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Na Medhaya
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कृष्ण बिहारी मिश्र
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
कृष्ण बिहारी मिश्र
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹250 ₹200
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In stock
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ISBN:
SKU
9789355184207
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
160
न मेधया –
विलायती प्रभाव में जनमी उन्नीसवीं सदी की भारतीय मानस-मनीषा के सन्दर्भ में श्री रामकृष्ण परमहंस की नैसर्गिक प्रतिभा की निजता को उजागर करती है प्रस्तुत कृति ‘न मेधया’। वाचिक शिक्षा की निर्मिति और वाचिक शिक्षा-परम्परा के सिद्ध आचार्य श्री रामकृष्ण की विद्या का मूल्य मूर्धन्य आधुनिक बौद्धिकों की औपचारिक विद्या की तुलना में बहुत ऊँचा रहा है। जन-जन को आलोक-स्पर्श देनेवाली परमहंस की वाचिक शिक्षा के सामने आधुनिक औपचारिक शिक्षा का लोक-मूल्य बहुत छोटा था। इस मार्मिक सत्य के सटीक बोध का ही परिणाम था कि अपने समय के शीर्ष बौद्धिक ब्रह्मानन्द केशवचन्द्र सेन की बौद्धिकता अपढ़ परमहंस के समक्ष नत हो गयी थी।
श्री रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक लीला-चर्या के जागतिक सरोकार को यह पुस्तक वैचारिक विधि से रेखांकित करती है। परमहंस के लीला-प्रसंग के मार्मिक तथ्यों के आधार पर लेखक ने इस सत्य को उजागर किया है कि श्री रामकृष्ण की लीला-चर्या मनुष्य मात्र की यातना के प्रति सदा संवेदनशील रहती थी।
भारतीय ज्ञानपीठ का लोकप्रिय प्रकाशन ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ के लेखक कृष्ण बिहारी मिश्र की परमहंस-प्रसंग पर केन्द्रित यह दूसरी पुस्तक है। मिश्रजी इस पुस्तक को ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ का पूरक अध्याय मानते हैं। ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ का रचना-विन्यास सर्जनशील है। यह पुस्तक श्री रामकृष्ण की भूमिका का मूल्यांकन आधुनिक विचारकोण से करती है, और परमहंस-लीला की प्रासंगिकता को रेखांकित करती है। ज्ञानपीठ आश्वस्त है, विभिन्न आधुनिक विचार-बिन्दुओं पर केन्द्रित कृष्ण बिहारी मिश्र का यह विमर्श आधुनिक विवेक द्वारा समर्थित समादृत होगा। उन्नीसवीं सदी के तथाकथित नवजागरण को निरखने-परखने की एक नयी वैचारिक खिड़की खोलती है यह पुस्तक ‘न मेधया’।
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Description
न मेधया –
विलायती प्रभाव में जनमी उन्नीसवीं सदी की भारतीय मानस-मनीषा के सन्दर्भ में श्री रामकृष्ण परमहंस की नैसर्गिक प्रतिभा की निजता को उजागर करती है प्रस्तुत कृति ‘न मेधया’। वाचिक शिक्षा की निर्मिति और वाचिक शिक्षा-परम्परा के सिद्ध आचार्य श्री रामकृष्ण की विद्या का मूल्य मूर्धन्य आधुनिक बौद्धिकों की औपचारिक विद्या की तुलना में बहुत ऊँचा रहा है। जन-जन को आलोक-स्पर्श देनेवाली परमहंस की वाचिक शिक्षा के सामने आधुनिक औपचारिक शिक्षा का लोक-मूल्य बहुत छोटा था। इस मार्मिक सत्य के सटीक बोध का ही परिणाम था कि अपने समय के शीर्ष बौद्धिक ब्रह्मानन्द केशवचन्द्र सेन की बौद्धिकता अपढ़ परमहंस के समक्ष नत हो गयी थी।
श्री रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक लीला-चर्या के जागतिक सरोकार को यह पुस्तक वैचारिक विधि से रेखांकित करती है। परमहंस के लीला-प्रसंग के मार्मिक तथ्यों के आधार पर लेखक ने इस सत्य को उजागर किया है कि श्री रामकृष्ण की लीला-चर्या मनुष्य मात्र की यातना के प्रति सदा संवेदनशील रहती थी।
भारतीय ज्ञानपीठ का लोकप्रिय प्रकाशन ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ के लेखक कृष्ण बिहारी मिश्र की परमहंस-प्रसंग पर केन्द्रित यह दूसरी पुस्तक है। मिश्रजी इस पुस्तक को ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ का पूरक अध्याय मानते हैं। ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ का रचना-विन्यास सर्जनशील है। यह पुस्तक श्री रामकृष्ण की भूमिका का मूल्यांकन आधुनिक विचारकोण से करती है, और परमहंस-लीला की प्रासंगिकता को रेखांकित करती है। ज्ञानपीठ आश्वस्त है, विभिन्न आधुनिक विचार-बिन्दुओं पर केन्द्रित कृष्ण बिहारी मिश्र का यह विमर्श आधुनिक विवेक द्वारा समर्थित समादृत होगा। उन्नीसवीं सदी के तथाकथित नवजागरण को निरखने-परखने की एक नयी वैचारिक खिड़की खोलती है यह पुस्तक ‘न मेधया’।
About Author
डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र -
जन्म: 1 जुलाई, 1936; बलिहार, बलिया (उ.प्र.)।
शिक्षा: एम.ए. (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएच.डी. (कलकत्ता विश्वविद्यालय)।
1996 में बंगवासी मार्निंग कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त। देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों के सारस्वत प्रसंगों में सक्रिय भूमिका।
प्रमुख कृतियाँ: 'हिन्दी पत्रकारिता : जातीय चेतना और खड़ी बोली साहित्य की निर्माण-भूमि', 'पत्रकारिता : इतिहास और प्रश्न', 'हिन्दी पत्रकारिता : जातीय अस्मिता की जागरण भूमिका', 'गणेश शंकर विद्यार्थी', 'हिन्दी पत्रकारिता : राजस्थानी आयोजन की कृती भूमिका' (पत्रकारिता); 'अराजक उल्लास', 'बेहया का जंगल', 'मकान उठ रहे हैं', 'आँगन की तलाश', 'गोरैया ससुराल गयी' (ललित निबन्ध संग्रह); 'आस्था और मूल्यों का संक्रमण', 'आलोक पंथा', 'सम्बुद्धि', 'परम्परा का पुरुषार्थ', 'माटी महिमा का सनातन राग' (विचार प्रधान निबन्ध-संग्रह); 'नेह के नाते अनेक' (संस्मरण); 'कल्पतरु की उत्सव लीला' और 'न मेधया' (परमहंस रामकृष्णदेव के लीला-प्रसंग पर केन्द्रित)। अनेक कृतियों का सम्पादन; 'भगवान बुद्ध' (यूनू की अंग्रेज़ी पुस्तक का अनुवाद)। त्रैमासिक पत्रिका 'समिधा' और मासिक 'भोजपुरी माटी' का सम्पादन।
'माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय' द्वारा डी.लिट्. की मानद उपाधि। 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' के 'साहित्य भूषण पुरस्कार', 'कल्पतरु की उत्सव लीला' हेतु वर्ष 2006 के भारतीय ज्ञानपीठ के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार' से सम्मानित।
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