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Pratinidhi Kavitayen : Vishwanath Prasad Tiwari (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Vishwanath Prasad Tiwari
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Vishwanath Prasad Tiwari
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹150 ₹120
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ISBN:
SKU
9788126726684
Category Hindi
Category: Hindi
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विश्वनाथप्रसाद तिवारी के वर्षों के सक्रिय कवि-कर्म के सफ़र को देखते हुए आज यह बात कही जा सकती है कि अपने समकालीनों के बीच रहते हुए भी उन्होंने अपने समकालीनों का अतिक्रमण किया। वे अपनी पीढ़ी के उन कवियों में शुमार हैं जिनके मितकथन और मितभाषा के प्रयोग सघन और ताक़तवर हैं, जो आज उनकी काव्योपलब्धि के रूप में रेखांकित किए जा सकते हैं।
विश्वनाथप्रसाद तिवारी के कवि-कर्म के सरोकारों की गहरी छानबीन की जाए तो उसकी मुख्य थीम में तीन प्रस्थान-बिन्दु चिह्नित होते हैं—स्वाधीनता, स्त्री-मुक्ति और मृत्यु-बोध। ग़ौर से देखें तो उनकी समूची काव्य-यात्रा इन तीन प्रस्थान-बिन्दुओं को लेकर गहन अनुसन्धान करती हैं। इन तीनों जीवन-दृष्टियों का बोध वे भारतीय अन्त:करण से करते हैं। स्त्री-अस्मिता की खोज उनके कवि-कर्म के बुनियादी सरोकारों में सबसे अहम है। उनकी कविता के घर में स्त्री के लिए जगह ही जगह है। उनकी दृष्टि में स्त्री के जितने विविध रूप हैं, वे सब सृष्टि के सृजनसंसार हैं।
उनके कवि की समूची संरचना देशज और स्थानीयता के भाव-बोध के साथ रची-बसी है, काव्यानुभूति से लेकर काव्य की बनावट तक। भोजपुरी अंचल में पले-पुसे और सयाने हुए विश्वनाथ के मनोलोक की पूरी संरचना भोजपुरी समाज के देशज आदमी की है। उनकी कविताओं में इस समाज का आदमी प्राय: विपत्ति में लाठी की तरह दन्न से तनकर निकल आता है।
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Description
विश्वनाथप्रसाद तिवारी के वर्षों के सक्रिय कवि-कर्म के सफ़र को देखते हुए आज यह बात कही जा सकती है कि अपने समकालीनों के बीच रहते हुए भी उन्होंने अपने समकालीनों का अतिक्रमण किया। वे अपनी पीढ़ी के उन कवियों में शुमार हैं जिनके मितकथन और मितभाषा के प्रयोग सघन और ताक़तवर हैं, जो आज उनकी काव्योपलब्धि के रूप में रेखांकित किए जा सकते हैं।
विश्वनाथप्रसाद तिवारी के कवि-कर्म के सरोकारों की गहरी छानबीन की जाए तो उसकी मुख्य थीम में तीन प्रस्थान-बिन्दु चिह्नित होते हैं—स्वाधीनता, स्त्री-मुक्ति और मृत्यु-बोध। ग़ौर से देखें तो उनकी समूची काव्य-यात्रा इन तीन प्रस्थान-बिन्दुओं को लेकर गहन अनुसन्धान करती हैं। इन तीनों जीवन-दृष्टियों का बोध वे भारतीय अन्त:करण से करते हैं। स्त्री-अस्मिता की खोज उनके कवि-कर्म के बुनियादी सरोकारों में सबसे अहम है। उनकी कविता के घर में स्त्री के लिए जगह ही जगह है। उनकी दृष्टि में स्त्री के जितने विविध रूप हैं, वे सब सृष्टि के सृजनसंसार हैं।
उनके कवि की समूची संरचना देशज और स्थानीयता के भाव-बोध के साथ रची-बसी है, काव्यानुभूति से लेकर काव्य की बनावट तक। भोजपुरी अंचल में पले-पुसे और सयाने हुए विश्वनाथ के मनोलोक की पूरी संरचना भोजपुरी समाज के देशज आदमी की है। उनकी कविताओं में इस समाज का आदमी प्राय: विपत्ति में लाठी की तरह दन्न से तनकर निकल आता है।
About Author
विश्वनाथप्रसाद तिवारी
डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का जन्म 20 जून, 1940 को भेड़िहारी, देवरिया, उत्तर प्रदेश में हुआ। वे गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद से वर्ष 2001 में सेवानिवृत्त हुए।
वे गोरखपुर से प्रकाशित होनेवाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका ‘दस्तावेज़’ के सम्पादक हैं। यह पत्रिका रचना और आलोचना की विशिष्ट पत्रिका है जो 1978 से नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है। डॉ. तिवारी ‘साहित्य अकादेमी’ के 2013 से 2017 तक की अवधि के लिए अध्यक्ष रहे।
उन्होंने गाँव की धूल-भरी पगडंडी से इंग्लैंड, मारीशस, रूस, नेपाल, अमरीका, नीदरलैंड, जर्मनी, फ़्रांस, लक्जमबर्ग, बेल्जियम, चीन और थाईलैंड की ज़मीन नापी है।
उनका रचनाकर्म देश और भाषा की सीमा तोड़ता है। उड़िया में कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए। हजारी प्रसाद द्विवेदी पर लिखी आलोचना पुस्तक का गुजराती और मराठी भाषा में अनुवाद हुआ। इसके अलावा रूसी, नेपाली, अंग्रेज़ी, मलयालम, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तेलगू, कन्नड़ व उर्दू में भी उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ है। उनके शोध व आलोचना, कविता-संग्रह, यात्रा-संस्मरण, लेखकों से जुड़े संस्मरण, साक्षात्कार आदि की दो दर्जन से ज़्यादा पुस्तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने हिन्दी के कवियों, आलोचकों पर केन्द्रित कई पुस्तकों का सम्पादन किया है।
वे ‘व्यास सम्मान’, ‘सरस्वती सम्मान’, ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘पुश्किन सम्मान’ सहित कई सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं।
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