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Nyay Ka Ganit (PB)
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Nyay Ka Ganit (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Arundhati Roy, Tr. Jitendra Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Arundhati Roy, Tr. Jitendra Kumar
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹595 ₹476
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ISBN:
SKU
9788126710744
Category Hindi
Category: Hindi
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किसी लेखक की दुनिया कितनी विशाल हो सकती है, इस संग्रह के लेखों से उसे समझा जा सकता है। ये लेख विशेषकर तीसरी दुनिया के समाज में एक लेखक की भूमिका का भी मानदंड कहे जा सकते हैं। अरुंधति रॉय भारतीय अंग्रेजी की उन विरल लेखकों में से हैं जिनका सारा रचनाकर्म अपने सामाजिक सरोकार से उपजा है। इन लेखों को पढ़ते हुए जो बात उभरकर आती है, वह यह कि वही लेखक वैश्विक दृष्टिवाला हो सकता है जिसकी जड़ें अपने समाज में हों। यही वह स्रोत है जो किसी लेखक की आवाज को मजबूती देता है और नैतिक बल से पुष्ट करता है। क्या यह अकारण है कि जिस दृढ़ता से मध्य प्रदेश के आदिवासियों के हक में हम अरुंधति की आवाज सुन सकते हैं, उसी बुलन्दी से वह रेड इंडियनों या आस्ट्रेलिया के आदिवासियों के पक्ष में भी सुनी जा सकती है। तात्पर्य यह है कि परमाणु बम हो या बोध का मसला, अफगानिस्तान हो या इराक, जब वह अपनी बात कह रही होती हैं, उसे अनसुना-अनदेखा नहीं किया जा सकता। वह ऐसी विश्व-मानव हैं जिसकी प्रतिबद्धता संस्कृति, धर्म, सम्प्रदाय, राष्ट्र और भूगोल की सीमाओं को लाँघती नजर आती है। ये लेख भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान से लेकर सर्वशक्तिमान अमरीकी सत्ता प्रतिष्ठान तक के निहित स्वार्थों और क्रिया-कलापों पर समान ताकत से आक्रमण करते हुए उनके जन विरोधी कार्यों को उद्घाटित कर असली चेहरे को हमारे सामने रख देते हैं। एक रचनात्मक लेखक के चुटीलेपन, संवेदनशीलता, सघनता व दृष्टि-सम्पन्नता के अलावा इन लेखों में पत्रकारिता की रवानगी और उस शोधकर्ता का-सा परिश्रम और सजगता है जो अपने तर्क को प्रस्तुत करने के दौरान शायद ही किसी तथ्य का इस्तेमाल करने से चूकता हो।
यह मात्र संयोग है कि संग्रह के लेख पिछली सदी के अन्त और नई सदी के शुरुआती वर्षों में लिखे गए हैं। ये सत्ताओं के दमन और शोषण की विश्वव्यापी प्रवृत्तियों, ताकतवर की मनमानी व हिंसा तथा नव-साम्राज्यवादी मंशाओं के उस बोझ की ओर पूरी तीव्रता से हमारा ध्यान खींचते हैं जो नई सदी के कन्धों पर जाते हुए और भारी होता नजर आ रहा है। अरुंधति रॉय इस अमानुषिक और बर्बर होते खतरनाक समय को मात्र चित्रित नहीं करती हैं, उसके प्रति हमें आगाह भी करती हैं : यह समय मूक दर्शक बने रहने का नहीं है।
–पंकज बिष्ट
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Description
किसी लेखक की दुनिया कितनी विशाल हो सकती है, इस संग्रह के लेखों से उसे समझा जा सकता है। ये लेख विशेषकर तीसरी दुनिया के समाज में एक लेखक की भूमिका का भी मानदंड कहे जा सकते हैं। अरुंधति रॉय भारतीय अंग्रेजी की उन विरल लेखकों में से हैं जिनका सारा रचनाकर्म अपने सामाजिक सरोकार से उपजा है। इन लेखों को पढ़ते हुए जो बात उभरकर आती है, वह यह कि वही लेखक वैश्विक दृष्टिवाला हो सकता है जिसकी जड़ें अपने समाज में हों। यही वह स्रोत है जो किसी लेखक की आवाज को मजबूती देता है और नैतिक बल से पुष्ट करता है। क्या यह अकारण है कि जिस दृढ़ता से मध्य प्रदेश के आदिवासियों के हक में हम अरुंधति की आवाज सुन सकते हैं, उसी बुलन्दी से वह रेड इंडियनों या आस्ट्रेलिया के आदिवासियों के पक्ष में भी सुनी जा सकती है। तात्पर्य यह है कि परमाणु बम हो या बोध का मसला, अफगानिस्तान हो या इराक, जब वह अपनी बात कह रही होती हैं, उसे अनसुना-अनदेखा नहीं किया जा सकता। वह ऐसी विश्व-मानव हैं जिसकी प्रतिबद्धता संस्कृति, धर्म, सम्प्रदाय, राष्ट्र और भूगोल की सीमाओं को लाँघती नजर आती है। ये लेख भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान से लेकर सर्वशक्तिमान अमरीकी सत्ता प्रतिष्ठान तक के निहित स्वार्थों और क्रिया-कलापों पर समान ताकत से आक्रमण करते हुए उनके जन विरोधी कार्यों को उद्घाटित कर असली चेहरे को हमारे सामने रख देते हैं। एक रचनात्मक लेखक के चुटीलेपन, संवेदनशीलता, सघनता व दृष्टि-सम्पन्नता के अलावा इन लेखों में पत्रकारिता की रवानगी और उस शोधकर्ता का-सा परिश्रम और सजगता है जो अपने तर्क को प्रस्तुत करने के दौरान शायद ही किसी तथ्य का इस्तेमाल करने से चूकता हो।
यह मात्र संयोग है कि संग्रह के लेख पिछली सदी के अन्त और नई सदी के शुरुआती वर्षों में लिखे गए हैं। ये सत्ताओं के दमन और शोषण की विश्वव्यापी प्रवृत्तियों, ताकतवर की मनमानी व हिंसा तथा नव-साम्राज्यवादी मंशाओं के उस बोझ की ओर पूरी तीव्रता से हमारा ध्यान खींचते हैं जो नई सदी के कन्धों पर जाते हुए और भारी होता नजर आ रहा है। अरुंधति रॉय इस अमानुषिक और बर्बर होते खतरनाक समय को मात्र चित्रित नहीं करती हैं, उसके प्रति हमें आगाह भी करती हैं : यह समय मूक दर्शक बने रहने का नहीं है।
–पंकज बिष्ट
About Author
अरुन्धति रॉय
अरुंधति रॉय ने वास्तुकला का अध्ययन किया है। आप 'द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स’ जिसके लिए आपको 1997 का ‘बुकर पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और 'द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ की लेखिका हैं। दुनिया-भर में इन दोनों उपन्यासों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी पुस्तकें ‘मामूली चीज़ों का देवता’, 'अपार ख़ुशी का घराना’, 'बेपनाह शादमानी की ममलिकत’ (उर्दू में), 'न्याय का गणित’, 'आहत देश’, 'भूमकाल’, 'कॉमरेडों के साथ’, 'कठघरे में लोकतंत्र’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं। 'माय सीडिशियस हार्ट’ आपकी समग्र कथेतर रचनाओं का संकलन है। आप 2002 के ‘लनन कल्चरल फ़्रीडम पुरस्कार’, 2015 के ‘आंबेडकर सुदर पुरस्कार’ और ‘महात्मा जोतिबा फुले पुरस्कार’ से सम्मानित हैं।
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