उसे त्याग की मूर्ति और वैराग्य का जीवन जीने का ही एकमात्र मार्ग दे पायेगा? ये सभी प्रश्न उलझे हुए हैं और इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रेमचन्द के पास भी शायद नहीं था इसीलिए उन्होंने उपन्यास के अन्त में सुमन के त्याग को और अधिक ऊँचाई दे दी।

About Author

प्रेमचन्द - प्रेमचन्द (1880-1936) का जन्म बनारस के निकट लमही गाँव में हुआ था। स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद अनेक प्रकार के संघर्षों से गुज़रते हुए उन्होंने बी.ए. की पढ़ाई पूरी की। इक्कीस वर्ष की उम्र में उन्होंने लिखना प्रारम्भ किया। लेखन की शुरुआत उर्दू में नवाब राय नाम से की और 1910 में उनकी उर्दू में लिखी कहानियों का पहला संकलन 'सोज़ेवतन' नाम से प्रकाशित हुआ। इस संकलन को ब्रिटिश सरकार ने ज़ब्त करवा दिया। इसके बाद उनके जीवन में नया मोड़ आया। अपने लेखन का माध्यम उन्होंने हिन्दी भाषा को बनाया और 'प्रेमचन्द' नाम से लिखना शुरू किया। आगे चलकर यही नाम भारतीय कथा-साहित्य में अमर हुआ। प्रेमचन्द ने 1920 तक सरकारी नौकरी की। इसी समय उपनिवेशवादी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पूरे देश में सत्याग्रह शुरू हुआ जिसका उनके मन पर गहरा असर हुआ और उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। प्रेमचन्द ने 1923 में सरस्वती प्रेस की स्थापना की और 1930 से 'हंस' नामक ऐतिहासिक पत्रिका का सम्पादन प्रकाशन शुरू किया। प्रेमचन्द ने लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखी हैं। इनके अलावा अनेक उपन्यास और वैचारिक निबन्ध लिखे। गोदान, सेवासदन, प्रेमाश्रम, ग़बन, रंगभूमि, कर्मभूमि, निर्मला आदि उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। 'प्रेमचन्द : विविध प्रसंग' उनके वैचारिक लेखों का संकलन है।

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