Mansarovar – 1

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
प्रेमचंद
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
प्रेमचंद
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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मानसरोवर के आठ खंडों में प्रेमचंद की लगभग तीन सौ कहानियों का संकलन है। जीवन और समाज का शायद ही कोई पहलू हो, जिस पर प्रेमचंद की प्रखर दृष्टि न गयी हो। गहराई, रोचकता और सादगी का जैसा संगम इन कहानियों में मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। प्रेमचंद की अद्वितीय कथा प्रतिभा का साक्षात्कार करने के लिए ‘मानसरोवर’ के प्रत्येक खंड को पढ़ना आवश्यक है।

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Description

मानसरोवर के आठ खंडों में प्रेमचंद की लगभग तीन सौ कहानियों का संकलन है। जीवन और समाज का शायद ही कोई पहलू हो, जिस पर प्रेमचंद की प्रखर दृष्टि न गयी हो। गहराई, रोचकता और सादगी का जैसा संगम इन कहानियों में मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। प्रेमचंद की अद्वितीय कथा प्रतिभा का साक्षात्कार करने के लिए ‘मानसरोवर’ के प्रत्येक खंड को पढ़ना आवश्यक है।

About Author

प्रेमचंद (31 जुलाई 1880-8 अक्टूबर 1936) हिन्दी के सबसे बड़े और सबसे ज़्यादा लोकप्रिय कथाकार हैं। उनका मूल नाम धनपत राय था। उन्होंने लेखन की शुरुआत उर्दू से की। प्रेमचंद की पहली पुस्तक 'सोज़े वतन' जो देशभक्ति की पाँच कहानियों का संग्रह है, अंग्रेज़ शासकों द्वारा ज़ब्त कर ली गयी थी। उसके बाद वे हिन्दी में लिखने लगे। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, तीन नाटक, दस अनुवाद, वाल साहित्य की सात पुस्तकें और हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय और भूमिका आदि लिखे हैं। उनके जीवनकाल में ही उन्हें 'उपन्यास सम्राट' माना गया। प्रेमचंद की ख्याति मुख्यतः उनके कथा-साहित्य पर आधारित है। प्रेमचंद ने हिन्दी उपन्यास और कहानी को परिपक्वता दी। भारतीय समाज का दुख-दर्द और सामान्य लोगों का जीवन उनके लेखन में पहली बार इतनी विविधता और बारीकी से अभिव्यक्त हुआ। प्रेमचंद की कालजयी कृति 'गोदान' को भारत के किसान जीवन का महाकाव्य माना जाता है। 'रंगभूमि' पर गाँधीवाद का प्रभाव है। 'सेवासदन' और 'कर्मभूमि' सुधारवादी उपन्यास हैं। प्रेमचंद के विपुल कथा-साहित्य में साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, ज़मींदारी, कर्ज़ख़ोरी, ग्रीवी, राजनीतिक पराधीनता आदि का प्रभावशाली चित्रण मिलता है। प्रेमचंद प्रगतिशील विचारधारा के लेखक थे। अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिए प्रेमचंद ने 'हंस' और 'जागरण' पत्रिकाओं का सम्पादन-प्रकाशन भी किया। प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों पर कई फिल्में बनाई गयीं। समय के साथ-साथ प्रेमचंद की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है और कथाकारों की प्रत्येक पीढ़ी उन्हें अपना प्रेरणा-पुरुष मानती है।

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