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पोत | POT
Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
DUTTATREY GANESH GODSE TRANS. BY DR. GORAKH THORAT
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Setu Prakashan
Author:
DUTTATREY GANESH GODSE TRANS. BY DR. GORAKH THORAT
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
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9789395160483
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
192
दत्तात्रेय गणेश गोडसे का पोत शीर्षक, मराठी कला- समीक्षा सम्बन्धी, ग्रन्थ सन् १९६३ में प्रकाशित हुआ। इस ग्रन्थ के माध्यम से गोडसे जी ने कलात्मक आविष्कार की प्रकृति की खोज करते हुए कला का दर्शन प्रस्तुत किया है। ये विचार साहित्य, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत आदि सभी कलाओं के सम्बन्ध में हैं। साहित्य के अतिरिक्त इसमें ललित कलाओं, विशेषकर चित्रकला, मूर्तिकला, शिल्पकला आदि के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं। इस ग्रन्थ में गोडसे ने कलाविष्कार को वस्त्रों के सन्दर्भ में प्रयुक्त पोत की अवधारणा से जोड़ा है। कपड़ा वह है, जो मूल सामग्री से बनता है। जीवन का सिद्धान्त । धागा वह चेतना है जो इस सिद्धान्त को विस्तृत करती है। ताना-बाना यानी इन संवेदनाओं की आड़ी-खड़ी बुनावट । प्रणाली यानी एक ऐसा माध्यम, जो संवेदना का आविष्कार करता है। गोडसे विस्तार से बताते हैं कि प्रणाली के विकास के साथ आविष्कार की बुनावट कैसे बदलती जाती है।
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Description
दत्तात्रेय गणेश गोडसे का पोत शीर्षक, मराठी कला- समीक्षा सम्बन्धी, ग्रन्थ सन् १९६३ में प्रकाशित हुआ। इस ग्रन्थ के माध्यम से गोडसे जी ने कलात्मक आविष्कार की प्रकृति की खोज करते हुए कला का दर्शन प्रस्तुत किया है। ये विचार साहित्य, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत आदि सभी कलाओं के सम्बन्ध में हैं। साहित्य के अतिरिक्त इसमें ललित कलाओं, विशेषकर चित्रकला, मूर्तिकला, शिल्पकला आदि के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं। इस ग्रन्थ में गोडसे ने कलाविष्कार को वस्त्रों के सन्दर्भ में प्रयुक्त पोत की अवधारणा से जोड़ा है। कपड़ा वह है, जो मूल सामग्री से बनता है। जीवन का सिद्धान्त । धागा वह चेतना है जो इस सिद्धान्त को विस्तृत करती है। ताना-बाना यानी इन संवेदनाओं की आड़ी-खड़ी बुनावट । प्रणाली यानी एक ऐसा माध्यम, जो संवेदना का आविष्कार करता है। गोडसे विस्तार से बताते हैं कि प्रणाली के विकास के साथ आविष्कार की बुनावट कैसे बदलती जाती है।
About Author
दत्तात्रेय गणेश गोडसे जन्म: ३ जुलाई १९१४ निधन: ५ जनवरी १९९२ प्रसिद्ध चित्रकार, पटकथा लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार, सौन्दर्यशास्त्री, कला समीक्षक, आलोचक, मराठी नाटककार। लन्दन विश्वविद्यालय के स्लेड स्कूल से पेण्टिग में डिग्री के साथ स्नातक की पढ़ाई करने वाले गोडसे जी ने मुम्बई के कला महर्षि एस. एल. हल्दनकर और टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के कला निर्देशक वाल्टर लँगहमर के मार्गदर्शन में चित्रकला का अध्ययन किया। बड़ौदा विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य और अवकाश प्राप्ति के बाद मुम्बई विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर छात्रों के लिए सौन्दर्यशास्त्र के अतिथि प्रोफ़ेसर के रूप में अध्यापन किया। गोडसे के बहुआयामी व्यक्तित्व के तीन पहलू हैं। चित्रकला के लिए उनका योगदान, नाटक लेखन-नाटकों का नेपथ्य और बुनियादी अन्वेषण से परिपूर्ण कला-मीमांसा इसके अलावा उन्होंने ललित लेखन और इतिहास अनुसन्धान जैसे क्षेत्रों में भी योगदान दिया है। उनके सात से अधिक कला- मीमांसा सम्बन्धी ग्रन्थ हैं। गोडसे को यथार्थवादी नेपथ्य के साथ-साथ मराठी रंगमंच में त्रि-स्तरीय नेपथ्य का अग्रदूत माना जाता है। कलात्मक और सार्थक चेहरे का संयोजन उनकी विशेषता है। उन्होंने सौ से ज्यादा छोटे-मोटे नाटकों का नेपथ्य किया है। उनके कार्य के लिए उन्हें अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है।
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