PrachIn Bharat (Paperback)

Publisher:
Motilal Banarsidass
| Author:
R C Majumdar
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback

378

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519

पुराणों और महाकाव्यों में इतिहास बीज रूप में सुरक्षित है महत्त्व की दृष्टि से प्रथम है। पुरातात्त्विक प्रमाण। इसके अन्तर्गत सिक्के, अभिलेख एवं अन्य प्राचीन अवशेष आते हैं। अभिलेख समसामयिक होने के कारण विश्वसनीय प्रमाण है और उनसे हमें सबसे अधिक सहायता है। उनसे हमें राजाओं के नाम और कभी-कभी तिथियाँ तथा अन्य आवश्यक विवरण भी प्राप्त हुए हैं और इनमें इतिहास की महत्त्वपूर्ण कितनी ही घटनाएँ भी अंकित है। प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए विदेशियों के बहुत अंश तक ऋणी हैं। भारत के उल्लेख विदेशी अभिलेखों जैसे दारय बहु (डेरियस) के अभिलेख, और विदेशी साहित्य तथा हिरोदोत के इतिहास में हुये हैं। किन्तु सबसे बड़ी बहुमूल्य देन तो उन विदेशियों की हैं जो इस देश में आये थे । सिकन्दर के भारतीय अभियान के समय एवं उसके पश्चात् भारतीय दरबार में राजदूत के रूप आने वाले यवनों ने इस देश का विस्तृत विवरण लिखा है। यद्यपि उनकी लिखी अधिकांश पुस्तकें आज लुप्त हो चुकी हैं, तथापि उनका सार परवर्ती यूनानी लेखकों के विवरणों मे सुरक्षित है। मेगस्थनीज कृत ‘इण्डिका’ तुरमय (टाल्मी 130 ई०) कृत ‘भारत का भूगोल’ और ‘दि पेरीप्लस ऑफ दि एरिथियन सी’ नामक पुस्तकें इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय हैं। अन्तिम पुस्तक में भारत के व्यापार नौवहन का बहुमूल्य विवरण किसी अज्ञात यूनानी ने उपस्थित किया है, जो ईसा की पहली शताब्दी में भारत आया था। परवर्ती काल में चीनी यात्री बहुत बड़ी संख्या में धार्मिक पुस्तकों के संग्रह एवं बौद्ध तीर्थों की यात्रा करने भारत आये। उनमें से फाहियान (पांचवीं शताब्दी) ह्वेनसांग (सातवीं शताब्दी) और इत्सिंग (सातवीं शताब्दी) ने अपने समय के महत्त्वपूर्ण वृत्तान्त लिखे हैं।

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पुराणों और महाकाव्यों में इतिहास बीज रूप में सुरक्षित है महत्त्व की दृष्टि से प्रथम है। पुरातात्त्विक प्रमाण। इसके अन्तर्गत सिक्के, अभिलेख एवं अन्य प्राचीन अवशेष आते हैं। अभिलेख समसामयिक होने के कारण विश्वसनीय प्रमाण है और उनसे हमें सबसे अधिक सहायता है। उनसे हमें राजाओं के नाम और कभी-कभी तिथियाँ तथा अन्य आवश्यक विवरण भी प्राप्त हुए हैं और इनमें इतिहास की महत्त्वपूर्ण कितनी ही घटनाएँ भी अंकित है। प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए विदेशियों के बहुत अंश तक ऋणी हैं। भारत के उल्लेख विदेशी अभिलेखों जैसे दारय बहु (डेरियस) के अभिलेख, और विदेशी साहित्य तथा हिरोदोत के इतिहास में हुये हैं। किन्तु सबसे बड़ी बहुमूल्य देन तो उन विदेशियों की हैं जो इस देश में आये थे । सिकन्दर के भारतीय अभियान के समय एवं उसके पश्चात् भारतीय दरबार में राजदूत के रूप आने वाले यवनों ने इस देश का विस्तृत विवरण लिखा है। यद्यपि उनकी लिखी अधिकांश पुस्तकें आज लुप्त हो चुकी हैं, तथापि उनका सार परवर्ती यूनानी लेखकों के विवरणों मे सुरक्षित है। मेगस्थनीज कृत ‘इण्डिका’ तुरमय (टाल्मी 130 ई०) कृत ‘भारत का भूगोल’ और ‘दि पेरीप्लस ऑफ दि एरिथियन सी’ नामक पुस्तकें इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय हैं। अन्तिम पुस्तक में भारत के व्यापार नौवहन का बहुमूल्य विवरण किसी अज्ञात यूनानी ने उपस्थित किया है, जो ईसा की पहली शताब्दी में भारत आया था। परवर्ती काल में चीनी यात्री बहुत बड़ी संख्या में धार्मिक पुस्तकों के संग्रह एवं बौद्ध तीर्थों की यात्रा करने भारत आये। उनमें से फाहियान (पांचवीं शताब्दी) ह्वेनसांग (सातवीं शताब्दी) और इत्सिंग (सातवीं शताब्दी) ने अपने समय के महत्त्वपूर्ण वृत्तान्त लिखे हैं।

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