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Puratattva Ka Romance

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
भगवतशरण उपाध्याय
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

189

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1-4 Days

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Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788126319749 Category
Category:
Page Extent:
180

पुरातत्त्व का रोमांस –
अतीत, अतीत का जिया जा चुका जीवन, श्वास राग-विराग और मृत्यु को पुनर्जीवन पुरातत्त्व से रोमांस करने वाले ही दे पाते हैं। अतीत के सहजीवी मनुष्य की संस्कृति और सभ्यता के साथ ही उसके स्वप्न का भी पुनर्दर्शन करते हुए मूलतः हम अपनी ही उद्भावना, विकास और परिणति का साक्षात् करते हैं। सहस्राब्दियों पूर्व के अज्ञात संसार को पुरातत्त्वशास्त्री जिस शैशव-कौतूहल के साथ उत्खनित करते हैं और रहस्यों, कल्पनाओं तथा अपूर्व सत्यों का समाहारी साक्ष्य उपलब्ध कराकर स्तब्ध कर देते हैं, उसी अन्दाज़ की प्रस्तुति भगवतशरण उपाध्याय अपनी शोधपरक कृति ‘पुरातत्त्व का रोमांस’ में करते हैं। भगवतशरण उपाध्याय सिर्फ़ लेखक की हैसियत से ही नहीं वरन् एक पुरातत्त्वशास्त्री की तरह भी अपरिचित समय, इतिहास और संज्ञान को सूत्रबद्ध करते हैं। किसी पुरातात्त्विक के प्रेम की कैफ़ियत और ज़रूरी ज़िद के विषय में कुछ भी कहना सर्वविदित सत्य का दुहराव ही होगा। उपाध्याय जी ने पुरातत्त्व के उन स्थलों को निकट से देखा है, कुछ की खुदाई में शामिल रहे हैं और कुछ की सामग्री खनिकों की डायरियों से ली हैं। इसलिए आलेखों की प्रामाणिकता जहाँ ज्ञान को समृद्ध करती है वहीं भाषा की तरलता पाठकों का गम्भीर मनोरंजन करती है।
पुनर्नवा श्रृंखला के अन्तर्गत इस प्रसिद्ध कृति का पुनःप्रकाशन करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ सन्तुष्टि का अनुभव कर रहा है।

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Description

पुरातत्त्व का रोमांस –
अतीत, अतीत का जिया जा चुका जीवन, श्वास राग-विराग और मृत्यु को पुनर्जीवन पुरातत्त्व से रोमांस करने वाले ही दे पाते हैं। अतीत के सहजीवी मनुष्य की संस्कृति और सभ्यता के साथ ही उसके स्वप्न का भी पुनर्दर्शन करते हुए मूलतः हम अपनी ही उद्भावना, विकास और परिणति का साक्षात् करते हैं। सहस्राब्दियों पूर्व के अज्ञात संसार को पुरातत्त्वशास्त्री जिस शैशव-कौतूहल के साथ उत्खनित करते हैं और रहस्यों, कल्पनाओं तथा अपूर्व सत्यों का समाहारी साक्ष्य उपलब्ध कराकर स्तब्ध कर देते हैं, उसी अन्दाज़ की प्रस्तुति भगवतशरण उपाध्याय अपनी शोधपरक कृति ‘पुरातत्त्व का रोमांस’ में करते हैं। भगवतशरण उपाध्याय सिर्फ़ लेखक की हैसियत से ही नहीं वरन् एक पुरातत्त्वशास्त्री की तरह भी अपरिचित समय, इतिहास और संज्ञान को सूत्रबद्ध करते हैं। किसी पुरातात्त्विक के प्रेम की कैफ़ियत और ज़रूरी ज़िद के विषय में कुछ भी कहना सर्वविदित सत्य का दुहराव ही होगा। उपाध्याय जी ने पुरातत्त्व के उन स्थलों को निकट से देखा है, कुछ की खुदाई में शामिल रहे हैं और कुछ की सामग्री खनिकों की डायरियों से ली हैं। इसलिए आलेखों की प्रामाणिकता जहाँ ज्ञान को समृद्ध करती है वहीं भाषा की तरलता पाठकों का गम्भीर मनोरंजन करती है।
पुनर्नवा श्रृंखला के अन्तर्गत इस प्रसिद्ध कृति का पुनःप्रकाशन करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ सन्तुष्टि का अनुभव कर रहा है।

About Author

भगवतशरण उपाध्याय - भारतीय विद्याविद् डॉ. भगवतशरण उपाध्याय का जन्म ज़िला बलिया उ.प्र. के एक गाँव उजियार में अक्टूबर 1910 में हुआ था। वे अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान थे। भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व, संस्कृति और कला पर उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रणयन किया है। इसके अलावा उन्होंने अनेक अनुवाद और कोशों का सम्पादन किया है। उनके कुल ग्रन्थों की संख्या सौ से भी ज़्यादा है। उपाध्याय जी ने छात्र-जीवन में असहयोग आन्दोलन से जुड़कर दो बार जेल यात्रा भी की। बाद में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद तथा लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। अपने शैक्षणिक काल में वे पुरातत्त्व विभाग प्रयाग तथा लखनऊ के अध्यक्ष, बिड़ला कॉलेज, पिलानी के प्राध्यापक इन्स्टीट्यूट ऑफ़ एशियन स्टडीज़, हैदराबाद के निदेशक; विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष रहे। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के अनेक विश्वविद्यालयों के विज़िटिंग प्रोफ़ेसर होने के साथ देश-विदेश के कई सम्मेलनों की उन्होंने अध्यक्षता भी की। नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हिन्दी विश्वकोश का उन्होंने सम्पादन किया। सन् 1982 तक वे मॉरीशस में भारत के उच्चायुक्त पद पर रहे। अगस्त 1982 में उनका देहावसान हुआ। भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—कालिदास का भारत, इतिहास साक्षी है, कुछ फ़ीचर कुछ एकांकी, ठूँठा आम, सागर की लहरों पर, कालिदास के सुभाषित, पुरातत्त्व का रोमांस, सवेरा संघर्ष गर्जन और सांस्कृतिक निबन्ध।
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