Pou Phatne Se Pahle

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
अरुण कुमार असफल
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
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अरुण कुमार असफल
Language:
Hindi
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पौ फटने से पहले –
पिछले कुछ दशकों में हिन्दी कहानी अपने विविध आयामों में विकसित होकर समकालीन हिन्दी साहित्य के सामर्थ्य की पहचान जैसी बन चुकी है। उसे इस स्थान पर पहुँचाने में कहानी लेखकों की चार पीढ़ियों का विशिष्ट योगदान तो है ही, सबसे अधिक उल्लेखनीय तथ्य है कई नयी पीढ़ी के सशक्त लेखकों का आविर्भाव, जो एक ओर विभिन्न सामाजिक विडम्बनाओं को भलीभाँति समझते हैं और दूसरी ओर उन स्थितियों में फँसे हुए व्यक्ति की नियति का बड़े सूक्ष्म संवेदनात्मक स्तर पर अनुभव करते हैं। इन लेखकों में अरुण कुमार ‘असफल’ का अपना विशिष्ट स्थान है और इस संग्रह ‘पौ फटने से पहले’ की कहानियाँ उस स्थान की हैसियत का स्वतः प्रमाण हैं।
लेखक के विषयवस्तु सम्बन्धी वैविध्य और अनुभव की विस्तीर्णता—और उन अनुभवों को सहज कल्पनाशीलता के सहारे अपनी ख़ास शैली में कहानी बना देने की क्षमता विस्मयजनक रूप से एक नयेपन और ताज़गी का अहसास कराती है। इन्हीं विशेषताओं के चलते वे सामाजिक विसंगतियाँ भी जैसे दलित, नारी या अल्पसंख्यकों की स्थिति, जो हमारे बीच बहुत मुखर रूप में मौजूद है ‘पुनर्जन्म’, ‘अपराध’ जैसी कहानियों के माध्यम से रचनाशीलता की सर्वथा नयी छटाएँ दिखाते हुए हम एक अप्रत्याशित अनुभव के मोड़ पर लाकर छोड़ती हैं।

ये कहानियाँ किसी बने-बनाये फ़ार्मूला से सर्वथा बचकर ख़ुद अपनी राह का अन्वेषण करती नज़र आती हैं। इसे ‘अन्तहीन अन्त’ में ख़ास तौर से देखा जा सकता है जहाँ मध्यवर्गीय परिवारों में कन्या के लिए वर की खोज जैसी सुपरिचित थीम को ल्यूकोडर्मा के रोग से वास्तविक और प्रतीकात्मक—दोनों रूपों में जोड़कर पूरे प्रश्न को एक सर्वथा नया आयाम दिया गया है।

लेखक ने सम्पूर्ण भारतीय समाज पर व्यापक दृष्टि डाली है; तभी जहाँ ‘मउगा’ जैसी कहानी में निम्नमध्य-वर्गीय ग्रामीण परिवार की वैवाहिक विडम्बनाएँ उजागर होती हैं, वहीं अन्य कहानियों में देश के भीतर अनेक कचोटती हुई स्थिति समाज और व्यक्ति दोनों के भटकाव का चित्रण करती हैं।
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये कहानियाँ पाठक के लिए पठनीयता का उल्लासपूर्ण अनुभव ही नहीं देंगी, उसे सोचने की मजबूर भी करेंगी, कुछ हद तक बेचैन भी बनायेंगी। —श्रीलाल शुक्ल

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पौ फटने से पहले –
पिछले कुछ दशकों में हिन्दी कहानी अपने विविध आयामों में विकसित होकर समकालीन हिन्दी साहित्य के सामर्थ्य की पहचान जैसी बन चुकी है। उसे इस स्थान पर पहुँचाने में कहानी लेखकों की चार पीढ़ियों का विशिष्ट योगदान तो है ही, सबसे अधिक उल्लेखनीय तथ्य है कई नयी पीढ़ी के सशक्त लेखकों का आविर्भाव, जो एक ओर विभिन्न सामाजिक विडम्बनाओं को भलीभाँति समझते हैं और दूसरी ओर उन स्थितियों में फँसे हुए व्यक्ति की नियति का बड़े सूक्ष्म संवेदनात्मक स्तर पर अनुभव करते हैं। इन लेखकों में अरुण कुमार ‘असफल’ का अपना विशिष्ट स्थान है और इस संग्रह ‘पौ फटने से पहले’ की कहानियाँ उस स्थान की हैसियत का स्वतः प्रमाण हैं।
लेखक के विषयवस्तु सम्बन्धी वैविध्य और अनुभव की विस्तीर्णता—और उन अनुभवों को सहज कल्पनाशीलता के सहारे अपनी ख़ास शैली में कहानी बना देने की क्षमता विस्मयजनक रूप से एक नयेपन और ताज़गी का अहसास कराती है। इन्हीं विशेषताओं के चलते वे सामाजिक विसंगतियाँ भी जैसे दलित, नारी या अल्पसंख्यकों की स्थिति, जो हमारे बीच बहुत मुखर रूप में मौजूद है ‘पुनर्जन्म’, ‘अपराध’ जैसी कहानियों के माध्यम से रचनाशीलता की सर्वथा नयी छटाएँ दिखाते हुए हम एक अप्रत्याशित अनुभव के मोड़ पर लाकर छोड़ती हैं।

ये कहानियाँ किसी बने-बनाये फ़ार्मूला से सर्वथा बचकर ख़ुद अपनी राह का अन्वेषण करती नज़र आती हैं। इसे ‘अन्तहीन अन्त’ में ख़ास तौर से देखा जा सकता है जहाँ मध्यवर्गीय परिवारों में कन्या के लिए वर की खोज जैसी सुपरिचित थीम को ल्यूकोडर्मा के रोग से वास्तविक और प्रतीकात्मक—दोनों रूपों में जोड़कर पूरे प्रश्न को एक सर्वथा नया आयाम दिया गया है।

लेखक ने सम्पूर्ण भारतीय समाज पर व्यापक दृष्टि डाली है; तभी जहाँ ‘मउगा’ जैसी कहानी में निम्नमध्य-वर्गीय ग्रामीण परिवार की वैवाहिक विडम्बनाएँ उजागर होती हैं, वहीं अन्य कहानियों में देश के भीतर अनेक कचोटती हुई स्थिति समाज और व्यक्ति दोनों के भटकाव का चित्रण करती हैं।
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये कहानियाँ पाठक के लिए पठनीयता का उल्लासपूर्ण अनुभव ही नहीं देंगी, उसे सोचने की मजबूर भी करेंगी, कुछ हद तक बेचैन भी बनायेंगी। —श्रीलाल शुक्ल

About Author

अरुण कुमार 'असफल' - जन्म: 18 जुलाई, 1968, गोरखपुर (उ.प्र.)। शिक्षा: बी.एससी. (गोरखपुर) एवं सर्वेयर कोर्स (हैदराबाद)। इक्कीसवें वैज्ञानिक अभियान दल के सदस्य के रूप में अंटार्कटिका की यात्रा के अवसर पर पहली रचना गोष्ठी। हिन्दी की अनेक महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

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