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Punya Pravah (राष्ट्र, धर्म और संस्कृति विमर्श)
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Rashtra Dharma Aur Sanskriti
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Hanuman Prasad Shukla
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Hanuman Prasad Shukla
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹450 ₹338
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In stock
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1-4 Days
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Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789395386326
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
320
आचार्य वासुदेवशरण अग्रवालजी के समूचे चिंतन-लेखन की धुरी राष्ट्र का गौरव और मातृभूमि की महिमा है। वे राष्ट्रभक्त मनीषी थे।
वैष्णव स्वभाव और कर्मनिष्ठा के साथ अंतिम साँस तक वे अपनी अविचल राष्ट्र-भक्ति और अविरल ज्ञान-साधना में निमग्न रहे। वे भारत के मृण्मय स्वरूप पर अत्यंत मुग्ध थे; पर उसके चिन्मय स्वरूप को उद्घाटित करने का यत्न करने में ही उन्होंने अपने भौतिक जीवन को निःशेष कर दिया ।
चिन्मय भारत का विग्रह धर्मस्वरूप है। वैदिक ऋषियों ने जिस सनातन सृष्टि-तत्त्व को ऋत कहा था, वही धर्म है और धर्म ही संस्कृति है, जो नाना रूपों में अभिव्यक्त होती है और हमारे आचरण या कि चरित्र में परिलक्षित होती है। इस तरह भारत राष्ट्र का निर्माण धर्म और संस्कृति की भित्ति पर हुआ है।
इसीलिए इस संचयन का नाम ‘राष्ट्र, धर्म और संस्कृति’ रखा गया है। इसमें द्वीपांतर से लेकर ईरान और मध्य एशिया तक तथा आसेतुहिमाचल मृण्मय भारत और चिन्मय भारत से संबद्ध वासुदेवजी के निबंध संगृहीत हैं । चिन्मय भारत सहस्र – सहस्र वर्षों से प्रवाहित अजस्त्र धारा का सनातन प्रवाह है; यही इन निबंधों की टेक है; प्रतिपाद्य है ।
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Description
आचार्य वासुदेवशरण अग्रवालजी के समूचे चिंतन-लेखन की धुरी राष्ट्र का गौरव और मातृभूमि की महिमा है। वे राष्ट्रभक्त मनीषी थे।
वैष्णव स्वभाव और कर्मनिष्ठा के साथ अंतिम साँस तक वे अपनी अविचल राष्ट्र-भक्ति और अविरल ज्ञान-साधना में निमग्न रहे। वे भारत के मृण्मय स्वरूप पर अत्यंत मुग्ध थे; पर उसके चिन्मय स्वरूप को उद्घाटित करने का यत्न करने में ही उन्होंने अपने भौतिक जीवन को निःशेष कर दिया ।
चिन्मय भारत का विग्रह धर्मस्वरूप है। वैदिक ऋषियों ने जिस सनातन सृष्टि-तत्त्व को ऋत कहा था, वही धर्म है और धर्म ही संस्कृति है, जो नाना रूपों में अभिव्यक्त होती है और हमारे आचरण या कि चरित्र में परिलक्षित होती है। इस तरह भारत राष्ट्र का निर्माण धर्म और संस्कृति की भित्ति पर हुआ है।
इसीलिए इस संचयन का नाम ‘राष्ट्र, धर्म और संस्कृति’ रखा गया है। इसमें द्वीपांतर से लेकर ईरान और मध्य एशिया तक तथा आसेतुहिमाचल मृण्मय भारत और चिन्मय भारत से संबद्ध वासुदेवजी के निबंध संगृहीत हैं । चिन्मय भारत सहस्र – सहस्र वर्षों से प्रवाहित अजस्त्र धारा का सनातन प्रवाह है; यही इन निबंधों की टेक है; प्रतिपाद्य है ।
About Author
हनुमानप्रसाद
शुक्ला हिंदी भाषा और साहित्य के आचार्य ।
तीन दशक से शोध, अकादमिक लेखन और शिक्षण में संलग्न । डेढ़ दशक से अकादमिक
प्रशासन संबंधी दायित्वों का निर्वहन । ज्ञानानुशासन के रूप में हिंदी के
क्षितिज - विस्तार और रूपांतरण के लिए निरंतर यत्नशील । काव्यशास्त्र,
भाषाविज्ञान और तुलनात्मक साहित्य अध्ययन-अभिरुचि के मुख्य क्षेत्र ।
विद्यालयी शिक्षा गृह जनपद
अयोध्या (फैजाबाद) तथा पी-एच.डी. (1994) पर्यंत उच्च शिक्षा लखनऊ
विश्वविद्यालय से | हिंदी में एम.ए./ जे.आर.एफ. (1989) तथा संस्कृत में
प्रोफिशिएंसी (1992) एवं अनुवाद में पी.जी. डिप्लोमा (1993)।
ग्यारह वर्षों तक (1995 से) राजस्थान उच्च शिक्षा सेवा में कार्य करने के बाद
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर (26-29)
रहे। फिर राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में (29- 213) हिंदी के प्रोफेसर रहे और
अब (213 से) महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व - विद्यालय में प्रोफेसर
हैं ।
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