Meeran Sanchayan

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सम्पादक नन्द चतुर्वेदी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
सम्पादक नन्द चतुर्वेदी
Language:
Hindi
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मीराँ संचयन – मीराँ के दहकते हुए जीवन में से मलयानिल की तरह कविता आती है? क्या यह प्रतिवाद, प्रतिरोध की कविता है? क्या कोई कविता इस तरह सामाजिक बदलाव के लिए सार्थक, प्रासंगिक हो सकती है? मीराँ की कविता वास्तव में यहीं ‘कवि-कर्म’ की सबसे जटिल चुनौती उपस्थित करती है। वे क्रूरतम सामन्ती-समाज की यातनाएँ सहती हैं और उसी आविभाज्य जीवन में से विक्षोभ रहित पद रचती हैं और तब भी हम यह भूलते नहीं हैं कि क्लेशों के अग्नि-कुण्ड में वे बैठी हैं। उनकी कविता इस तरह एक भिन्न संघर्ष-अनुभव, यातना-बोध की कविता हो जाती है। प्रायः हम जीवन की रोशनी में कविता की व्याख्या करते हैं लेकिन मीराँ की कविता इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि उससे जीवन भी व्याख्यायित होता है। मीराँ की कविता उनके निष्कलुष, निर्भीक, निष्कपट, मन को समाज के साथ रखती है और उनकी भाषा शुद्धतावादी आभिजात्य के दर्प को तोड़ती है।
मीराँ संचयन –
मीराँ के दहकते हुए जीवन में से मलयानिल की तरह कविता आती है? क्या यह प्रतिवाद, प्रतिरोध की कविता है? क्या कोई कविता इस तरह सामाजिक बदलाव के लिए सार्थक, प्रासंगिक हो सकती है? मीराँ की कविता वास्तव में यहीं ‘कवि-कर्म’ की सबसे जटिल चुनौती उपस्थित करती है। वे क्रूरतम सामन्ती-समाज की यातनाएँ सहती हैं और उसी आविभाज्य जीवन में से विक्षोभ रहित पद रचती हैं और तब भी हम यह भूलते नहीं हैं कि क्लेशों के अग्नि-कुण्ड में वे बैठी हैं। उनकी कविता इस तरह एक भिन्न संघर्ष-अनुभव, यातना-बोध की कविता हो जाती है। प्रायः हम जीवन की रोशनी में कविता की व्याख्या करते हैं लेकिन मीराँ की कविता इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि उससे जीवन भी व्याख्यायित होता है। मीराँ की कविता उनके निष्कलुष, निर्भीक, निष्कपट, मन को समाज के साथ रखती है और उनकी भाषा शुद्धतावादी आभिजात्य के दर्प को तोड़ती है।

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मीराँ संचयन – मीराँ के दहकते हुए जीवन में से मलयानिल की तरह कविता आती है? क्या यह प्रतिवाद, प्रतिरोध की कविता है? क्या कोई कविता इस तरह सामाजिक बदलाव के लिए सार्थक, प्रासंगिक हो सकती है? मीराँ की कविता वास्तव में यहीं ‘कवि-कर्म’ की सबसे जटिल चुनौती उपस्थित करती है। वे क्रूरतम सामन्ती-समाज की यातनाएँ सहती हैं और उसी आविभाज्य जीवन में से विक्षोभ रहित पद रचती हैं और तब भी हम यह भूलते नहीं हैं कि क्लेशों के अग्नि-कुण्ड में वे बैठी हैं। उनकी कविता इस तरह एक भिन्न संघर्ष-अनुभव, यातना-बोध की कविता हो जाती है। प्रायः हम जीवन की रोशनी में कविता की व्याख्या करते हैं लेकिन मीराँ की कविता इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि उससे जीवन भी व्याख्यायित होता है। मीराँ की कविता उनके निष्कलुष, निर्भीक, निष्कपट, मन को समाज के साथ रखती है और उनकी भाषा शुद्धतावादी आभिजात्य के दर्प को तोड़ती है।
मीराँ संचयन –
मीराँ के दहकते हुए जीवन में से मलयानिल की तरह कविता आती है? क्या यह प्रतिवाद, प्रतिरोध की कविता है? क्या कोई कविता इस तरह सामाजिक बदलाव के लिए सार्थक, प्रासंगिक हो सकती है? मीराँ की कविता वास्तव में यहीं ‘कवि-कर्म’ की सबसे जटिल चुनौती उपस्थित करती है। वे क्रूरतम सामन्ती-समाज की यातनाएँ सहती हैं और उसी आविभाज्य जीवन में से विक्षोभ रहित पद रचती हैं और तब भी हम यह भूलते नहीं हैं कि क्लेशों के अग्नि-कुण्ड में वे बैठी हैं। उनकी कविता इस तरह एक भिन्न संघर्ष-अनुभव, यातना-बोध की कविता हो जाती है। प्रायः हम जीवन की रोशनी में कविता की व्याख्या करते हैं लेकिन मीराँ की कविता इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि उससे जीवन भी व्याख्यायित होता है। मीराँ की कविता उनके निष्कलुष, निर्भीक, निष्कपट, मन को समाज के साथ रखती है और उनकी भाषा शुद्धतावादी आभिजात्य के दर्प को तोड़ती है।

About Author

नन्द चतुर्वेदी - जन्म : 21 अप्रैल, 1923, रावजी का पीपल्या (स्वतन्त्रता पूर्व मेवाड़, राजस्थान, अब मध्यप्रदेश, जिला : मनासा) माता-पिता : श्रीमती लीलावती, श्री सुदर्शनलाल चतुर्वेदी पैतृक-निवास : झालावाड़ (राजस्थान) अध्ययन-अध्यापन : हिन्दी में स्नातकोत्तर, बी.टी., महाराष्ट्र और राजस्थान के विभिन्न महाविद्यालयों-विद्यालयों में प्राध्यापक-अध्यापक। प्रकाशन : यह समय मामूली नहीं, ईमानदार दुनिया के लिए, वे सोए तो नहीं होंगे, उत्सव का निर्मम समय (सभी कविता संग्रह) शब्द संसार की यायावरी, सुधीन्द्र : व्यक्ति और कविता (आलोचना), अनुवाद : लेखन से दुनिया के बच जाने की आशा - आल्यबेर काम्यू , प्रभाव: आन्द्रे जीद, रसज्ञता जे. बी. प्रीस्टले, रचनाकार और उसकी समस्याएँ: यूजीन आयनेस्को सम्पादन : मीराँ रचनावली (पद और रचना पर लम्बा निबंध) महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के आग्रह पर। 'बिन्दु' (त्रैमासिक 1966 से 1972), 'जय हिन्द' (समाजवादी साप्ताहिक, कोटा) 'मधुमती' (राजस्थान साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका), 'जन-शिक्षण' (शिक्षा का मासिक पत्र : विद्याभवन सोसायटी, उदयपुर) राजस्थान के कवि : भाग-1 (राजस्थान साहित्य अकादमी के लिए) सम्मान : राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार, बिड़ला फाउन्डेशन का बिहारी पुरस्कार (1992), लोकमंगल पुरस्कार (मुंबई) प्रसार भारती का 'प्रसारण सम्मान 98' । भारत सरकार के संस्कृति विभाग तथा राज. साहित्य अकादमी की फेलोशिप, दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन के प्रतिनिधि मंडल की सदस्यता । सम्पर्क : 30, अहिंसापुरी, उदयपुर, राजस्थान

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