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Lawaris Nahi, Meri Maan Hai ! (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Anil Kumar Pathak
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Radhakrishna Prakashan
Author:
Anil Kumar Pathak
Language:
Hindi
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Hardback

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‘लावारिस नहीं, मेरी माँ हैं’ यद्यपि लेखक का प्रथम कहानी-संग्रह है किन्तु क‍थ्य की इस विधा में लेखक लम्बे समय से सक्रिय हैं। इनकी कहानियाँ कई दशक पूर्व से आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित हो रही हैं। इन कहानियों में एक ओर जहाँ सहजता एवं सरसता है वहीं दूसरी ओर इनकी किस्सागोई पाठकों को आद्योपान्त बाँधकर रखने में भी सक्षम है।
प्रस्तुत संग्रह में कुल 11 कहानियाँ हैं। संग्रह की सभी कहानियों के कथानक नारी के विभिन्न स्वरूपों–माँ, मौसी, काकी, बुआ, सौतेली माँ आदि–के इर्द-गिर्द घूमते हैं जिनमें स्त्री के मूलभूत गुणों, यथा–प्रेम, दया, करुणा, सबको अपनाने की प्रवृत्ति एवं संघर्ष के बावजूद विपरीत परिस्थितियों में भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अनवरत तत्पर रहना इत्यादि–का मर्मस्पर्शी चित्रण है। जहाँ ये कहानियाँ काव्य के विभिन्न गुणों को अपने अन्दर समाहित करते हुए विशेषतया नारी के दृष्टिगत समाज में व्याप्त प्रतिकूल परिस्थितियों को उजागर करती हैं, वहीं सुखद वातावरण का सृजन करते हुए आशा की उजली किरणों की ओर भी ले जाती हैं।

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Description

‘लावारिस नहीं, मेरी माँ हैं’ यद्यपि लेखक का प्रथम कहानी-संग्रह है किन्तु क‍थ्य की इस विधा में लेखक लम्बे समय से सक्रिय हैं। इनकी कहानियाँ कई दशक पूर्व से आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित हो रही हैं। इन कहानियों में एक ओर जहाँ सहजता एवं सरसता है वहीं दूसरी ओर इनकी किस्सागोई पाठकों को आद्योपान्त बाँधकर रखने में भी सक्षम है।
प्रस्तुत संग्रह में कुल 11 कहानियाँ हैं। संग्रह की सभी कहानियों के कथानक नारी के विभिन्न स्वरूपों–माँ, मौसी, काकी, बुआ, सौतेली माँ आदि–के इर्द-गिर्द घूमते हैं जिनमें स्त्री के मूलभूत गुणों, यथा–प्रेम, दया, करुणा, सबको अपनाने की प्रवृत्ति एवं संघर्ष के बावजूद विपरीत परिस्थितियों में भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अनवरत तत्पर रहना इत्यादि–का मर्मस्पर्शी चित्रण है। जहाँ ये कहानियाँ काव्य के विभिन्न गुणों को अपने अन्दर समाहित करते हुए विशेषतया नारी के दृष्टिगत समाज में व्याप्त प्रतिकूल परिस्थितियों को उजागर करती हैं, वहीं सुखद वातावरण का सृजन करते हुए आशा की उजली किरणों की ओर भी ले जाती हैं।

About Author

अनिल कुमार पाठक

दार्शनिक एवं साहित्यिक अध्यवसाय की पृष्ठभूमि रखने वाले अनिल कुमार पाठक विभिन्न भाषाओं के साहित्य के अध्येता होने के साथ ही मानववाद विषय पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा डॉक्टरेटकी उपाधि से विभूषित हैं। उन्होंने मानववाद पर केवल शोधकार्य ही नहीं किया है अपितु उसे अपने जीवन में मनसा-वाचा-कर्मणाअपनाया भी है। डॉ. पाठक मानवीय संवेदना से स्पन्दित होने के साथ ही मानववादी मूल्यों के मर्मज्ञ भी हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य की विभिन्न विधाओं यथा कविता, गीत, कहानी, नाट्यकाव्य, लघु नाटिका आदि में साहित्य सर्जना की है जो आज भी अनवरत चल रही है।

माता-पिता की स्मृतियों को समर्पित काव्य-संग्रह पारस बेलाके साथ ही गीत, मीत के नामऔर अप्रतिमसहित अन्य प्रकाशित तथा प्रकाशनाधीन कृतियों के माध्यम से जहाँ वह अपने रचना-संसार

को नित्य नूतन आयाम देने हेतु कटिबद्ध हैं, वहीं उनकी मर्मस्पर्शी कहानियाँ, गीत, परिचर्चा आदि आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से नियमित प्रसारित होते रहते हैं। अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक दायित्वों के निर्वहन के साथ ही उनके द्वारा एक दशक से अधिक समय से कविता की त्रैमासिक पत्रिका पारस परसका नियमित सम्पादन किया जा रहा है। उनकी अश्रान्त लेखनी सम्प्रति भारतीय संस्कृति, परम्परा के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर निरन्तर क्रियाशील है।

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