SaleSold outHardback
Thodi Si Jagah (HB)
₹395 ₹316
Save: 20%
Hindi Sahitya Ka Doosara Itihas (HB)
₹1,295 ₹1,036
Save: 20%
Mati Mati Arkati (HB)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Ashwini Kumar Pankaj
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Ashwini Kumar Pankaj
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹495 ₹396
Save: 20%
Out of stock
Receive in-stock notifications for this.
Ships within:
1-4 Days
Out of stock
ISBN:
SKU
9788183616775
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
ब्रिटिश उपनिवेश द्वारा भारत से बाहर ले जाए गए मज़दूरों को तत्कालीन कम्पनियाँ और उनके एजेंट दो नामों से पुकारते थे। दक्षिण भारत, बिहार और प. उत्तर प्रदेश के ग़ैर-आदिवासी मज़दूरों को ‘कुली’ और झारखंड के सदान और आदिवासियों को ‘हिल कुली’, ‘धांगर’ और ‘कोल’ कहा जाता था। ये और कोई नहीं ग्रेटर झारखंड की उरांव, मुंडा, संताल, खड़िया और सदान जातियाँ थीं। ब्रिटिश संसद और ब्रिटिश उपनिवेशों में मौजूद दस्तावेज़ों में झारखंड के आदिवासियों के आप्रवासन के ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं।
कालान्तर में मॉरीशस, गयाना, फ़िजी, सूरीनाम, टुबैगो सहित अन्य कैरीबियन तथा लैटिन अमेरिकी और अफ़्रीकी देशों में लगभग डेढ़ सदी पहले ले जाए गए ग़ैर-आदिवासी गिरमिटिया मज़दूरों ने बेशक लम्बे संघर्ष के बाद इन देशों को भोजपुरी बना दिया है और वहाँ के नीति-नियन्ताओं में शामिल हो गए हैं। लेकिन सवाल है कि वे हज़ारों झारखंडी जो सबसे पहले वहाँ पहुँचे थे, कहाँ चले गए? कैसे और कब वे गिरमिटिया कुलियों की नवनिर्मित भोजपुरी दुनिया से ग़ायब हो गए? ऐसा क्यों हुआ कि गिरमिटिया कुली ख़ुद तो आज़ादी पा गए लेकिन उनकी आज़ादी हिल कुलियों को चुपचाप गड़प कर गई। एक कुली की आज़ादी कैसे दूसरे कुली के ख़ात्मे का सबब बनी? क्या थोड़े आर्थिक संसाधन जुटते ही उनमें बहुसंख्यक धार्मिक और नस्ली वर्चस्व का विषधर दोबारा जाग गया और वहाँ उस अनजान धरती पर फिर से ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार और वैश्य पैदा हो गए? सो भी इतनी समझदारी के साथ कि ‘शूद्र’ को नई सामाजिक संरचना में जन्मने ही नहीं दिया?
इस उपन्यास का मूल प्रश्न यही है। कोन्ता और कुन्ती की इस कहानी को कहने के पीछे लेखक का उद्देश्य पूरब और पश्चिम दोनों के ग़ैर-आदिवासी समाजों में मौजूद नस्ली और ब्राह्मणवादी चरित्र को उजागर करना है जिसे विकसित सभ्यताओं की बौद्धिक दार्शनिकता के ज़रिए अनदेखा किया जाता रहा है।
Be the first to review “Mati Mati Arkati (HB)” Cancel reply
Description
ब्रिटिश उपनिवेश द्वारा भारत से बाहर ले जाए गए मज़दूरों को तत्कालीन कम्पनियाँ और उनके एजेंट दो नामों से पुकारते थे। दक्षिण भारत, बिहार और प. उत्तर प्रदेश के ग़ैर-आदिवासी मज़दूरों को ‘कुली’ और झारखंड के सदान और आदिवासियों को ‘हिल कुली’, ‘धांगर’ और ‘कोल’ कहा जाता था। ये और कोई नहीं ग्रेटर झारखंड की उरांव, मुंडा, संताल, खड़िया और सदान जातियाँ थीं। ब्रिटिश संसद और ब्रिटिश उपनिवेशों में मौजूद दस्तावेज़ों में झारखंड के आदिवासियों के आप्रवासन के ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं।
कालान्तर में मॉरीशस, गयाना, फ़िजी, सूरीनाम, टुबैगो सहित अन्य कैरीबियन तथा लैटिन अमेरिकी और अफ़्रीकी देशों में लगभग डेढ़ सदी पहले ले जाए गए ग़ैर-आदिवासी गिरमिटिया मज़दूरों ने बेशक लम्बे संघर्ष के बाद इन देशों को भोजपुरी बना दिया है और वहाँ के नीति-नियन्ताओं में शामिल हो गए हैं। लेकिन सवाल है कि वे हज़ारों झारखंडी जो सबसे पहले वहाँ पहुँचे थे, कहाँ चले गए? कैसे और कब वे गिरमिटिया कुलियों की नवनिर्मित भोजपुरी दुनिया से ग़ायब हो गए? ऐसा क्यों हुआ कि गिरमिटिया कुली ख़ुद तो आज़ादी पा गए लेकिन उनकी आज़ादी हिल कुलियों को चुपचाप गड़प कर गई। एक कुली की आज़ादी कैसे दूसरे कुली के ख़ात्मे का सबब बनी? क्या थोड़े आर्थिक संसाधन जुटते ही उनमें बहुसंख्यक धार्मिक और नस्ली वर्चस्व का विषधर दोबारा जाग गया और वहाँ उस अनजान धरती पर फिर से ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार और वैश्य पैदा हो गए? सो भी इतनी समझदारी के साथ कि ‘शूद्र’ को नई सामाजिक संरचना में जन्मने ही नहीं दिया?
