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Mahalsara Ka Ek Khel Aur Anya Kahaniyan

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
मुग़ल महमूद, ज़हरा राय,; सम्पादन - सारा राय
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
मुग़ल महमूद, ज़हरा राय,; सम्पादन - सारा राय
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9789389563849 Category
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184

शम्स-उन-नहार बेग़म उर्फ़ मुग़ल महमूद (1914-1993) और ज़हरा बेग़म उर्फ़ ज़हरा श्रीपत राय (1917-1993) बहनें थीं। उनकी सभी कहानियाँ पहले उर्दू में लिखी गयी हैं, बाद में देवनागरी में। अधिकतर कहानियाँ पचास और साठ के दशक में ‘कहानी’ या कल्पना’ में छपी।

ज़्यादातर कहानियाँ उसी हवेली या ‘महलसरा’ के निवासियों के बारे में हैं जहाँ दोनों बहनों की परवरिश हुई। इन जीवन गाथाओं को कागज़ पर उतारना उनको माइक्रोस्कोप के नीचे लाना है। लिखे जाने की क्रिया में यह कथाएँ ‘महलसरा’ के अजीब-ओ-गरीब खेलों का रिकॉर्ड भी बन जाती हैं और उनकी आलोचना भी। कहानियों का सार उनके सन्दर्भ में ही गड़ा हुआ है। हवेली की ज़िन्दगी और उसमें फँसे किरदार सब एक घातक और विषैले प्रारब्ध के मोहरे नज़र आते हैं। किरदारों को हवेली से निकालकर एक बड़े और विस्तृत मानवीय फलक पर रखकर देखने की कोशिश है। चेखव के पात्रों की तरह, किरदार अपनी मौजूदा स्थिति से उबरकर एक ऐसे व्यापक दायरे में पहुँच जाते हैं जहाँ फतवों और फैसलों के लिए जगह नहीं है। किसी सन्देश या ‘सत्य’ का अमली जामा पहनाने का प्रयत्न इनमें नहीं दिखता।

दोनों बहनों की कहानियाँ एक-दूसरे की नक़ल नहीं हैं। उनमें मुशाबहत है, तो दोनों के सशक्त स्त्री किरदारों में। मुग़ल महमूद की अधिकतर कहानियाँ हवेली में घटती हैं। उनके ऊपर एक प्रकार की नैतिक निराशा छायी हुई है। ज़हरा राय की कहानियों का मिज़ाज फ़रक है। उनमें से कुछ तो हवेली में स्थित हैं, मगर किन्हीं कहानियों के किरदार हवेली के बाहर निकलकर एक शहरी, मध्यवर्गीय ज़िन्दगी बसर करते हुए नज़र आते हैं।

हवेली की दुनिया को शब्दों में ढालने वाली भाषा की अपनी खुसूसियत है। इस दुनिया का बीतना मातम योग्य नहीं है। मगर आलस्य और ऐश-ओ-इशरत से उपजी अतिसुसंस्कृति की बारीकियों का ब्योरा ऐतिहासिक और साहित्यिक सन्दर्भ में भुलाया नहीं जा सकता।

– सारा राय

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Description

शम्स-उन-नहार बेग़म उर्फ़ मुग़ल महमूद (1914-1993) और ज़हरा बेग़म उर्फ़ ज़हरा श्रीपत राय (1917-1993) बहनें थीं। उनकी सभी कहानियाँ पहले उर्दू में लिखी गयी हैं, बाद में देवनागरी में। अधिकतर कहानियाँ पचास और साठ के दशक में ‘कहानी’ या कल्पना’ में छपी।

ज़्यादातर कहानियाँ उसी हवेली या ‘महलसरा’ के निवासियों के बारे में हैं जहाँ दोनों बहनों की परवरिश हुई। इन जीवन गाथाओं को कागज़ पर उतारना उनको माइक्रोस्कोप के नीचे लाना है। लिखे जाने की क्रिया में यह कथाएँ ‘महलसरा’ के अजीब-ओ-गरीब खेलों का रिकॉर्ड भी बन जाती हैं और उनकी आलोचना भी। कहानियों का सार उनके सन्दर्भ में ही गड़ा हुआ है। हवेली की ज़िन्दगी और उसमें फँसे किरदार सब एक घातक और विषैले प्रारब्ध के मोहरे नज़र आते हैं। किरदारों को हवेली से निकालकर एक बड़े और विस्तृत मानवीय फलक पर रखकर देखने की कोशिश है। चेखव के पात्रों की तरह, किरदार अपनी मौजूदा स्थिति से उबरकर एक ऐसे व्यापक दायरे में पहुँच जाते हैं जहाँ फतवों और फैसलों के लिए जगह नहीं है। किसी सन्देश या ‘सत्य’ का अमली जामा पहनाने का प्रयत्न इनमें नहीं दिखता।

