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Mardrar Ki Maan

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
महाश्वेता देवी, अनुवाद- सुशील गुप्ता
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
महाश्वेता देवी, अनुवाद- सुशील गुप्ता
Language:
Hindi
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Paperback

198

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1-4 Days

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SKU 9788181437440 Category
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Page Extent:
160

मेरे बेटे के हाथ में छुरा थमाया भवानी बाबू ने ! ये लोग मर गये! तपन भी मर जायेगा। लेकिन वे लोग और-और मर्डरर ले आयेंगे। जो ख़ून करता है, वह ज़रूर मुजरिम है। मेरे बेटे ने आज जो ख़ून किया, वह खरीद-फरोख्त की मंडी में, एक लड़की को वेश्या – जीवन से बचाने के लिए किया। इस टाउन में, चिरकाल मैं सिर झुकाये जीती रही। लेकिन आज के लिए मुझे कोई लज्जा, कोई शर्मिन्दगी नहीं है। लेकिन दारोगा बाबू, जो लोग मर्डर कराते हैं, वे लोग तो खुले ही छूट गये। आज़ाद ही रहे ! यह कैसा फ़ैसला है? तपन क्या अकेला ही मर्डरर है? भवानी बाबू क्या हैं?

‘आप जाइये – ‘

‘कोई जवाब है?’

तपन की माँ की सूखी-सूखी आँखों में, सूखा-सूखा हाहाकार!

‘भवानी बाबू जैसे लोग भी तो मर्डरर हैं, लेकिन उन लोगों को

कोई नहीं पकड़ेगा; कोई गिरफ्तार नहीं करेगा ।’ समवेत जनता में खुसफुस शुरू हो गयी।

अभीक ने पूछा, ‘आप जा रही हैं?”

‘हाँ, उसे तो घर पर ही लायेंगे, मैं चलूँ ।’

राधा आगे बढ़ आयी ।

बीरू, कुश और क्षिति उनके साथ-साथ चल पड़े। तपन की माँ सिर ऊँचा किये आगे बढ़ गयी । दारोगा साहब देखते रहे, एक अदद मर्डरर की मौत पर क्रुद्ध,

अवाक् जनता का चेहरा! दारोगा साहब देखते रहे, मर्डरर की माँ शान से सिर ऊँचा किये, आगे बढ़ती जा रही थी।

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Description

मेरे बेटे के हाथ में छुरा थमाया भवानी बाबू ने ! ये लोग मर गये! तपन भी मर जायेगा। लेकिन वे लोग और-और मर्डरर ले आयेंगे। जो ख़ून करता है, वह ज़रूर मुजरिम है। मेरे बेटे ने आज जो ख़ून किया, वह खरीद-फरोख्त की मंडी में, एक लड़की को वेश्या – जीवन से बचाने के लिए किया। इस टाउन में, चिरकाल मैं सिर झुकाये जीती रही। लेकिन आज के लिए मुझे कोई लज्जा, कोई शर्मिन्दगी नहीं है। लेकिन दारोगा बाबू, जो लोग मर्डर कराते हैं, वे लोग तो खुले ही छूट गये। आज़ाद ही रहे ! यह कैसा फ़ैसला है? तपन क्या अकेला ही मर्डरर है? भवानी बाबू क्या हैं?

‘आप जाइये – ‘

‘कोई जवाब है?’

तपन की माँ की सूखी-सूखी आँखों में, सूखा-सूखा हाहाकार!

‘भवानी बाबू जैसे लोग भी तो मर्डरर हैं, लेकिन उन लोगों को

कोई नहीं पकड़ेगा; कोई गिरफ्तार नहीं करेगा ।’ समवेत जनता में खुसफुस शुरू हो गयी।

अभीक ने पूछा, ‘आप जा रही हैं?”

‘हाँ, उसे तो घर पर ही लायेंगे, मैं चलूँ ।’

राधा आगे बढ़ आयी ।

बीरू, कुश और क्षिति उनके साथ-साथ चल पड़े। तपन की माँ सिर ऊँचा किये आगे बढ़ गयी । दारोगा साहब देखते रहे, एक अदद मर्डरर की मौत पर क्रुद्ध,

अवाक् जनता का चेहरा! दारोगा साहब देखते रहे, मर्डरर की माँ शान से सिर ऊँचा किये, आगे बढ़ती जा रही थी।

About Author

"महाश्वेता देवी - बांग्ला की प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी का जन्म 1926 में ढाका में हुआ। वह वर्षों बिहार और बंगाल के घने क़बाइली इलाक़ों में रही हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में इन क्षेत्रों के अनुभव को अत्यन्त प्रामाणिकता के साथ उभारा है। महाश्वेता देवी एक थीम से दूसरी थीम के बीच भटकती नहीं हैं। उनका विशिष्ट क्षेत्र है—दलितों और साधन-हीनों के हृदयहीन शोषण का चित्रण और इसी सन्देश को वे बार-बार सही जगह पहुँचाना चाहती हैं ताकि अनन्त काल से ग़रीबी रेखा से नीचे साँस लेनेवाली विराट मानवता के बारे में लोगों को सचेत कर सकें। ग़ैर-व्यावसायिक पत्रों में छपने के बावजूद उनके पाठकों की संख्या बहुत बड़ी है। उन्हें साहित्य अकादेमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार व मैग्सेसे पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। "

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