Marxvadi Saundaryashastra : Samagra Chintan

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
ज्ञान रंजन, कमला प्रसाद, संपादक 'पहल ’श्रृंखला राजकुमार केसवानी द्वारा संपादित
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
ज्ञान रंजन, कमला प्रसाद, संपादक 'पहल ’श्रृंखला राजकुमार केसवानी द्वारा संपादित
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328

भारत में भी स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान दूसरे दशक में मार्क्सवाद की विचार दृष्टि आ चुकी थी। स्वप्नलोक के कवि टैगोर, कवि सुब्रह्मण्यम भारती और प्रेमचन्द पर। इसका तत्काल प्रभाव पड़ा था। इनके सहित अनेक रचनाकार क्रान्ति के स्वप्न देखने लगे थे और अपनी ‘बेलाग लेखनी से ब्रिटिश साम्राज्यवाद और देशी सामन्तवाद के खिलाफ़ सर्वहारा की संगठन की। आत्मशक्ति प्रदान कर रहे थे। तीसरे दशक के समाप्त होते-होते रचनाकारों में अभूतपूर्व लहर दौड़ी। भावुकता के स्तर पर ही सही संख्यातीत रचनाकार जन्मे। सज्जाद ज़हीर, मुल्कराज आनन्द और प्रेमचन्द के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ का जन्म हुआ। तत्काल बुर्जुआ सौन्दर्यवाद के खिलाफ़ जनवादी सौन्दर्य के पक्षधरों ने संकल्प लिया, संकल्प की नयी उत्तेजना और दृष्टिकोण के साथ आरोह-अवरोह से गुज़रता प्रगतिशील लेखन सम्प्रति राष्ट्रीय रचना कर्म के भीतर एक अनिवार्य धारा बन गया। पाँचवें दशक में इस धारा को राजनीतिक आक्रोश का शिकार होना पड़ा। छठवें दशक में आत्मवादी, प्रतिगामी और बुर्जुआ रचनाकारों ने संगठित हमला किया किन्तु अजेय जनवादी सौन्दर्य-दृष्टि रचनाकारों में जीवित रही। अटूट, दृढ़ जीवनी शक्ति का प्रमाण मुक्तिबोध की रचनाओं के प्रकाशनोपरान्त और
बुलन्दी से मिला। सातवें और आठवें दशकों में यह शक्ति इतनी प्रभावशील हो गयी कि बुर्जुआ कला के योजनाकार सांसत में पड़ गये। अतएव, आज हम जहाँ खड़े हैं, हमारे पास मार्क्सवादी रचनाकारों की समर्थ शृंखला है। अब ज़रूरत इस बात की है कि हम समूची विरासत को पहचानें, आत्मालोचन करें और बुर्जुआ संस्कृति की रक्षा के लिए किये जा रहे ताबड़तोड़ प्रयासों को आमूल नष्ट करने का बीड़ा लें। ‘मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र’ की यह पुस्तक ऐसे ही प्रयास का एक अंग है।

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भारत में भी स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान दूसरे दशक में मार्क्सवाद की विचार दृष्टि आ चुकी थी। स्वप्नलोक के कवि टैगोर, कवि सुब्रह्मण्यम भारती और प्रेमचन्द पर। इसका तत्काल प्रभाव पड़ा था। इनके सहित अनेक रचनाकार क्रान्ति के स्वप्न देखने लगे थे और अपनी ‘बेलाग लेखनी से ब्रिटिश साम्राज्यवाद और देशी सामन्तवाद के खिलाफ़ सर्वहारा की संगठन की। आत्मशक्ति प्रदान कर रहे थे। तीसरे दशक के समाप्त होते-होते रचनाकारों में अभूतपूर्व लहर दौड़ी। भावुकता के स्तर पर ही सही संख्यातीत रचनाकार जन्मे। सज्जाद ज़हीर, मुल्कराज आनन्द और प्रेमचन्द के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ का जन्म हुआ। तत्काल बुर्जुआ सौन्दर्यवाद के खिलाफ़ जनवादी सौन्दर्य के पक्षधरों ने संकल्प लिया, संकल्प की नयी उत्तेजना और दृष्टिकोण के साथ आरोह-अवरोह से गुज़रता प्रगतिशील लेखन सम्प्रति राष्ट्रीय रचना कर्म के भीतर एक अनिवार्य धारा बन गया। पाँचवें दशक में इस धारा को राजनीतिक आक्रोश का शिकार होना पड़ा। छठवें दशक में आत्मवादी, प्रतिगामी और बुर्जुआ रचनाकारों ने संगठित हमला किया किन्तु अजेय जनवादी सौन्दर्य-दृष्टि रचनाकारों में जीवित रही। अटूट, दृढ़ जीवनी शक्ति का प्रमाण मुक्तिबोध की रचनाओं के प्रकाशनोपरान्त और
बुलन्दी से मिला। सातवें और आठवें दशकों में यह शक्ति इतनी प्रभावशील हो गयी कि बुर्जुआ कला के योजनाकार सांसत में पड़ गये। अतएव, आज हम जहाँ खड़े हैं, हमारे पास मार्क्सवादी रचनाकारों की समर्थ शृंखला है। अब ज़रूरत इस बात की है कि हम समूची विरासत को पहचानें, आत्मालोचन करें और बुर्जुआ संस्कृति की रक्षा के लिए किये जा रहे ताबड़तोड़ प्रयासों को आमूल नष्ट करने का बीड़ा लें। ‘मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र’ की यह पुस्तक ऐसे ही प्रयास का एक अंग है।

About Author

कमला प्रसाद जन्म : 14 फ़रवरी, 1938 को सतना ज़िले के गाँव धारहरा में । निधन : 25 मार्च, 2011। प्रकाशित कृतियाँ : साहित्यशास्त्र, छायावादोत्तर काव्य की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, छायावाद: प्रकृति और प्रयोग, दरअसल, रचना और आलोचना की द्वन्द्वात्मकता, समकालीन हिन्दी निबन्ध और निबन्धकार, कविता तीरे, साहित्य और विचारधारा, मध्ययुगीन रचना और मूल्य, यशपाल (मोनोग्राफ़), गिरा अनयन, सम्पादक की कलम, आलोचक और आलोचना। 'पहल' पत्रिका से वर्षों जुड़े रहे और 'वसुधा' का भी सम्पादन किया। सम्मान : नन्ददुलारे वाजपेयी पुरस्कार-मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा, रामविलास शर्मा सम्मान, शमशेर सम्मान तथा अनेक संस्थानों के सम्मान। राजकुमार केसवानी जन्म : 26 नवम्बर 1950 को भोपाल में ।। 'पहला कविता संग्रह 'बाकी बचे जो' (2006), सातवाँ दरवाजा (2007), 13वीं शताब्दी के महान सूफ़ी। 'सन्त-कवि मौलाना जलालुद्दीन रूमी की फ़ारसी। 'कविताओं का हिन्दुस्तानी में अनुवाद 'जहान-ए-रूमी'।। संगीत और सिनेमा पर केन्द्रित पुस्तक 'बॉम्बे टॉकीज़' भी। प्रकाशित है। उपन्यास 'बाजे वाली गली' और। दास्तान-ए-मुग़ल-ए-आज़म' शीघ्र प्रकाश्य हैं। सम्प्रति : संयुक्त सम्पादक 'पहल'।

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