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Mard Nahin Rote

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
सूरज प्रकाश
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
सूरज प्रकाश
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9789326350518 Category
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Page Extent:
168

मर्द नहीं रोते –
पिछले क़रीब 31 साल से सूरज मुम्बई में हैं और उनके कहानीकार की उम्र इससे कुछ कम ही है। यानी सूरज ने कहानियाँ लिखना मुम्बई में ही शुरू किया। और यह बात उनकी कहानियों को पढ़ते हुए आसानी से समझी भी जा सकती है। इन्हें इस महानगर की आंचलिक कहानियाँ कहा जा सकता है। इन्हें पढ़ते हुए मुम्बई का पूरा समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र समझ में आ जाता है।
सूरज की लिखी पहली उपलब्ध कहानी ‘अल्बर्ट’ भी यहाँ है और यह भी छोटे शहर से अपना भविष्य तलाशने आये एक नौजवान की कहानी है जो इसकी क्रूरता को झेलने में असमर्थ अपने को नशे में गर्क कर देता है। यहाँ आपका बेटा ही आपका सबकुछ लेने के बाद आपको घर की सबसे फ़ालतू चीज़ समझ लेता है, पढ़ाई-लिखाई में अव्वल जिस लड़की से परिवार का नाम रोशन करने की उम्मीद की जा रही थी वही एक दिन चर्चगेट स्टेशन पर एक भिखारी की मौत मरी पायी जाती है।
यहाँ हर चीज़ की अपनी एक क़ीमत है। अपवाद भी हैं। घर की तलाश में आये जिस नौजवान को हल्द्वानी से लेकर लन्दन तक घर वाला अपनापन नहीं मिल पाता, उसे यही मुम्बई अपने बेगानेपन में भी अपना होने का बोध कराती है। यह इसका एक और रूप है।
इससे पहले सूरज की कहानियों के दो कहानी संग्रह आ चुके हैं और एक कहानीकार के रूप में सूरज के परिपक्व होते जाने के क्रम को हम इनमें देख सकते। जटिलता न होने के कारण ये कहानियाँ अपने आपको पढ़वा ले जाती हैं। यह सूरज के कहानीकार की एक और विशेषता है।—सुरेश उनियाल

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Description

मर्द नहीं रोते –
पिछले क़रीब 31 साल से सूरज मुम्बई में हैं और उनके कहानीकार की उम्र इससे कुछ कम ही है। यानी सूरज ने कहानियाँ लिखना मुम्बई में ही शुरू किया। और यह बात उनकी कहानियों को पढ़ते हुए आसानी से समझी भी जा सकती है। इन्हें इस महानगर की आंचलिक कहानियाँ कहा जा सकता है। इन्हें पढ़ते हुए मुम्बई का पूरा समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र समझ में आ जाता है।
सूरज की लिखी पहली उपलब्ध कहानी ‘अल्बर्ट’ भी यहाँ है और यह भी छोटे शहर से अपना भविष्य तलाशने आये एक नौजवान की कहानी है जो इसकी क्रूरता को झेलने में असमर्थ अपने को नशे में गर्क कर देता है। यहाँ आपका बेटा ही आपका सबकुछ लेने के बाद आपको घर की सबसे फ़ालतू चीज़ समझ लेता है, पढ़ाई-लिखाई में अव्वल जिस लड़की से परिवार का नाम रोशन करने की उम्मीद की जा रही थी वही एक दिन चर्चगेट स्टेशन पर एक भिखारी की मौत मरी पायी जाती है।
यहाँ हर चीज़ की अपनी एक क़ीमत है। अपवाद भी हैं। घर की तलाश में आये जिस नौजवान को हल्द्वानी से लेकर लन्दन तक घर वाला अपनापन नहीं मिल पाता, उसे यही मुम्बई अपने बेगानेपन में भी अपना होने का बोध कराती है। यह इसका एक और रूप है।
इससे पहले सूरज की कहानियों के दो कहानी संग्रह आ चुके हैं और एक कहानीकार के रूप में सूरज के परिपक्व होते जाने के क्रम को हम इनमें देख सकते। जटिलता न होने के कारण ये कहानियाँ अपने आपको पढ़वा ले जाती हैं। यह सूरज के कहानीकार की एक और विशेषता है।—सुरेश उनियाल

About Author

सूरज प्रकाश - जन्म: 14 मार्च, 1952, देहरादून। प्रकाशन: अधूरी तस्वीर (कहानी संग्रह) 1992, हादसों के बीच (उपन्यास) 1998, देस बिराना (उपन्यास) 2002, छूटे हुए घर (कहानी-संग्रह) 2002,ज़रा सँभल के चलो (व्यंग्य-संग्रह) 2002, दाढ़ी में तिनका (विविध लेखन) 2010। सम्पादन/अनुवाद: बम्बई 1 (बम्बई पर आधारित कहानियों का संग्रह), कथा लन्दन (यूके में लिखी जा रही हिन्दी कहानियों का संग्रह), कथा दशक (कथा यूके से सम्मानित 10 रचनाकारों की कहानियों का संग्रह), कथा पर्व (कथा यूके से सम्मानित 15 रचनाकारों की कहानियों का संग्रह), अंग्रेज़ी और गुजराती कुछ अनुवाद कार्य। सम्मान: गुजरात साहित्य अकादेमी का सम्मान और महाराष्ट्र अकादेमी का सम्मान।

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