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Lal Deewaron Ka Makan

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
जयशंकर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
जयशंकर
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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Book Type

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SKU 9789355181091 Category
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Page Extent:
128

समकालीन कहानी लेखन में जयशंकर का विशिष्ट स्थान है। प्रख्यात कथाकार निर्मल वर्मा ने इधर लिखी जा रही कहानियों में इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। जयशंकर की कहानियाँ प्रचलित मुद्राओं से पृथक् अपनी लय को बहुत ही धैर्य के साथ साधती हैं। उनके लेखन की विनम्रता, संवेदनशीलता पाठक को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है।

आलोचक मदन सोनी के शब्दों में, ‘ये एक ख़ास अनुभूति को लेकर लिखी गयी कहानियाँ हैं, उन अनुभूतियों से नितान्त अलग जो इन कहानियों में बिखरी हैं। यह कहानी होने की अनुभूति है। अनुभव, विचार या दर्शन नहीं, अनुभूति। यह बोध नहीं कि यह सारा जगत एक कहानी है बल्कि कुछ इस तरह का अहसास आसपास व्याप्त जीवन अपनी पूर्णता के लिए, अपने परिष्कार के लिए कहानी की प्रतीक्षा में हैं।’

जयशंकर की कहानियाँ पढ़ते हुए पायेंगे कि आसपास व्याप्त जीवन की पूर्णता के लिए, उसके परिष्कार के लिए बहुत ही विनम्रता के साथ वे उस प्रतीक्षित कहानी को बिसराते नहीं हैं बल्कि उसके बीचोबीच उतरते हैं…और पाठक भी ऐसे अवसर पर मात्र द्रष्टा बन खड़ा नहीं रहता बल्कि वह भी उनके साथ-साथ चलता है।

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Description

समकालीन कहानी लेखन में जयशंकर का विशिष्ट स्थान है। प्रख्यात कथाकार निर्मल वर्मा ने इधर लिखी जा रही कहानियों में इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। जयशंकर की कहानियाँ प्रचलित मुद्राओं से पृथक् अपनी लय को बहुत ही धैर्य के साथ साधती हैं। उनके लेखन की विनम्रता, संवेदनशीलता पाठक को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है।

आलोचक मदन सोनी के शब्दों में, ‘ये एक ख़ास अनुभूति को लेकर लिखी गयी कहानियाँ हैं, उन अनुभूतियों से नितान्त अलग जो इन कहानियों में बिखरी हैं। यह कहानी होने की अनुभूति है। अनुभव, विचार या दर्शन नहीं, अनुभूति। यह बोध नहीं कि यह सारा जगत एक कहानी है बल्कि कुछ इस तरह का अहसास आसपास व्याप्त जीवन अपनी पूर्णता के लिए, अपने परिष्कार के लिए कहानी की प्रतीक्षा में हैं।’

जयशंकर की कहानियाँ पढ़ते हुए पायेंगे कि आसपास व्याप्त जीवन की पूर्णता के लिए, उसके परिष्कार के लिए बहुत ही विनम्रता के साथ वे उस प्रतीक्षित कहानी को बिसराते नहीं हैं बल्कि उसके बीचोबीच उतरते हैं…और पाठक भी ऐसे अवसर पर मात्र द्रष्टा बन खड़ा नहीं रहता बल्कि वह भी उनके साथ-साथ चलता है।

About Author

जयशंकर जन्म : 25 दिसम्बर 1959 शिक्षा : नागपुर विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एम. ए. । सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से ऐच्छिक सेवा निवृत्ति । रचनाएँ : शोकगीत (1990), मरुस्थल (1998), लाल दीवारों का मकान (1998), बारिश, ईश्वर और मृत्यु (2004), चेम्बर म्यूज़िक (2012), इमिगिंग द अदर (कथा ग्रुप) में कहानी का अंग्रेज़ी अनुवाद, गोधूलि की इबारतें (कथेतर गद्य), सर्दियों का नीला आकाश, बचपन की बारिश प्रकाशित हो चुके हैं। कुछ कहानियों के मराठी, बंगला, मलयालम और अंग्रेज़ी, पोलिश में अनुवाद प्रकाशित । सम्मान : 'मरुस्थल पर विजय वर्मा कथा सम्मान । 'बारिश, ईश्वर और मृत्यु' पर श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार । पता : जयशंकर, 419, पी. के. साल्वे रोड, मोहन नगर, नागपुर- 440001, महाराष्ट्र । मोबाइल : 9425670177

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