इस उपन्यास का मूल प्रश्न यही है। कोन्ता और कुन्ती की इस कहानी को कहने के पीछे लेखक का उद्देश्य पूरब और पश्चिम दोनों के ग़ैर-आदिवासी समाजों में मौजूद नस्ली और ब्राह्मणवादी चरित्र को उजागर करना है जिसे विकसित सभ्यताओं की बौद्धिक दार्शनिकता के ज़रिए अनदेखा किया जाता रहा है।
About Author
अश्विनी कुमार पंकज
जन्म : 1964; डॉ. एम.एस. 'अवधेश' और स्मृतिशेष कमला की सात सन्तानों में से एक।
शिक्षा : कला स्नातकोत्तर।
1991 से ज़िन्दगी और सृजन के मोर्चे पर वन्दना टेटे की सहभागिता। पिछले तीन दशकों से अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों—रंगकर्म, कविता-कहानी, आलोचना, पत्रकारिता, डाक्यूमेंटरी, प्रिंट और वेब में रचनात्मक उपस्थिति। झारखंड एवं राजस्थान के आदिवासी जीवनदर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और इतिहास पर विशेष कार्य।
‘उलगुलान संगीत नाट्य दल’, राँची के संस्थापक सदस्य। 1987 में रंगमंचीय त्रैमासिक पत्रिका ‘विदेशिया’ (राँची) का प्रकाशन-सम्पादन; 1995 में भाकपा-माले राजस्थान के मुखपत्र ‘हाका’, 2006 में राँची से लोकप्रिय मासिक नागपुरी पत्रिका ‘जोहार सहिया’ और पाक्षिक बहुभाषी अख़बार ‘जोहार दिसुम खबर’ का सम्पादन; फ़िलवक़्त रंगमंच एवं प्रदर्श्यकारी कलाओं की त्रैमासिक पत्रिका ‘रंगवार्ता’ और बहुभाषायी त्रैमासिक पत्रिका ‘झारखंडी भाषा, साहित्य, संस्कृति : अखड़ा’ के प्रकाशन से सम्बद्ध।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘पेनाल्टी कॉर्नर’, ‘इसी सदी के असुर’, ‘सालो’, ‘अथ दुड़गम असुर हत्या कथा’ (कहानी-संग्रह); ‘जो मिट्टी की नमी जानते हैं’, ‘ख़ामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता’ (कविता-संग्रह), ‘युद्ध और प्रेम’, ‘भाषा कर रही है दावा’ (लम्बी कविता); ‘छाँइह में रउद’ (दुष्यंत कुमार की ग़जलों का नागपुरी अनुवाद); ‘एक अराष्ट्रीय वक्तव्य’ (विचार); ‘नागपुरी साहित्य का इतिहास’ (भाषा साहित्य); ‘रंग-बिदेसिया’ (भिखारी ठाकुर पर), ‘उपनिवेशवाद और आदिवासी संघर्ष’, ‘आदिवासीडम’ और ‘प्राथमिक आदिवासी विमर्श’ (सम्पादन); ‘मरड़ गोमके जयपाल सिंह मुंडा’ (जीवनी); ‘माटी माटी अरकाटी’ (उपन्यास) प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Mati Mati Arkati (HB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Reviews
There are no reviews yet.