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संलाप | SANLAP
Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
ANIRUDDH UMAT
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Setu Prakashan
Author:
ANIRUDDH UMAT
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹275 ₹248
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In stock
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3-5 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789395160995
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
128
अनिरुद्ध उमट की कविताएँ पढ़ते हुए मीर तक़ी मीर की इन पंक्तियों का स्मरण हो आता है-ले साँस भी आहिस्ता कि नाजुक है बहुत काम/आफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का। सचमुच इस पत्थर की तरह अपारदर्शी, संवेदनहीन संसार में इतनी नजाकत भरी कविताएँ लिखना, खाण्डे की धार पर चलने जैसा ही है। कवि ने जिस कला पर चलने का नेम लिया है, उस पर वे एक पल भी डिगना नहीं चाहते। कह गया जो आता हूँ अभी (2005) और तस्वीरों से जा चुके चेहरे (2015) के बाद संलाप अनिरुद्ध जी का तीसरा काव्य-संग्रह है। 1 इसके अलावा उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास, निबन्ध और राजस्थानी से हिन्दी अनुवाद भी किये हैं। अपने और कृष्ण बलदेव वैद के आत्मीय सम्बन्धों पर उनकी एक पुस्तक भी आयी है-वैदानुराग। पर इन सभी की आत्मा तो कविता ही है। हमारे समय में अगर यह कल्पना कर सकें कि मनुष्य नामक प्राणी की रचना काव्य-पदार्थ से होना सम्भव है तो अनिरुद्ध उमट जैसे कवि रचे जा सकते हैं; जैसे पिछले दौर में शमशेर थे।
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Description
अनिरुद्ध उमट की कविताएँ पढ़ते हुए मीर तक़ी मीर की इन पंक्तियों का स्मरण हो आता है-ले साँस भी आहिस्ता कि नाजुक है बहुत काम/आफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का। सचमुच इस पत्थर की तरह अपारदर्शी, संवेदनहीन संसार में इतनी नजाकत भरी कविताएँ लिखना, खाण्डे की धार पर चलने जैसा ही है। कवि ने जिस कला पर चलने का नेम लिया है, उस पर वे एक पल भी डिगना नहीं चाहते। कह गया जो आता हूँ अभी (2005) और तस्वीरों से जा चुके चेहरे (2015) के बाद संलाप अनिरुद्ध जी का तीसरा काव्य-संग्रह है। 1 इसके अलावा उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास, निबन्ध और राजस्थानी से हिन्दी अनुवाद भी किये हैं। अपने और कृष्ण बलदेव वैद के आत्मीय सम्बन्धों पर उनकी एक पुस्तक भी आयी है-वैदानुराग। पर इन सभी की आत्मा तो कविता ही है। हमारे समय में अगर यह कल्पना कर सकें कि मनुष्य नामक प्राणी की रचना काव्य-पदार्थ से होना सम्भव है तो अनिरुद्ध उमट जैसे कवि रचे जा सकते हैं; जैसे पिछले दौर में शमशेर थे।
About Author
अनिरुद्ध उमट 28 अगस्त, 1964 को बीकानेर (राजस्थान) में जन्म । उपन्यास : अँधेरी खिड़कियाँ 1998, पीठ पीछे का आँगन 2000, नींद नहीं जाग नहीं 2020; कविता संग्रह : कह गया जो आता हूँ अभी 2005, तस्वीरों से जा चुके चेहरे 2015; कहानी-संग्रह : आहटों के सपने 2008; निबन्ध संग्रह : अन्य का अभिज्ञान 2012; संस्मरण : वैदानुराग 2020; बाल साहित्य : स्याणा 2022; अनुवाद : राजस्थानी भाषा के कवि वासु आचार्य के साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत कविता संग्रह सीर रो घर का हिन्दी अनुवाद केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, दिल्ली द्वारा प्रकाशित। सम्मान : राजस्थान साहित्य अकादेमी, उदयपुर द्वारा उपन्यास अँधेरी खिड़कियाँ को रांगेय राघव स्मृति सम्मान; भारत सरकार के संस्कृति विभाग की जूनियर फेलोशिप; कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिप ।
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