Media Samagra (Media : A Complete Overview)

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
डॉ. अर्जुन तिवारी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
डॉ. अर्जुन तिवारी
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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मीडिया युगबोध के साथ मानवता के विकास और विचारोत्तेजन का राजमार्ग है। समाज, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं अन्तरिक्ष के व्यापक प्रसार के साथ मानव-संघर्ष, प्रगति-दुर्गति वाले जीवन-सागर में आये ज्वार-भाटा को संसूचित करने में मीडिया ही सक्षम है। अविश्वास, अन्धविश्वास, अन्धेरगर्दी को मिटाकर सभ्य, सदाशय समाज के निर्माता संचार-संसाधन ही हैं जो अद्यतन घटनाओं के उद्घोषक, वैचारिक आन्दोलन के पुरोधा सिद्ध हो रहे हैं। पल-पल पर परिवर्तित जीवन और जगत् की अनन्त जिज्ञासा का सूत्रधार यही मीडिया है जो अभिव्यक्ति का समग्र विज्ञान तथा मनोरम कला है। ‘देश की धड़कन के साथ धड़कता सूचना-स्रोत’, ‘नया नज़रिया-नयी तकनीक’ से सम्पुष्ट मीडिया ‘मिशन’, ‘प्रोफ़ेशन’ और ‘एम्बिशन’ है जिसमें सुप्रशिक्षित होकर सम्पादक, उपसम्पादक, ब्यूरोचीफ़, वार्ताकार, कमेंटेटर, स्तम्भ लेखक, कार्टूनिस्ट, पी.आर.ओ., हिन्दी अधिकारी तथा प्रोफ़ेसर के रूप में जीवन को समुज्ज्वल बनाया जा सकता है। इंडियन इन्फार्मेशन सर्विस, डी.ए.वी.पी., फ़िल्म्स डिवीजन, नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो, पब्लिकेशन डिवीजन, प्रसार भारती के विविध पदों पर वही आसीन हो सकता है जो मीडिया विशेषज्ञ हो। मल्टीमीडिया के विभिन्न स्वरूपों में दक्षता प्राप्त कर युवा पीढ़ी गोल्ड, ग्लोरी, ग्लैमर का हकदार बन सकती है जिसके निमित्त ही इस ग्रन्थ को प्रस्तुत किया जा रहा है।

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मीडिया युगबोध के साथ मानवता के विकास और विचारोत्तेजन का राजमार्ग है। समाज, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं अन्तरिक्ष के व्यापक प्रसार के साथ मानव-संघर्ष, प्रगति-दुर्गति वाले जीवन-सागर में आये ज्वार-भाटा को संसूचित करने में मीडिया ही सक्षम है। अविश्वास, अन्धविश्वास, अन्धेरगर्दी को मिटाकर सभ्य, सदाशय समाज के निर्माता संचार-संसाधन ही हैं जो अद्यतन घटनाओं के उद्घोषक, वैचारिक आन्दोलन के पुरोधा सिद्ध हो रहे हैं। पल-पल पर परिवर्तित जीवन और जगत् की अनन्त जिज्ञासा का सूत्रधार यही मीडिया है जो अभिव्यक्ति का समग्र विज्ञान तथा मनोरम कला है। ‘देश की धड़कन के साथ धड़कता सूचना-स्रोत’, ‘नया नज़रिया-नयी तकनीक’ से सम्पुष्ट मीडिया ‘मिशन’, ‘प्रोफ़ेशन’ और ‘एम्बिशन’ है जिसमें सुप्रशिक्षित होकर सम्पादक, उपसम्पादक, ब्यूरोचीफ़, वार्ताकार, कमेंटेटर, स्तम्भ लेखक, कार्टूनिस्ट, पी.आर.ओ., हिन्दी अधिकारी तथा प्रोफ़ेसर के रूप में जीवन को समुज्ज्वल बनाया जा सकता है। इंडियन इन्फार्मेशन सर्विस, डी.ए.वी.पी., फ़िल्म्स डिवीजन, नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो, पब्लिकेशन डिवीजन, प्रसार भारती के विविध पदों पर वही आसीन हो सकता है जो मीडिया विशेषज्ञ हो। मल्टीमीडिया के विभिन्न स्वरूपों में दक्षता प्राप्त कर युवा पीढ़ी गोल्ड, ग्लोरी, ग्लैमर का हकदार बन सकती है जिसके निमित्त ही इस ग्रन्थ को प्रस्तुत किया जा रहा है।

About Author

डॉ. अर्जुन तिवारी अध्यापन अनुभव : पत्रकारिता एवं साहित्य का पी. जी. कक्षाओं में 34 वर्षों तक अध्यापन। काशी विद्यापीठ से पत्रकारिता विभागाध्यक्ष से सेवानिवृत्त। वृत्तचित्र निर्माण : काशी विद्यापीठ, बाबा राघव दास, गाँधी पर वृत्तचित्र निर्माण-निर्देशन। सम्पादन : 'शाश्वत शिक्षा शास्त्र', 'काशी विद्यापीठ कौस्तुभ गौरव ग्रन्थ', 'रामेश्वर टांटिया रचनावली' । पुरस्कार : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ग्रन्थ-लेखन हेतु सन् 1988 में अनुशंसित, सन् 1999 में नामित पुरस्कार से पुरस्कृत (उ.प्र. हिन्दी संस्थान), दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा कर्नाटक द्वारा हिन्दी की विशिष्ट सेवा हेतु 1993 में सम्मान पदक से अलंकृत, बाबूराव विष्णु पराड़कर नामित पुरस्कार से अलंकृत, राहुल सांकृत्यायन नामित पुरस्कार, 2015। प्रकाशित ग्रन्थ : स्वतन्त्रता आन्दोलन और हिन्दी पत्रकारिता, आधुनिक पत्रकारिता, जनसंचार और हिन्दी पत्रकारिता, हिन्दी पत्रकारिता का वृहद् इतिहास, इतिहास निर्माता पत्रकार, कृषि ग्रामीण विकास पत्रकारिता, ई-जर्नलिज्म, महात्मा गाँधी की पत्रकारिता, हिन्दी व्याकरण और रचना, देवराहा दर्शन, पराड़कर जी : एक जीवनी, सम्पादकाचार्य पं. अम्बिका प्रसाद वाजपेयी, मीडिया माफिया, जनसम्पर्क सिद्धान्त एवं व्यवहार, आधुनिक विज्ञापन, सम्पूर्ण पत्रकारिता, सद्भाव सेतु शंकर, भोजपुरी साहित्य के इतिहास, भोजपुरी-हिन्दी-अंग्रेज़ी त्रिभाषी शब्दकोश, मीडिया समग्र, भोजपुरी-हिन्दी शब्दकोश। हिन्दी प्रोत्साहन विशेषज्ञ समिति : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) द्वारा गठित उच्च शिक्षा में हिन्दी प्रोत्साहन विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष मनोनीत । अध्यक्ष के रूप में अपनी सक्रियता से 16 विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभाग की स्थापना में सफलता प्राप्त।

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