माँ, मार्च और मृत्यु | MAA, MARCH AUR MRITYU

Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
SHARMILA JALAN
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Setu Prakashan
Author:
SHARMILA JALAN
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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यहाँ मैं यह भी याद करता हूँ कि इन कहानियों के लेखक की मानसिकता संकीर्ण, अपाहिज और विभाजित नहीं है और वे औसत से औसत अनुभव को एक अलग रोशनी में, अपनी निगाहों से खुले हुए मन और मस्तिष्क से बिना किसी पूर्वग्रह से देखने के लिए प्रयत्नशील बनी रहती है। लेखक का इस तरह का प्रयत्न और प्रतिरोध भी लेखक की कुछ कहानियों में उस महत्वपूर्ण चीज़ को जन्म देता है जिसे टॉमस मान प्रिसिजन (precision) कहा करते थे। मैंने यहाँ लेखक की लचीली अविभाजित और स्वस्थ दृष्टि की बात इसलिए भी की है कि एक खुला हुआ दिमाग ही यह जान पाता है कि मानवीय समझ और मानवीय व्यवहार में ही कुछ ऐसे तत्त्व हमेशा शामिल रहते हैं जिनका सरलीकरण किया ही नहीं जा सकता है और अगर ऐसा किया जाए तब मानवीय स्थितियों को उसके समूचेपन में समझा ही नहीं जा सकता है, व्यक्त ही नहीं किया जा सकता है। इन कहानियों के लेखक की गहरी प्रश्नाकुलता भी है कि ये कहानियाँ न अपने परिवेशों और पात्रों का सरलीकरण करती हैं और न ही कहानियों में आती परिस्थितियों और प्रश्नों का। इन कहानियों का लेखक अपने भीतर इस समझ की गहरी पहचान लिये रहता है कि अच्छाई के भीतर बुराई का अंश छिपा रह सकता है और बुराई के भीतर अच्छाई का। और किसी भी लेखक के भीतर अच्छे-बुरे की संतुलित संवेदनशील और सच्ची समझ की सघन उपस्थिति बनी रहनी चाहिए।

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यहाँ मैं यह भी याद करता हूँ कि इन कहानियों के लेखक की मानसिकता संकीर्ण, अपाहिज और विभाजित नहीं है और वे औसत से औसत अनुभव को एक अलग रोशनी में, अपनी निगाहों से खुले हुए मन और मस्तिष्क से बिना किसी पूर्वग्रह से देखने के लिए प्रयत्नशील बनी रहती है। लेखक का इस तरह का प्रयत्न और प्रतिरोध भी लेखक की कुछ कहानियों में उस महत्वपूर्ण चीज़ को जन्म देता है जिसे टॉमस मान प्रिसिजन (precision) कहा करते थे। मैंने यहाँ लेखक की लचीली अविभाजित और स्वस्थ दृष्टि की बात इसलिए भी की है कि एक खुला हुआ दिमाग ही यह जान पाता है कि मानवीय समझ और मानवीय व्यवहार में ही कुछ ऐसे तत्त्व हमेशा शामिल रहते हैं जिनका सरलीकरण किया ही नहीं जा सकता है और अगर ऐसा किया जाए तब मानवीय स्थितियों को उसके समूचेपन में समझा ही नहीं जा सकता है, व्यक्त ही नहीं किया जा सकता है। इन कहानियों के लेखक की गहरी प्रश्नाकुलता भी है कि ये कहानियाँ न अपने परिवेशों और पात्रों का सरलीकरण करती हैं और न ही कहानियों में आती परिस्थितियों और प्रश्नों का। इन कहानियों का लेखक अपने भीतर इस समझ की गहरी पहचान लिये रहता है कि अच्छाई के भीतर बुराई का अंश छिपा रह सकता है और बुराई के भीतर अच्छाई का। और किसी भी लेखक के भीतर अच्छे-बुरे की संतुलित संवेदनशील और सच्ची समझ की सघन उपस्थिति बनी रहनी चाहिए।

About Author

जन्म: 7 जुलाई, 1973 शिक्षा : कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए.. एम.फिल. (कृष्णा सोबती के उपन्यासों में परिवार की शर्मिला जालान अवधारणा) प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : ‘शादी से पेशतर’ ; कहानी संग्रह : ‘बूढ़ा चाँद’, ‘राग विराग और अन्य कहानियाँ’, ‘माँ, मार्च और मृत्यु’। ‘बूढ़ा चाँद’ का पटना, मुंबई कई जगहों पर मंचन। युवा-5 (भारत भवन भोपाल, 2017), युवा (रजा फाउंडेशन, 2018) और साहित्य उत्सव (आजतक, 2019) में शिरकत। पुरस्कार : भारतीय भाषा परिषद, युवा पुरस्कार 2004, कन्हैयालाल सेठिया सारस्वत सम्मान-2017, कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिप-2019 संप्रति : अध्यापन कलकत्ते में पति अमित जालान और बेटे शशांक जालान के साथ निवास।

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