Pratinidhi Kahaniyan : Mridula Garg (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Mridula Garg
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
Author:
Mridula Garg
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Hindi
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‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित मृदुला गर्ग का कथा-संसार विविधता के अछोर तक फैला हुआ है। उनकी कहानियाँ मनुष्य के सारे सरोकारों से गहरे तक जुड़ी हुई हैं। समाज, देश, राजनीतिक माहौल, सामाजिक वर्जनाओं, पर्यावरण से लेकर मानव मन की रेशे-रेशे पड़ताल करती नज़र आती हैं। इस संकलन की कहानियाँ अपने इसी ‘मूड’ या मिज़ाज के साथ प्रस्तुत हुई हैं।
मृदुला गर्ग की कहानियाँ पाठक के लिए इतना ‘स्पेस’ देती हैं कि आप लेखक को गाइड बना तिलिस्म में नहीं उतर सकते, इसे आपको अपने अनुसार ही हल करना पड़ता है। यही कारण है कि बने-बनाए फ़ॉरमेट या ढर्रे से, ऊबे बग़ैर, आप पूरी रोचकता, कौतूहल और दार्शनिक निष्कर्ष तक पहुँच सकते हैं। गलदश्रुता के लिए जगह न होते हुए भी आपकी आँखें कब नम हो जाएँ, यह आपके पाठकीय चौकन्ने पर निर्भर करता है। यही मृदुला गर्ग की क़िस्सागोई का कौशल या कमाल है, जहाँ लिजलिजी भावुकता बेशक नहीं मिलेगी, पर भावना और संवेदना की गहरी घाटियाँ मौजूद हैं, एक बौद्धिक विवेचन के साथ।
—दिनेश द्विवेदी

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Description

‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित मृदुला गर्ग का कथा-संसार विविधता के अछोर तक फैला हुआ है। उनकी कहानियाँ मनुष्य के सारे सरोकारों से गहरे तक जुड़ी हुई हैं। समाज, देश, राजनीतिक माहौल, सामाजिक वर्जनाओं, पर्यावरण से लेकर मानव मन की रेशे-रेशे पड़ताल करती नज़र आती हैं। इस संकलन की कहानियाँ अपने इसी ‘मूड’ या मिज़ाज के साथ प्रस्तुत हुई हैं।
मृदुला गर्ग की कहानियाँ पाठक के लिए इतना ‘स्पेस’ देती हैं कि आप लेखक को गाइड बना तिलिस्म में नहीं उतर सकते, इसे आपको अपने अनुसार ही हल करना पड़ता है। यही कारण है कि बने-बनाए फ़ॉरमेट या ढर्रे से, ऊबे बग़ैर, आप पूरी रोचकता, कौतूहल और दार्शनिक निष्कर्ष तक पहुँच सकते हैं। गलदश्रुता के लिए जगह न होते हुए भी आपकी आँखें कब नम हो जाएँ, यह आपके पाठकीय चौकन्ने पर निर्भर करता है। यही मृदुला गर्ग की क़िस्सागोई का कौशल या कमाल है, जहाँ लिजलिजी भावुकता बेशक नहीं मिलेगी, पर भावना और संवेदना की गहरी घाटियाँ मौजूद हैं, एक बौद्धिक विवेचन के साथ।
—दिनेश द्विवेदी

About Author

मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग के रचना-संसार में लगभग सभी गद्य विधाएँ सम्मिलित हैं। उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, कटाक्ष आदि।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘उसके हिस्से की धूप’, ‘वंशज’, ‘चित्तकोबरा’, ‘अनित्य’, ‘मैं और मैं’, ‘कठगुलाब’, ‘मिलजुल मन’ और ‘वसु का कुटुम’ (उपन्यास); कुल प्रकाशित कहानियाँ—90, जिनको लेकर 2003 तक प्रकाशित 8 कहानी-संग्रहों की सम्पूर्ण कहानियों की पुस्तक ‘संगति-विसंगति’ नाम से प्रकाशित; ‘एक और अजनबी’, ‘जादू का कालीन’, ‘साम दाम दण्ड भेद’, ‘क़ैद-दर-क़ैद’ (नाटक); ‘रंग-ढंग’, ‘चुकते नहीं सवाल’, ‘कृति और कृतिकार’ (निबन्ध-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार’ (साक्षात्कार), ‘कुछ अटके कुछ भटके’ (यात्रा-संस्मरण); ‘कर लेंगे सब हज़म’, ‘खेद नहीं है’ (व्यंग्य-संग्रह)।

अनूदित कृतियाँ : ‘चित्तकोबरा’  ‘द जि‍फ़्लेक्टे कोबरा’ नाम से जर्मन में तथा ‘चित्तकोबरा’ नाम से अॅंग्रेज़ी में प्रकाशित। रूसी में ‘कोबरा मोएगो रज़ूमा’ नाम से अनूदित। ‘कठगुलाब’ ‘कन्ट्री ऑफ़ गुड्बाइज़’ नाम से अंग्रेज़ी में, ‘कठगुलाब’ शीर्षक से मराठी और मलयालम में और ‘वुडरोज़’ नाम से जापानी में प्रकाशित। ‘अनित्य’ ‘अनित्य हाफ़वे टु नोवेह्यर’ नाम से अंग्रेज़ी में और ‘अनित्य’ नाम से मराठी में प्रकाशित। अनेक कहानियाँ अंग्रेज़ी, जर्मन, चेक, जापानी व भारतीय भाषाओं में अनूदित। ‘मिलजुल मन’ उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी, तमिल और तेलुगू में अनूदित। ‘मैं और मैं’ मराठी में अनूदित।

पुरस्कार/सम्मान : अनेक पुरस्कारों के साथ ‘कठगुलाब’ को ‘व्यास सम्मान’, ‘मिलजुल मन’ को ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘उसके हिस्से की धूप’ को मध्य प्रदेश का ‘अखिल भारतीय वीरसिंह सम्मान’, ‘जादू का कालीन’ को मध्य प्रदेश का ही ‘अखिल भारतीय सेठ गोविन्द दास सम्मान’।

‘कठगुलाब’ दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.ए. पाठ्यक्रम तथा कई विश्वविद्यालयों में स्त्री-रचना/विमर्श पाठ्यक्रमों में शामिल है।

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