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Mati Mataal
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
गोपीनाथ महान्ती अनुवाद शंकरलाल पुरोहित
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
गोपीनाथ महान्ती अनुवाद शंकरलाल पुरोहित
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789326351553
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
656
माटीमटाल –
ओड़िया के यशस्वी उपन्यासकार गोपीनाथ महान्ती का ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास है ‘माटीमटाल’। यह रचना ओड़िया ही नहीं, समूचे भारत के ग्राम्य-जीवन का गौरव-ग्रन्थ है। गोपीनाथ महान्ती के कथा-संसार के प्रेरणास्रोत उनके देखे भोगे यथार्थ हैं, यह निर्विवाद है। चाहे आदिवासियों के, चाहे दलित वर्ग के और चाहे सुविधाभोगियों के सन्दर्भ में हो—उनके कथानकों में जीवन और कर्मठता की एक विशेष प्रकार की सहज अभिव्यक्ति है।
विभिन्न प्रकार के विषयों और मनोभावों के अम्बार में और भिन्न-भिन्न सामाजिक परिवेशों में जी रहे पात्रों के चरित्र-चित्रण में गोपी बाबू परिस्थितिजन्य संकीर्णता और दैनन्दिन जीवन के सुपरिचित स्वार्थों की निर्लिप्तता से ऊपर उठकर मानव की अजेय चेतना की कीर्ति फैलाने में अत्यन्त सफल हुए हैं। शोषण के विभिन्न रूपों को दिखाते हुए उनकी कथाएँ शोषक और शोषण के सम्बन्धों को इतनी निर्ममता और सचाई से चित्रित करती हैं कि पाठक को इससे किसी एक वर्ग के प्रति रोष और दूसरे वर्ग के लिए, सहानुभूति उपजने से अधिक जटिल मानवीय स्थिति का बोध होता है। यह सब गोपीनाथ महान्ती की कलात्मक दृष्टि के कारण ही सम्भव हुआ है। और यही है उनके शिल्प की विशिष्टता। इसके माध्यम से यह एक सामाजिक स्थिति को ‘मेटाफिज़िकल’ स्तर पर उठाकर ला रखते हैं, ‘जहाँ शोषित वर्ग का विद्रोह केवल किसी अन्य वर्ग से सामाजिक न्याय पाने की प्रक्रिया मात्र न रहकर मनुष्य का नियति की क्रूरता से अपनी रक्षा करने का सार्वभौमिक प्रयास बन जाता है।’ प्रस्तुत है ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित एक महान औपन्यासिक कृति।
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Description
माटीमटाल –
ओड़िया के यशस्वी उपन्यासकार गोपीनाथ महान्ती का ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास है ‘माटीमटाल’। यह रचना ओड़िया ही नहीं, समूचे भारत के ग्राम्य-जीवन का गौरव-ग्रन्थ है। गोपीनाथ महान्ती के कथा-संसार के प्रेरणास्रोत उनके देखे भोगे यथार्थ हैं, यह निर्विवाद है। चाहे आदिवासियों के, चाहे दलित वर्ग के और चाहे सुविधाभोगियों के सन्दर्भ में हो—उनके कथानकों में जीवन और कर्मठता की एक विशेष प्रकार की सहज अभिव्यक्ति है।
विभिन्न प्रकार के विषयों और मनोभावों के अम्बार में और भिन्न-भिन्न सामाजिक परिवेशों में जी रहे पात्रों के चरित्र-चित्रण में गोपी बाबू परिस्थितिजन्य संकीर्णता और दैनन्दिन जीवन के सुपरिचित स्वार्थों की निर्लिप्तता से ऊपर उठकर मानव की अजेय चेतना की कीर्ति फैलाने में अत्यन्त सफल हुए हैं। शोषण के विभिन्न रूपों को दिखाते हुए उनकी कथाएँ शोषक और शोषण के सम्बन्धों को इतनी निर्ममता और सचाई से चित्रित करती हैं कि पाठक को इससे किसी एक वर्ग के प्रति रोष और दूसरे वर्ग के लिए, सहानुभूति उपजने से अधिक जटिल मानवीय स्थिति का बोध होता है। यह सब गोपीनाथ महान्ती की कलात्मक दृष्टि के कारण ही सम्भव हुआ है। और यही है उनके शिल्प की विशिष्टता। इसके माध्यम से यह एक सामाजिक स्थिति को ‘मेटाफिज़िकल’ स्तर पर उठाकर ला रखते हैं, ‘जहाँ शोषित वर्ग का विद्रोह केवल किसी अन्य वर्ग से सामाजिक न्याय पाने की प्रक्रिया मात्र न रहकर मनुष्य का नियति की क्रूरता से अपनी रक्षा करने का सार्वभौमिक प्रयास बन जाता है।’ प्रस्तुत है ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित एक महान औपन्यासिक कृति।
About Author
गोपीनाथ महान्ती -
गोपीनाथ महान्ती का जन्म 20 अप्रैल, 1914 को उड़ीसा प्रान्त के कटक ज़िले में सिढुआ नदी के किनारे बसे नागबलि गाँव में एक कुलीन ज़मींदार परिवार में हुआ। चौदह वर्ष की अल्पायु में ही लिखना आरम्भ करनेवाले इस साहित्यिक महारथी की लगभग 50 कृतियाँ प्रकाशित हैं। अनुभव और अनुभूति के आधार पर श्री महान्ती ने आदिवासी, हरिजन, मज़दूर, किसान, निम्न-मध्यवर्ग और अन्य शोषित वर्गों को साहित्य में प्रतिष्ठित किया है।
श्री महान्ती प्रजातन्त्र साहित्य परिषद, केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और देश के सर्वोच्च साहित्य-अलंकरण 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं। 1981 में राष्ट्रपति ने उन्हें 'पद्मभूषण' का सम्मान प्रदान किया।
सन् 1991 में निधन।
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