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Ludwig Wittgenstein : Tractatus Logico-Philosophicus
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लुडविग विट्सगेंस्टाइन : ट्रैक्टेटस लॉज़िको-फिलोसॉफ़िकस –
लुडविग विट्गेन्स्टाइन बीसवीं शताब्दी के प्रखरतम भाषा-दार्शनिक है। पश्चिमी जगत के श्रेष्ठ मौलिक दार्शनिकों में प्लेटो के बाद उनकी ही होती है। उनकी ही विभिन्न कृतियों में ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उनके जीवन काल में केवल यही कृति प्रकाशित हुई थी। इस ग्रन्थ में इस महान दार्शनिक ने अर्थ-सत्य के प्रकाशन में भाषा की भूमिका और उसकी सीमाओं का व्यापक विश्लेषण किया है। अशोक बोहरा का यह अनुवाद मैंने आद्योपान्त पढ़ा। अनुवाद को पढ़ने के बाद ऐसा लगता ही नहीं कि यह कोई अनुवाद कृति है। वस्तुतः यह स्वयं में एक मौलिक रचना का भान देती है, विट्गेन्स्टाइन की दार्शनिक दुरूता, उनकी सोच की गहनता और विचारों की अभिव्यक्ति का ढंग इस अनुवाद में हूबहू उकेर दिया गया है। दर्शन शास्त्र के जिज्ञासु, विशेषतः विट्गेन्स्टाइन के दर्शन में रुचि रखने वाले हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति एक अनुपम उपहार है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी जगत इस रचना से उपकृत होगा।—कपिला वात्स्यायन
लुडविग विट्गेन्स्टाइन पाश्चात्य दर्शन के इतिहास में एक किवदन्ती पुरुष हैं और उनका प्रथम ग्रन्थ ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस एक अत्यन्त दुर्बोध और दुःसाध्य ग्रन्थ के रूप में विख्यात रहा है। ब्रह्मसूत्र की तरह सूत्र-शैली में रचित और अपने विन्यास में उससे भी अधिक जटिल यह ग्रन्थ बेटैंड रसेल जैसे दार्शनिक के लिए भी मुद्दत तक एक पहेली रहा है। ऐसे ग्रन्थ का हिन्दी में भावान्तर एक तरह से लोहे के चने चबाने जैसा कार्य है। प्रोफ़ेसर अशोक बोहरा ने इस असम्भव कार्य को सम्भव बनाया, यह अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है। प्रोफ़ेसर अशोक वोहरा पहले भी विट्गेन्स्टाइन के फिलोसॉफ़िकस इन्वेस्टिगेशंस, कल्चर एंड वैल्यू ऑन सर्ट्रेन्टि तीन ग्रन्थों को हिन्दी में प्रस्तुत कर चुके हैं और भारतीय दर्शन के आधुनिक अध्येताओं ने उनका हार्दिक स्वागत किया है। ट्रैक्टेटस के हिन्दी अनुवाद के साथ एक तरह से उनके मिशन की पूर्णाहुति हो रही है और इस अवसर पर मैं उन्हें हार्दिक साधुवाद देता हूँ। यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि अशोक जी का यह हिन्दी ट्रैक्टेटस मूल पाठ के सन्निकट, सुबोध, सुपाठ्य एवं स्वच्छ है।—नामवर सिंह
लुडविग विट्सगेंस्टाइन : ट्रैक्टेटस लॉज़िको-फिलोसॉफ़िकस –
लुडविग विट्गेन्स्टाइन बीसवीं शताब्दी के प्रखरतम भाषा-दार्शनिक है। पश्चिमी जगत के श्रेष्ठ मौलिक दार्शनिकों में प्लेटो के बाद उनकी ही होती है। उनकी ही विभिन्न कृतियों में ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उनके जीवन काल में केवल यही कृति प्रकाशित हुई थी। इस ग्रन्थ में इस महान दार्शनिक ने अर्थ-सत्य के प्रकाशन में भाषा की भूमिका और उसकी सीमाओं का व्यापक विश्लेषण किया है। अशोक बोहरा का यह अनुवाद मैंने आद्योपान्त पढ़ा। अनुवाद को पढ़ने के बाद ऐसा लगता ही नहीं कि यह कोई अनुवाद कृति है। वस्तुतः यह स्वयं में एक मौलिक रचना का भान देती है, विट्गेन्स्टाइन की दार्शनिक दुरूता, उनकी सोच की गहनता और विचारों की अभिव्यक्ति का ढंग इस अनुवाद में हूबहू उकेर दिया गया है। दर्शन शास्त्र के जिज्ञासु, विशेषतः विट्गेन्स्टाइन के दर्शन में रुचि रखने वाले हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति एक अनुपम उपहार है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी जगत इस रचना से उपकृत होगा।—कपिला वात्स्यायन
लुडविग विट्गेन्स्टाइन पाश्चात्य दर्शन के इतिहास में एक किवदन्ती पुरुष हैं और उनका प्रथम ग्रन्थ ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस एक अत्यन्त दुर्बोध और दुःसाध्य ग्रन्थ के रूप में विख्यात रहा है। ब्रह्मसूत्र की तरह सूत्र-शैली में रचित और अपने विन्यास में उससे भी अधिक जटिल यह ग्रन्थ बेटैंड रसेल जैसे दार्शनिक के लिए भी मुद्दत तक एक पहेली रहा है। ऐसे ग्रन्थ का हिन्दी में भावान्तर एक तरह से लोहे के चने चबाने जैसा कार्य है। प्रोफ़ेसर अशोक बोहरा ने इस असम्भव कार्य को सम्भव बनाया, यह अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है। प्रोफ़ेसर अशोक वोहरा पहले भी विट्गेन्स्टाइन के फिलोसॉफ़िकस इन्वेस्टिगेशंस, कल्चर एंड वैल्यू ऑन सर्ट्रेन्टि तीन ग्रन्थों को हिन्दी में प्रस्तुत कर चुके हैं और भारतीय दर्शन के आधुनिक अध्येताओं ने उनका हार्दिक स्वागत किया है। ट्रैक्टेटस के हिन्दी अनुवाद के साथ एक तरह से उनके मिशन की पूर्णाहुति हो रही है और इस अवसर पर मैं उन्हें हार्दिक साधुवाद देता हूँ। यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि अशोक जी का यह हिन्दी ट्रैक्टेटस मूल पाठ के सन्निकट, सुबोध, सुपाठ्य एवं स्वच्छ है।—नामवर सिंह
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