दोनों बहनों की कहानियाँ एक-दूसरे की नक़ल नहीं हैं। उनमें मुशाबहत है, तो दोनों के सशक्त स्त्री किरदारों में। मुग़ल महमूद की अधिकतर कहानियाँ हवेली में घटती हैं। उनके ऊपर एक प्रकार की नैतिक निराशा छायी हुई है। ज़हरा राय की कहानियों का मिज़ाज फ़रक है। उनमें से कुछ तो हवेली में स्थित हैं, मगर किन्हीं कहानियों के किरदार हवेली के बाहर निकलकर एक शहरी, मध्यवर्गीय ज़िन्दगी बसर करते हुए नज़र आते हैं।

हवेली की दुनिया को शब्दों में ढालने वाली भाषा की अपनी खुसूसियत है। इस दुनिया का बीतना मातम योग्य नहीं है। मगर आलस्य और ऐश-ओ-इशरत से उपजी अतिसुसंस्कृति की बारीकियों का ब्योरा ऐतिहासिक और साहित्यिक सन्दर्भ में भुलाया नहीं जा सकता।

– सारा राय

About Author

मुग़ल महमूद ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1952 में फ़ारसी में एम.ए. किया। उनकी कहानियाँ पचास और साठ के दशक में अधिकतर 'कहानी' में छपी। उनकी लगभग सभी कहानियाँ नवाब-की-ड्योढ़ी बनारस, यानी अपनी खानदानी हवेली में स्थित हैं। इसी हवेली के हाते में उन्होंने 1966 में बाल भारती स्कूल खोला और जीवन भर बच्चों को नाट्य और संगीत सहित सभी विषयों में उच्च शिक्षा दी। उनके द्वारा लिखी बच्चों के लिए कहानियों का संचयन 'सुनहले पंख' सरस्वती प्रेस से प्रकाशित हुआ।/ज़हरा राय हिन्दी की कथाकार थीं। उनकी रचनाएँ 1957-77 के बीच 'कहानी', 'कल्पना', 'नयी कहानियाँ' 'सारिका' जैसी पत्रिकाओं में बराबर प्रकाशित हुई। बागबानी पर उनके लेख सिलसिलेवार 'धर्मयुग' में छपे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संगीत में एम.ए. किया। अव्यावसायिक तौर पर वह जीवनभर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार रहीं, जिन्होंने आफ़ताब-ए-मौसीकी उस्ताद फैयाज़ ख़ाँ और आचार्य बृहस्पति से भी शिक्षा ली। 1978 में उन्होंने बच्चों के लिए मुंशी प्रेमचन्द मेमोरियल स्कूल की स्थापना की और 1993 में अपनी मृत्यु तक स्कूल की प्रधानाचार्या रहीं।/सारा राय समकालीन हिन्दी कथाकार हैं। वे हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू की अनुवादक हैं। उनके तीन कथा संग्रह (अबाबील की उड़ान, 1997, बियाबान में 2005, भूलभुलैया और अन्य कहानियाँ, 2015) प्रकाशित हैं और एक उपन्यास (चीलवाली कोठी, 2010 और 2015)।अरविन्द कृष्ण महरोत्रा के साथ किये गये विनोद कुमार शुक्ल की कहानियों के अनुवाद, ब्लू इज़ लाइक ब्लू (2019) को बंगलोर लिटरेरी फेस्टिवल का ‘अट्टा गलट्टा' पुरस्कार मिला है।उनकी अन्य अनूदित और सम्पादित पुस्तकों में शामिल हैं प्रेमचन्द की कज़ाकी एंड अदर मार्वेलस टेल्स (2013) हिन्दी हैंडपिक्ड फ़िक्शंस (2003), द गोल्डेन वेस्ट चेनः मॉडर्न हिन्दी शॉर्ट स्टोरीज़, (1990)।2019 में योहाना हान द्वारा किये गये उनकी कहानियों के जर्मन अनुवाद इम लैबिरिन्थ को जर्मनी का फ्राइड्रिश रुकर्ट पुरस्कार मिला है।ज़हरा राय उनकी माँ थीं और मुग़ल महमूद उनकी मौसी। सारा राय इलाहाबाद में रहती हैं।पता : 12/6 ड्रमण्ड रोड, इलाहाबाद 211 001ई-मेल : sararai11@gmail.com

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