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Pratinidhi Kahaniyan : Muktibodh (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Gajanan Madhav Muktibodh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Gajanan Madhav Muktibodh
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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मुक्तिबोध यानी वैचारिकता, दार्शनिकता और रोमानी आदर्शवाद के साथ जीवन के जटिल, गूढ़, गहन, संश्लिष्ट रहस्यों की बेतरह उलझी महीन परतों की सतत जाँच करती हठपूर्ण, अपराजेय, संकल्प-दृढ़ता।
नून-तेल-लकड़ी की दुश्चिन्ताओं में घिरकर अपनी उदात्त मनुष्यता से गिरते व्यक्ति की पीड़ा और बेबसी, सीमा और संकीर्णता को मुक्तिबोध ने पोर-पोर में महसूसा है। लेकिन अपराजेय जिजीविषा और जीवन का उच्‍छल-उद्‌दाम प्रवाह क्या ‘मनुष्य’ को तिनके की तरह बहा ले जानेवाली हर ताक़त का विरोध नहीं करता? जिजीविषा प्रतिरोध, संघर्ष, दृढ़ता, आस्था और सृजनशीलता बनकर क्या मनुष्य को अपने भीतर के विराटत्व से परिचित नहीं कराती? मुक्तिबोध की कहानियाँ अखंड उदात्त आस्था के साथ आम आदमी को उसके भीतर छिपे इस स्रष्टा महामानव तक ले जाती हैं।
अजीब अन्तर्विरोध है कि मुक्तिबोध की कहानियाँ एक साथ विचार कहानियाँ हैं और आत्मकथात्मक भी। मुक्तिबोध की कहानियाँ प्रश्न उठाती हैं—नुकीले और चुभते सवाल कि ‘ठाठ से रहने के चक्कर से बँधे हुए बुराई के चक्कर’ तोड़ने के लिए अपने-अपने स्तर पर कितना प्रयत्नशील है व्यक्ति?
मुक्तिबोध की जिजीविषा-जड़ी कहानियाँ आत्माभिमान को बनाए रखनेवाले आत्मविश्वास और आत्मबल को जिलाए रखने का सन्देश देती हैं—भीतर के ‘मनुष्य’ से साक्षात्कार करने के अनिर्वचनीय सुख से सराबोर करने के उपरान्त।

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Description

मुक्तिबोध यानी वैचारिकता, दार्शनिकता और रोमानी आदर्शवाद के साथ जीवन के जटिल, गूढ़, गहन, संश्लिष्ट रहस्यों की बेतरह उलझी महीन परतों की सतत जाँच करती हठपूर्ण, अपराजेय, संकल्प-दृढ़ता।
नून-तेल-लकड़ी की दुश्चिन्ताओं में घिरकर अपनी उदात्त मनुष्यता से गिरते व्यक्ति की पीड़ा और बेबसी, सीमा और संकीर्णता को मुक्तिबोध ने पोर-पोर में महसूसा है। लेकिन अपराजेय जिजीविषा और जीवन का उच्‍छल-उद्‌दाम प्रवाह क्या ‘मनुष्य’ को तिनके की तरह बहा ले जानेवाली हर ताक़त का विरोध नहीं करता? जिजीविषा प्रतिरोध, संघर्ष, दृढ़ता, आस्था और सृजनशीलता बनकर क्या मनुष्य को अपने भीतर के विराटत्व से परिचित नहीं कराती? मुक्तिबोध की कहानियाँ अखंड उदात्त आस्था के साथ आम आदमी को उसके भीतर छिपे इस स्रष्टा महामानव तक ले जाती हैं।
अजीब अन्तर्विरोध है कि मुक्तिबोध की कहानियाँ एक साथ विचार कहानियाँ हैं और आत्मकथात्मक भी। मुक्तिबोध की कहानियाँ प्रश्न उठाती हैं—नुकीले और चुभते सवाल कि ‘ठाठ से रहने के चक्कर से बँधे हुए बुराई के चक्कर’ तोड़ने के लिए अपने-अपने स्तर पर कितना प्रयत्नशील है व्यक्ति?
मुक्तिबोध की जिजीविषा-जड़ी कहानियाँ आत्माभिमान को बनाए रखनेवाले आत्मविश्वास और आत्मबल को जिलाए रखने का सन्देश देती हैं—भीतर के ‘मनुष्य’ से साक्षात्कार करने के अनिर्वचनीय सुख से सराबोर करने के उपरान्त।

About Author

गजानन माधव मुक्तिबोध

आपका जन्म 13 नवम्बर, 1917 को श्योपुर, ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। आपने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी से एम.ए. तक की पढ़ाई की।

आजीविका के लिए 20 वर्ष की उम्र से बड़नगर मिडिल स्कूल में मास्टरी आरम्भ करके दौलतगंज (उज्जैन), शुजालपुर, इन्दौर, कलकत्ता, बम्बई, बंगलौर, बनारस, जबलपुर, नागपुर में थोड़े-थोड़े अरसे रहे। अन्तत: 1958 में दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांद गाँव में।

आप लेखन में ही नहीं, जीवन में भी प्रगतिशील सोच के पक्षधर रहे, और यही कारण कि माता-पिता की असहमति के बावजूद प्रेम विवाह किया।

अध्ययन-अध्यापन के साथ पत्रकारिता में भी आपकी गहरी रुचि रही। ‘वसुधा’, ‘नया ख़ून’ जैसी पत्रिकाओं में सम्पादन-सहयोग। आप अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘तार सप्तक’ के पहले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच आपकी क़लम की भूमिका अहम और अविस्मरणीय रही जिसका महत्त्व अपने ‘विज़न’ में आज भी एक बड़ी लीक।

आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी ख़ाक-धूल’, ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ (कविता); ‘काठ का सपना’, ‘विपात्र’, ‘सतह से उठता आदमी’ (कहानी); ‘कामायनी : एक पुनर्विचार’, ‘नई कविता का आत्म-संघर्ष’, ‘नए साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र’ (जिसका नया संस्करण अब कुछ परिवर्तित रूप में ‘आख़िर रचना क्यों?’ नाम से प्रकाशित), ‘समीक्षा की समस्याएँ’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’ (आलोचना); ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ (विमर्श); ‘मेरे युवजन मेरे परिजन’ (पत्र-साहित्य); ‘शेष-अशेष’ (असंकलित रचनाएँ)। आपकी प्रकाशित-अप्रकाशित सभी रचनाएँ मुक्तिबोध समग्र में शामिल जो आठ खंडों में प्रकाशित।

आपका निधन 11 सितम्बर, 1964 को नई दिल्ली में हुआ।

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